सपनों के जाल से बाहर निकालता सिनेमा
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दिनेश कुकरेती
चलताऊ सिनेमा से अलग भी सिनेमा की एक दुनिया है, जो हमें सपनों के जाल में नहीं उलझाती। बल्कि, जीवन और समाज की जटिलताओं के यथार्थ से भी हमारा साबका कराती है। यह ऐसा सिनेमा है, जिसने हमें एक सोच दी, अपनी दृष्टि बदलने की और यही सोच हमें सिनेमा के प्रति अपना दृष्टिकोण रखने का साहस प्रदान करती है। यह सिनेमा इसी दृष्टिकोण की परिणति है।
एक दौर में फिल्म कहानी भाइयों के खो जाने शुरू होती थी और मिल जाने पर खत्म। लेकिन, धीरे-धीरे हालात बदल रहे हैं और कभी जिन फिल्मों के लिए पैसा नहीं मिलता था, वैसी ही फिल्में अच्छी-खासी तादाद में न सिर्फ बन रही हैं, बल्कि अपनी उपस्थिति भी दर्ज करा रही हैं। निश्चित रूप से यह उन डायरेक्टर्स की मेहनत है, जो क्राउड फंडिंग से ऐसी फिल्में बनाने को आगे आ रहे हैं। नतीजा, बदलता सिनेमा समय की आवश्यकता ही नहीं, बल्कि एक मौलिक जरूरत बन चुका है। इसका श्रेय कहीं न कहीं अनुराग कश्यप, तिग्मांशु धूलिया, विशाल भारद्वाज, ओनिर, वसन बाला, आनंद गांधी जैसे विख्यात निर्देशकों को जाता है।
थोड़ा अतीत में झांकें तो सिनेमा की इस दूसरी दुनिया के निर्माताओं में सत्यजीत रे और ऋवकि घटक का जिक्र जरूरी हो जाता है। उनके समानांतर और लगभग सहयात्री हैं मृणाल सेन। भारत में समानांतर सिनेमा की शुरुआत बांग्ला फिल्म 'पाथेर पांचालीÓ (1955) से मानी जाती है, जिसके निर्देशक सत्यजीत रे थे। इसी तरह हिंदी में समानांतर सिनेमा की शुरुआत 'भुवन सोमÓ (1969) से मानी जाती है, जिसका निर्देशन मृणाल सेन ने किया था।
यहां यह बताना भी जरूरी है कि भारतीय समानांतर सिनेमा पर भी भारतीय थिएटर (संस्कृत) और भारतीय साहित्य (बांग्ला) का गहरा प्रभाव पड़ा। लेकिन, अंतरराष्ट्रीय प्रेरणा के रूप में उस पर यूरोपियन सिनेमा, खासतौर पर इतालवी नव यथार्थवाद और फ्रेंच काव्यात्मक यथार्थवाद का हॉलीवुड के मुकाबले ज्यादा असर रहा। सत्यजित रे ने इतावली फिल्मकार विट्टोरिओ डे सीका की 'बाइसिकल थीव्सÓ (1948) और फ्रेंच फिल्मकार जॉन रेनॉर की 'द रिवरÓ(1951) को अपनी पहली फिल्म 'पाथेर पांचालीÓ (1955) की प्रेरणा बताया है। बिमल राय की 'दो बीघा जमीनÓ (1953) भी डे सीका की 'बाइसिकल थीव्सÓ से प्रेरित थी और इसने भारत में सिनेमा की नई धारा का मार्ग प्रशस्त किया, जो फ्रेंच और जापानी नई धारा के समकालीन थी।
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Cinema out of dreams
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Dinesh Kukreti
There is a world of cinema apart from the moving cinema, which does not entangle us in the web of dreams. Rather, it also makes us aware of the complexities of life and society. This is the kind of cinema which gave us a thought, to change our vision and this thinking gives us the courage to take our attitude towards cinema. This cinema is the culmination of this approach.
In one phase, the film story begins with the brothers being lost and ending when they are reunited. But, gradually the situation is changing and the films for which there was no money, are making not only a large number of films, but also making their presence felt. Certainly it is the hard work of the directors who are coming forward to make such films with crowd funding. As a result, changing cinema has become not only a necessity of time, but also a fundamental need. The credit for this goes to renowned directors like Anurag Kashyap, Tigmanshu Dhulia, Vishal Bhardwaj, Onir, Vasan Bala, Anand Gandhi.
Looking into the past a little, it becomes necessary to mention Satyajit Ray and Rivki Ghatak among the producers of this other world of cinema. His parallel and almost co-passenger is Mrinal Sen. Parallel cinema in India is considered to have originated from the Bengali film Pather Panchali 19 (1955), directed by Satyajit Ray. Similarly, the introduction of parallel cinema in Hindi is considered to be from 'Bhuvan Soma' (1969), which was directed by Mrinal Sen.
It is also necessary to point out here that Indian theater (Sanskrit) and Indian literature (Bangla) had a profound influence on Indian parallel cinema. However, as an international inspiration, European cinema, especially Italian neo-realism and French poetic realism, had more impact than Hollywood. Satyajit Ray has called the Italian film filmmaker Vittorio de Sica's' Bicycle Thieves' (1948) and French filmmaker John Raynor's' The River Ó (1951) as the inspiration for his debut film Pather Panchali Ó (1955). Bimal Rai's Do Do Bigha Zameen (1953) was also inspired by De Sica's 'Bicycle Thieves' and paved the way for a new stream of cinema in India, contemporary to the French and Japanese new streams.
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