Wednesday, 2 September 2020

पर्शियन सिनेमा ने बदला दुनिया का नजरिया (Persian cinema changed the world)

पर्शियन सिनेमा ने बदला दुनिया का नजरिया 

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दिनेश कुकरेती
सिनेमा ऑफ ईरान (ईरानियन या पर्शियन सिनेमा) की शोहरत आज विश्व के कोने-कोने तक है। खासकर 1990 के दशक से तो ईरानियन सिनेमा दुनियाभर में अहम भूमिका निभा रहा है। ईरानी फिल्मों का कुछेक हिस्सा ही स्टारकास्ट और भारी-भरकम सेट का होता है। ईरान के फिल्म निर्माताओं ने ऐसे कई मुद्दों पर दुनिया का नजरिया बदला है और ऐसी फिल्में बनाई हैं, जिन पर पहले शायद ही कभी चर्चा हुई हो। साथ ही कलात्मकता और दृष्टिकोण के नए पहलू भी सामने लाए हैं। यही वजह है कि बहुत-से आलोचक ईरानी सिनेमा को दुनिया के मुख्य अंतरराष्ट्रीय सिनेमा का हिस्सा मानते हैं। 

प्रसिद्ध ऑस्ट्रेलियन फिल्म मेकर माइकल हनेके और जर्मन फिल्म मेकर वर्नर हर्जोग के साथ-साथ बहुत-से फिल्म आलोचकों ने विश्व की सबसे बेहतर कलात्मक फिल्मों की सूची में ईरानी फिल्मों को भी सराहा है।  ईरान में पहला फिल्म कैमरा वर्ष 1900 में काजारी शासक मुजफ्फरुद्दीन के काल में पहुंचा था। यह कैमरा काजारी शासक की यूरोप यात्रा और पश्चिम की इस खोज पर उसके आश्चर्य का परिणाम था। जबकि, सबसे पहली फिल्म ईरान में वर्ष 1905 में दिखाई गई। फिर तो कई लोग ईरान में फिल्म निर्माण में रुचि लेने लगे। 


 

वैसे देखा जाए तो ईरान में फिल्म प्रदर्शन का आरंभ दरबारों, संपन्न लोगों और फिर विवाह व पाॢटयों में हुआ। तब परेड, तेहरान के रेलवे स्टेशन का उद्घाटन, उत्तरी रेलवे का आरंभ, सरकारी कार्यक्रम आदि ईरान के फिल्मों के विषय हुआ करते थे। हालांकि, यह काम ईरान में चुनिंदा लोग ही करते थे, लेकिन दर्शकों की संख्या बहुत अधिक होती थी।
 

इसके बाद तो ईरान में सिनेमा उद्योग तेजी से फैलने लगा। ईरान में सबसे पहला सिनेमा हाल तेहरान के भीड़भाड़ वाले क्षेत्र में बना। वर्ष 1904 में मिर्जा इब्राहीम खान ने तेहरान में सबसे पहला मूवी थिएटर खोला। 1930 आते-आते तेहरान में 15 थिएटर हो गए थे। 1925 में ओवेन्स ओहैनियन ने ईरान में एक फिल्म स्कूल खोलने का फैसला किया, जिसका नाम परवरेश गेहे आॅर्टिस्ट सिनेमा रखा गया। ईरान में सिनेमा के आरंभ को लेकर एक रोचक तथ्य यह है कि वहां वर्ष 1927 में महिलाओं के लिए विशेष सिनेमा हॉल बनाया गया। यह उस दौर की बात है, जब तत्कालीन विश्व के बहुत-से देशों में लोगों ने सिनेमा का नाम भी नहीं सुना था। फिल्म के प्रदर्शन का तो उनके लिए कोई अर्थ ही नहीं था। 

1930 में 'हाजी आगाÓ से हुई शुरुआत
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पहली ईरानियन मूक फिल्म 'हाजी आगाÓ थी, जिसे प्रोफेसर ओवेन्स ओहैनियन ने वर्ष 1930 में बनाया। वर्ष 1932 में उन्होंने एक और मूक फिल्म 'आबी व राबीÓ नाम से बनाई। यह आबी व राबी नामक दो जोकरों की कहानी थी, जिनमें से एक लंबे और दूसरा ठिगने कद का था। ईरान की पहली सवाक फिल्म 'दुख्तरे लुरÓ (लोर गल्र्स) है, जो मुंबई में ईरानी कलाकारों के साथ बनाई गई। इस फिल्म को अब्दुल हुसैन सेपेन्ता और अर्दशीर ईरानी ने वर्ष 1933 में बनाया था। तेहरान के सिनेमा हालों में इसका प्रदर्शन हुआ, जिसे दर्शकों ने बेहद सराहा। फिर तो ईरान में सिनेमा सरपट दौडऩे लगा और धीरे-धीरे ईरानी शहरों में नागरिकता का प्रतीक बन गया।

