Wednesday, 23 September 2020

दूनघाटी में प्रकृति का अद्भुत सम्मोहन

दूनघाटी में प्रकृति का अद्भुत  सम्मोहन
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दिनेश कुकरेती

कुदरत ने दूनघाटी को बड़ी फुर्सत में संवारा है। विकास की अंधी होड़ ने भले ही दून से बासमती और लीची की महक छीन ली हो, यहां की आबोहवा दूषित कर डाली हो, नहरों को निगल लिया हो, लेकिन शहर के इर्द-गिर्द का वातावरण आज भी सम्मोहित कर देने वाला है। यहां नैसर्गिक सुंदरता के साथ आत्मा को आनंदित कर देने वाली सौम्यता है तो मन को प्रफुल्लित कर देने वाली आध्यात्मिक शांति भी। शहर के पांच से पैंतीस किलोमीटर के दायरे में ऐसे कई सुरम्य एवं मनभावन स्थल मौजूद हैं, जहां एक बार जाने के बाद बार-बार जाने को मन करता है। इनमें रहस्यमय डाकू गुफा (गुच्चूपानी), सहस्रधारा, मालदेवता, चंद्रबनी-गौतम कुंड, संतला देवी मंदिर, कलिंगा (खलंगा) स्मारक, मालसी डीयर पार्क (मिनी जू), लच्छीवाला, बुद्धा टेंपल, राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क, पहाड़ों की रानी मसूरी, ऐतिहासिक श्री गुरु रामराय दरबार साहिब, पौराणिक टपकेश्वर महादेव मंदिर जैसे पर्यटन एवं धार्मिक स्थलों को प्रमुखता से शामिल किया जा सकता है। सैर-सपाटा, शांति, सुकून, अध्यात्म, मौज-मस्ती, पर्यटन आदि जिस भी भाव से आप इन स्थलों पर जाना चाहो, उसी भाव से ये स्थल आपका अभिनंदन करते हैं। हालांकि, विकासात्मक सोच न होने के कारण इनमें से अधिकांश स्थल आज भी देश-दुनिया की नजरों से ओझल हैं। लेकिन, जिम्मेदार प्रयास हों तो इन्हें भी दून के माथे की बिंदी बनाया जा सकता है। आइये! करते हैं कुछ खूबसूरत स्थलों की सैर।



धाराओं का समूह सहस्रधारा
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सहस्रधारा देहरादून से 12 किमी की दूरी पर पहाड़ों में घने जंगलों के बीच स्थित एक प्रमुख पिकनिक स्पॉट है। यहां का मुख्य आकर्षण हैं पहाड़ी के अंदर मौजूद वे छोटी-छोटी गुफाएं, जिनमें लगातार पानी टपकता रहता है। यह पानी गंधकयुक्त है, जो चर्मरोग ठीक करने के गुण रखता है। प्राकृतिक रूप से तराशी हुई ये गुफाएं बाहर से तो स्पष्ट नजर नहीं आतीं, लेकिन इनमें प्रवेश करो तो उनकी छत बारिश की रिमझिम फुहारों की तरह निरंतर टपकती रहती हैं। इन धाराओं के समूहों को सहस्रधारा के नाम से जाना जाता है। गर्मियों में तपिश से बचने को हर साल सैकडों की संख्या में लोग यहां आते हैं। यह स्थान देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के प्रिय स्थानों में भी रहा है।



मणिदीप का अद्भुत आकर्षण
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वर्तमान में सहस्रधारा का मुख्य आकर्षण यहां का रोप-वे है, जिसे मणिदीप नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण समुद्रतल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मणिदीप जाने के लिए किया गया है। मणिदीप पर बड़ों व बच्चों के लिए ओजोन पार्क, सिल्वर फॉल, कॉफी विद नेचर के लिए केफेटेरिया डिस्को थेक टेरिस रेस्टोरेंट जैसे मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं।



