Tuesday, 22 September 2020

श्रीमहंत लक्ष्मण दास की देन है दून की फुटबाल

 


एक दौर में दून के फुटबाल की देशभर में धाक रही है। तब फुटबाल की बंगाल जैसी लोकप्रियता दून में भी हुआ करती थी। यह हो पाया था श्री गुरु राम राय दरबार साहिब के तत्कालीन श्रीमहंत लक्ष्मण दास के प्रयासों से। उन्हीं की पहल पर वर्ष 1924 में पहली बार दून में प्रांतीय स्तर के फुटबाल मैच खेले गए। यह मैच दून में उसी स्थान पर होते थे, जहां वर्तमान में पवेलियन ग्राउंड है।

श्रीमहंत लक्ष्मण दास की देन है दून की फुटबाल
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श्री गुरु राम राय दरबार साहिब का दून को बसाने व संवारने ही नहीं, यहां फुटबाल को लोकप्रिय बनाने में भी अहम योगदान रहा। पवेलियन ग्राउंड के अस्तित्व में आने से पूर्व ही वर्ष 1924 में दरबार साहिब के तत्कालीन श्रीमहंत लक्ष्मण दास यहां प्रांतीय स्तर के फुटबाल टूर्नामेंट आयोजित करवाकर फुटबाल के बीज रोपित कर चुके थे। इसके बाद ठीक दस वर्ष तक वे निजी प्रयासों से यहां प्रांतीय व राष्ट्रीय स्तर के फुटबाल टूर्नामेंट आयोजित कराते रहे। लेकिन, धन व संगठन के अभाव में वर्ष 1934 में उन्हें कदम पीछे खींचने को बाध्य होना पड़ा। बाद में देहरादून डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स एसोसिएशन का गठन होने पर महंतजी ने हालांकि संगठन में तो अपनी भागीदारी सुनिश्चित नहीं की, लेकिन फुटबाल टूर्नामेंट को अनवरत जारी रखने के लिए सालाना 500 रुपये सहयोग करने का वचन जरूर दे दिया। इस वचन का उन्होंने जीवनभर निर्वाह भी किया।

ऐसे बनी देहरादून डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स एसोसिएशन
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वर्ष 1936 में जब अपनी विश्वविद्यालय की शिक्षा पूरी कर फुटबाल प्रेमी एनके गौर देहरादून आए तो उन्हें यहां फुटबाल टूर्नामेंट बंद होने का पता चला। तब उन्होंने श्रीमहंत लक्ष्मण दास महाराज से परामर्श कर वर्ष 1937 में समस्त फुटबाल प्रेमियों को एकत्र कर देहरादून डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स एसोसिएशन (डीडीएसए) नाम से एक संगठन बनाया। इसमें भगवान दास बैंक के लाला नेमिदास, सेठ प्रीतम सेन जैन, महाराज प्रसाद जैन, दून स्कूल के हेडमास्टर आर्थर ई. फुट, एपी मिशन ब्वायज हाईस्कूल के प्रधानाचार्य आरएम इविंग आदि शामिल थे। इसी डीडीएसए की बदौलत कालांतर में दून ने राष्ट्रीय स्तर की अनेक फुटबाल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया। वर्ष 1953 में आइएमए देहरादून ने डूरंड कप फाइनल खेला, हालांकि उसे पराजय का सामना करना पड़ा। जबकि, गोरखा ब्रिगेड देहरादून ने वर्ष 1966 में सिख रेजीमेंट को 2-0 से हराकर और फिर वर्ष 1969 में सीमा सुरक्षा बल को 1-0 से हराकर डूरंड कप अपने नाम किया।



तीन हजार की क्षमता, दर्शक पहुंचते थे आठ हजार
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अपनी पुस्तक ‘गौरवशाली देहरादूनÓ’ में देवकी नंदन पांडे लिखते हैं कि उस दौर में राष्ट्रीय स्तर की फुटबाल प्रतियोगिताओं के आयोजन को डा. सोम मेमोरियल टूर्नामेंट, श्रीमहंत लक्ष्मण दास मेमोरियल, लाला दर्शनलाल, नगर पालिका व नार्दर्न रेलवे जैसी ख्यातिनाम संस्थाएं थीं। तब लाला दर्शनलाल साइकिल का व्यवसाय चलाते थे। वह ऐसे एकमात्र आयोजक थे, जिन्होंने स्वयं अपने नाम से फुटबाल टूर्नामेंट आयोजित कराए। कभी-कभी तो वे गेट पर खड़े होकर टिकट तक फाड़ते देखे जा सकते थे। तब पवेलियन ग्राउंड में दर्शकों के बैठने की क्षमता लगभग 3,000 थी। लेकिन, जब भी यहां कोलकाता के मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब या मोहन बागान जैसी प्रसिद्ध फुटबाल टीम किसी टूर्नामेंट में आमंत्रित की जातीं, दर्शकों की संख्या 8,000 या इससे अधिक पहुंच जाती थी।