विदेशियों के बीच पहुंची इंडस्ट्री की धमक
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ईरान के विश्व प्रसिद्ध कवि फिरदौसी की जीवनी पर बनी फिल्म को 'शाहनामे की सहस्त्राब्दीÓ नामक समारोह में दिखाया गया और विदेशी अतिथियों को इस फिल्म के जरिये ईरानी सिनेमा की जानकारी दी गई। इसके बाद 'शीरीं और फरहादÓ फिल्म बनी, जो एक पुरानी ईरानियन लव स्टोरी है। इसके बाद 'लैला-मजनूÓ के अलावा 1937 में नादिर शाह पर  फिल्म 'ब्लैक आइजÓ आई, जिसे दर्शकों ने हाथोंहाथ लिया।

जब मंदी में घिरी फिल्म इंडस्ट्री
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ईरानी सिनेमा की यह स्थिति अधिक दिनों तक न चल सकी और विदेशी फिल्मों की भरमार और नए ईरानी फिल्मकारों की आर्थिक समस्याओं के कारण अच्छी फिल्में बनाने वाले लोग किनारे हटते चले गए। द्वितीय विश्व युद्ध भी ईरानी सिनेमा में मंदी का एक मुख्य कारण रहा। वर्ष 1941 में जर्मन विरोधी मोर्चे के ईरान पर अधिकार के बाद रूसियों ने तेहरान के सिनेमा हालों पर कब्जा करना आरंभ किया। इसके बाद भी वर्ष 1948 में फिल्म 'तूफान-ए-जिंदगीÓ आने तक ईरानी फिल्म इंडस्ट्री ने तमाम उतार-चढ़ाव देखे। लेकिन, वर्तमान में ईरानियन सिनेमा का कोई तोड़ नहीं है। खासकर  अपनी बाल फिल्मों के लिए तो ईरान पूरी दुनिया में मशहूर है। उसने हमें सिखाया कि बच्चे बच्चों की समस्याओं को कैसे देखते हैं और उससे निपटने के लिए उनके दिमाग में क्या युक्तियां आती हैं। इसका अपना एक सौंदर्य है।
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Persian cinema changed the world

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Dinesh Kukreti
The fame of Cinema of Iran (Iranian or Persian cinema) is today in every corner of the world.  Especially since the 1990s, Iranian cinema has been playing an important role worldwide.  Only part of Iranian films are starcast and heavy-set.  Iranian filmmakers have changed the world view on many such issues and have made films that have rarely been discussed before.  At the same time, new aspects of artistry and approach have also been revealed.  This is the reason why many critics consider Iranian cinema as part of the main international cinema of the world.

Along with renowned Australian film maker Michael Haneke and German film maker Werner Herzog, many film critics have also praised Iranian films in the list of world's best artistic films.  The first film camera in Iran arrived in the year 1900 during the reign of the Kajari ruler Muzaffaruddin.  This camera was the result of the Kajari ruler's journey to Europe and his surprise at this discovery of the West.  Whereas, the first film was shown in Iran in the year 1905.  Then many people started taking interest in filmmaking in Iran.

By the way, in Iran, film screenings started in courts, rich people and then in marriages and parties.  Then parades, inauguration of Tehran railway station, commencement of Northern Railway, government programs, etc. were the subjects of Iranian films.  Although this work was performed by a select few people in Iran, the audience was very large.

After this, the cinema industry started spreading rapidly in Iran.  The first cinema hall in Iran was made in the crowded area of ​​Tehran.  In 1904, Mirza Ibrahim Khan opened the first movie theater in Tehran.  By 1930, there were 15 theaters in Tehran.  In 1925 Owens Ohanian decided to open a film school in Iran, named Parveresh Gehe Artist Cinema.  An interesting fact about the introduction of cinema in Iran is that in the year 1927 there was a special cinema hall for women.  This is a period when people in many countries of the world did not even hear the name of cinema.  The film's performance had no meaning for him.

'Haji Aga' started in 1930
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The first Iranian silent film was Haji Agha, which was produced in the year 1930 by Professor Owens Ohanian.  In the year 1932, he made another silent film called Abi and Rabi.  It was the story of two clowns named Abi and Rabi, one of whom was tall and the other was of low stature.  Iran's first talk film is' Dukhtare Lur Ó (Lore Girls), made in Mumbai with Iranian artists.  The film was made by Abdul Hussain Sepenta and Ardashir Irani in the year 1933.  It was performed in Tehran's cinema halls, which was highly appreciated by the audience.  Then cinema began to gallop in Iran and gradually became a symbol of citizenship in Iranian cities.

Industry threat reached among foreigners
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The film on the biography of Iran's world famous poet Firdausi was shown in a ceremony called 'Millennium of Shahnamay' and foreign guests were informed about Iranian cinema through this film.  This was followed by the film 'Sheerin Aur Farhad', an old Iranian love story.  After this, in addition to 'Laila-Majnu', in 1937, Nadir Shah's film 'Black Eyes' came, which was taken by the audience.
 

When the film industry fell into recession
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This situation of Iranian cinema could not last long and due to the glut of foreign films and the economic problems of the new Iranian filmmakers, the people who made good films went away.  World War II was also a major cause of the slowdown in Iranian cinema.  After the anti-German front occupied Iran in the year 1941, the Russians started occupying the cinema halls of Tehran.  Even after this, the Iranian film industry saw all the ups and downs until the film 'Hurricane-e-Zindagi' came out in the year 1948.  But, there is currently no break of Iranian cinema.  Iran is famous all over the world especially for its child films.  He taught us how children see children's problems and what tips come to their mind to deal with them.  It has its own beauty.

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