जन्नत का अहसास कराती डाकू गुफा
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दुनिया में ऐसी अनेक गुफाएं हैं, जिन्हें उनके विशेष गुणों के कारण खास पहचान मिली। यहां हम आपका परिचय ऐसी ही एक गुफा से करा रहे हैं, जो डाकुओं केलिए प्रसिद्ध है। देहरादून शहर से लगभग आठ किमी दूर अनारवाला गांव के पास स्थित इस गुफा को रॉबर्स केव (अब गुच्चुपानी) के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यह गुफा दून का सबसे लोकप्रिय टूरिस्ट प्लेस है, जहां दूर-दूर से लोग पिकनिक मनाने आते है। स्थानीय लोगों का मानना है कि स्वतंत्रता से पूर्व डाकू इस गुफा का प्रयोग ब्रिटिश सेना से छिपने के लिए एक सुरक्षित घर के रूप में किया करते थे। यह गुफा डाकू मानसिंह की निवास स्थली थी। लगभग 600 मीटर लंबी इस गुफा के अंदर जलधारा केबीच से गुजरना काफी रोमांचक लगने के साथ-साथ मन में रोमांस भी पैदा करता है। इसमें से जाते हुए गुफानुमा अहसास होता है। बहते पानी के दोनों ओर पहाडिय़ां हैं, जिन्हें पानी में चलते हुए या दूर से देखकर ऐसा लगता है, मानो दोनों पहाडिय़ां जुड़ी हुई हैं। जबकि, असल में ऐसा नहीं है। ये पहाडिय़ां आपस में मिलती नहीं हैं, लेकिन इसका पता पास जाने पर ही पता चलता है। पर्यटक जब दोनों पहाडिय़ों के बीच में से निकलकर दूसरी ओर जाते हैं तो उनके मन में खुशी की जो लहर दौड़ती है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। बारिश के मौसम में यहां पानी का प्रवाह भयंकर रूप ले लेता है, जबकि गर्मियों में बिल्कुल शांत रहता है।



कौतुहल पैदा करती किले की दीवार
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घने जंगल और हरे-भरे वातावरण के बीच कलात्मक आकर वाली गुच्चुपानी गुफा को दो भागों में बांटा गया है। गुफा से मध्य में एक किले की दीवार है। हालांकि, किला अब मौजूद नहीं है, लेकिन अवशेष के रूप में मौजूद इसकी दीवार कौतुहल पैदा करती है।


 

पूल साइड रेस्टोरेंट का अहसास

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डाकू गुफा के बाहर निकलते ही वहां पर लगी छतरी और कुर्सियां आपका ध्यान आकर्षित करती हैं। यहां बैठकर मैगी और गरम चाय की चुस्कियां लेना किसी पूल साइड रेस्टोरेंट में बैठने का अहसास कराता है।



संताप हरने वाली संतला देवी
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मां संतला देवी मंदिर देहरादून से लगभग 15 किमी की दूरी पर नूर नदी के ठीक ऊपर स्थित है। पंजाबीवाला से यात्रियों को मंदिर तक पहुंचने के लिए दो किमी की चढ़ाई पैदल नापनी पड़ती है। पंजाबीवाला जैतूनवाला से दो किलोमीटर दूर है, जो कि हरियावाला खुर्द ग्राम पंचायत में पड़ता है। कथा है कि 11वीं सदी में नेपाल के राजा को पता चला कि उनकी पुत्री संतला देवी से एक मुगल सम्राट शादी करना चाहता है। तब संतला देवी अपने भाई संतूर के साथ नेपाल से पर्वतीय रास्तों से चलकर दून के पंजाबीवाला में एक पर्वत पर स्थित किले में निवास करने लगी। इस बात का पता चलने पर मुगलों ने किले पर हमला कर दिया। जब संतला देवी और उनके भाई को अहसास हुआ कि वह मुगलों से लडऩे में सक्षम नहीं हैं तो संतला देवी ने हथियार फेंककर ईश्वर का ध्यान लगा लिया। अचानक एक प्रकाश उन पर चमका और वह पत्थर की मूर्ति में तब्दील हो गईं। साथ ही किले पर आक्रमण करने आए मुगल सैनिक भी उस चमक से अंधे हो गए। उस दिन शनिवार था। कहते हैं इसके बाद किले के स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया और तब से श्रद्धालु यहां पूजा करने आते हैं। शनिवार को मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ता है।