मैच देखते को लगता था दो रुपये का प्रवेश शुल्क
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मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब, मोहन बागान आदि के बीच होने वाले रोमांचक मुकाबलों को देखने के लिए तब दर्शकों से मात्र दो रुपये प्रवेश शुल्क लिया जाता था। वर्ष 1960 से वर्ष 1970 के बीच आयोजित इन फुटबाल मुकाबलों के प्रति दूनवासियों का असीम लगाव था। इसलिए जो फुटबाल प्रेमी दो रुपये प्रवेश शुल्क देने में असमर्थ होते थे, वे पवेलियन ग्राउंड के दोनों ओर खड़े वृक्षों पर चढ़कर ही पूरे मैच का आनंद लिया करते थे।

फ्री स्टाइल कुश्ती में भिड़े दारा सिंह और गामा पहलवान

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पवेलियन ग्राउंड दो बार अंतरराष्ट्रीय स्तर की फ्री स्टाइल कुश्ती के आयोजन का गवाह भी बना। इनमें रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह व पाकिस्तान के नामी पहलवान गामा के बीच हुआ मुकाबला इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है। रात में आयोजित इन कुश्ती मुकाबलों के दौरान पवेलियन ग्राउंड में पैर रखने को भी जगह नहीं बचती थी। टिकट महंगा होने के कारण तब कई दर्शक पवेलियन ग्राउंड के दक्षिण भाग में खड़े बरगद और पीपल के वृक्षों पर चढ़कर कुश्ती का आनंद लेते थे।


इनकी बदौलत फुटबाल का सिरमौर बना दून

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डीडीएसए के संगठनात्मक स्वरूप के अलावा डा. एसके सोम, कर्नल ब्राउन के नरेंद्र सिंह, वजीर चंद कपूर, एनके गौर, मिस्टर मार्टिन, सेंट जोजफ्स अकेडमी के ब्रदर डूले व ब्रदर डफी, जीएन श्रीवास्तव, आरएम शर्मा, एमएल साहनी, जेडी बटलर व्हाइट, पीबी सक्सेना, मास्टर केशव चंद्र, डा. मोहन, डा. राममूर्ति शर्मा, डा. एसएल गोयल, एकके पुरी, जीसी नागलिया, एनआर गुप्ता, सईदुद्दीन, गुरु चरण सिंह, दीनानाथ सलूजा आदि।

अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमके दून के 11 खिलाड़ी

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एक दौर में देहरादून के दो से तीन खिलाड़ी भारतीय टीम के प्लेइंग इलेवन में रहते थे। इन्होंने देश के साथ विदेश में भी अपने खेल का जलवा बिखेरा। पचास से सत्तर के दशक में करीब 11 खिलाड़ी ऐसे रहे, जो दून के मैदानों में पसीना बहाते हुए अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमके। इनमें से एक नाम तो ऐसा भी था, जिसने मशहूर ब्राजीलियन फुटबाल प्लेयर और 'ब्लैक पर्ल' के नाम से मशहूर पेले के साथ भी मैच खेला। देहरादून के पहले अंतरराष्ट्रीय फुटबालर चंदन सिंह रावत (चंदू दा) थे, जो भारत की उस टीम के सदस्य रहे, जिसने वर्ष 1952 में ग्रीष्मकालीन हेलसिंकी ओलिंपिक में हिस्सा लिया। वर्ष 1951 और वर्ष 1954 के एशियन गेम्स का भी वे हिस्सा बने। वर्ष 1951 के एशियन गेम्स में तो उन्होंने भारतीय टीम को स्वर्ण पदक भी दिलाया था। वर्ष 1997 में काठमांडू सैफ गेम्स में फुटबाल चैंपियनशिप जीतने वाली टीम के वे मैनेजर थे।


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