शांति, सुकून एवं अध्यात्म की सैरगाह
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दून में आइएसबीटी से महज चार किमी की दूरी पर मोहब्बेवाला (क्लेमेनटाउन) में स्थित है खूबसूरत बुद्धा टेंपल (बुद्ध मंदिर)। यह एक तिब्बती मठ है, जो मंडोलिंग मठ के रूप में भी प्रसिद्ध है। इस स्थान को बुद्ध मोनेस्ट्री या बुद्ध गार्डन नाम से भी जाना जाता है। यह चार तिब्बती धर्म विद्यालयों में से एक है, जिसे निंगमा कहा जाता है। अन्य तीन विद्यालय शाक्य, काजूयू और गेलुक हैं, जिनका तिब्बती धर्म में बड़ा महत्व है। जापानी वास्तु शैली में बने इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1965 में बौद्ध धर्म की रक्षा एवं संस्कृति के संरक्षण को प्रसिद्ध कोहेन रिनपोछे समेत कई अन्य बौद्ध भिक्षुओं ने कराया था। माना जाता है कि यह एशिया की सबसे बड़ी बौद्ध समाधि है, जहां हर साल हजारों की संख्या में देश-दुनिया के पर्यटक शांति की तलाश में आते हैं। मंदिर में लार्ड बुद्धा और गुरु पद्मसंभावा प्रतिष्ठित हैं। भगवान बुद्ध की 103 फीट ऊंची प्रतिमा की आभा यहां देखते ही बनती है। 220 फीट ऊंचे और पांच मंजिले इस मंदिर के पहली तीन मंजिलों में लार्ड बुद्धा की पेंटिंग्स हैं, जिनमें बुद्ध के जीवन को दर्शाया गया है। मंदिर की चौथी मंजिल से पूरी दून घाटी का नजारा देखा जा सकता है। कहते हैं कि मंदिर को लगभग 50 कलाकारों ने संवारा था। इसमें उन्हें तीन साल का समय लगा। बुद्ध मंदिर में हर साल 500 से ज्यादा लामा शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। बुद्धा टेंपल में आप तिब्बतन संस्कृति से जुड़ी हुई काफी चीजों का आनंद ले सकते हैं। मसलन किताबें, उनका पहनावा, खाना, वास्तुकला व हस्तकला से निर्मित वस्तुएं।



प्रकृति का उपहार मालदेवता
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दून में रहते हुए अगर आपने मालदेवता की सैर नहीं की तो समझिए बहुत-कुछ मिस कर गए। देहरादून शहर से उत्तर-पूरब में मात्र दस किलोमीटर दूर टिहरी जिले की सीमा पर स्थित मालदेवता बेहद रमणीक स्थान है। पहाडिय़ों व छोटे-छोटे झरनों के अलावा संकरी, किंतु कल-कल बहती सौंग नदी और दूर-दूर तक फैले समतल खेत इस क्षेत्र को अद्भुत सौंदर्य प्रदान करते हैं। वैसे तो मालदेवता के आसपास का क्षेत्र घूमने और फोटोग्राफी करने के लिए अति उत्तम है, लेकिन शहर से दूर निर्जनता में होने के कारण यहां समूह में आना ज्यादा उपयुक्त है।



डीयर पार्क का ताजगीभरा अहसास
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शिवालिक पर्वत शृंखला की तलहटी में देहरादून-मसूरी रोड पर राजपुर स्थित मालसी डीयर पार्क तेंदुआ, हिरण, नीलगाय, चीतल, काकड़, घुरल, सांभर, कालामृग, गुलदार, उल्लू, कॉकाटेल, मोर, अफ्रीकन ग्रे पैरेट, मकाउ, मगरमच्छ समेत दुर्लभ प्रजाति के पङ्क्षरदों के लिए प्रसिद्ध है। वर्ष 1976 में इस पार्क का निर्माण 25 हेक्टेयर क्षेत्र में किया गया था, जिसका दायरा अब बढ़ा दिया गया है। मसूरी जाने से पहले आमतौर पर पर्यटक यहां रुककर शांत वातावरण का आनंद उठाते हैं। सर्वे चौक से पब्लिक ट्रांसपोर्ट के जरिये यहां महज 20 मिनट में पहुंचा जा सकता है। मालसी डीयर पार्क में 27 प्रजाति के करीब 344 पशु-पक्षी मौजूद हैं। खासकर चेन्नई से लाया गया शुतुरमुर्ग तो सबको आकर्षित करता है। हालांकि, अब केंद्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण ने मालसी डीयर पार्क का दर्जा बढ़ा दिया है। पहले यह मिनी चिडिय़ाघर की श्रेणी में आता था, लेकिन अब इसे मीडियम का दर्जा दे दिया गया है। यहां बच्चों के लिए प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा एक पार्क भी विकसित किया गया है। मनमोहक वातावरण के कारण यहां ताजगी का अहसास होता है, जिससे यह एक आदर्श दर्शनीय स्थल और पिकनिक स्पॉट बन चुका है।


 
ताप-संताप हरने वाला गौतम कुंड
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दून के पर्यटन स्थलों में चंद्रबनी  (चंद्रबाणी) मंदिर का अपना विशिष्ट स्थान है। शिवालिक श्रेणियों के मध्य देहरादून-दिल्ली रोड पर शहर से छह किमी दूर स्थित इस स्थान को पौराणिक कथाओं में महर्षि गौतम, उनकी पत्नी अहिल्या और पुत्री अंजनी का निवास स्थान बताया गया है। एक अन्य मान्यता के अनुसार किसी समय देवी अहिल्या अपनी पुत्री अंजना के साथ यहां आई थीं। यह वही अंजना हैं, जिनसे बाद में हनुमानजी की उत्पत्ति मानी जाती है। यहां पर एक कुंड भी है। मान्यता है कि महर्षि गौतम ने तपस्या से प्रसन्न होकर यहां पर मां गंगा प्रकट हुई थी, इसलिए इसका गौतम कुंड नाम पड़ा। मुख्य मार्ग से दो किलोमीटर दूर स्थित इस कुंड का अपना विशेष महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि इस कुंड में डुबकी लगाने से मनुष्य के समस्त कष्टों का नाश होता है। यहां प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं। बैसाखी के मौके पर यहां दो से तीन दिन विशाल मेले का आयोजन होता है।



वीरता का गवाह खलंगा दुर्ग
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आपने दून में सहस्रधारा रोड पर कलिंगा (खलंगा) स्मारक जरूर देखा होगा। इसका संबंध गोरखा सेनानायक बलभद्र सिंह खलिंगा थापा से है, जिसने वर्ष 1802-03 से 1815 के बीच कलिंगा स्मारक के ठीक पीछे दूर ऊपर पहाड़ी पर एक किला बनाया था। इसे खलंगा फोर्ट कहा जाता है। देहरादून शहर के उत्तर-पूरब में लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर और ननूरखेड़ा, मंगलूवाला, बझेत, अस्थल व किरसाली गांव के मध्य साल के घने जंगल के बीच समुद्रतल से करीब 850 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह बेहद दुर्गम स्थान है। वर्ष 1814 में नालापानी के समीप खलंगा पहाड़ी पर महज 600 गोरखा सैनिकों ने दस हजार की तादाद वाली अंग्रेजी फौज को नाकों चने चबवा दिए थे। खास बात ये कि गोरखा सैनिकों के पास हथियारों के नाम पर सिर्फ खुखरियां ही थीं। जबकि, अंग्रेज फौज बंदूकों और तोप से लैस थी। इस लड़ाई में जहां गोरखा सैनिकों का नेतृत्व कर बलभद्र सिंह ने शहादत पाई, वहीं अंग्रेज फौज के कमांडर भी मारे गए। युद्ध में विजयी अंग्रेज सेना ने अपने नायक मेजर जनरल रॉबर्ट रोलो जिलेस्पी और बलभद्र थापा की याद में देहरादून शहर से पांच किमी दूर सहस्रधारा रोड पर दो स्मारक बनवाए। इसमें बलभद्र थापा और उनकी फौज को 'वीर दुश्मनÓ कहकर संबोधित किया गया है।



मौज-मस्ती की सबसे बेहतर जगह
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दून में कुछ स्थान ऐसे भी हैं, जिन्हें प्रकृति ने मानो मौज-मस्ती के लिए ही बनाया हो। इन्हीं में एक है देहरादून से महज 17 किमी की दूरी पर स्थित लच्छीवाला पिकनिक स्थल। हरा-भरा जंगल और उसमें विचरते जंगली जानवर, सौंग नदी की धारा पर बने स्वीमिंग पूल इसे अद्भुत सौंदर्य प्रदान करते हैं। असल में सौंग नदी के किनारे 12 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला लच्छीवाला राजाजी टाइगर रिजर्व का ही विस्तार है। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि यहां हर तरह की आर्थिक स्थिति वाले लोग सैर-सपाटे का आनंद ले सकते हैं। यहां तक कि नौकायन का आनंद लेने के लिए भी मामूली रकम अदा करनी पड़ती है। यही वजह है कि छुट्टियों के दिनों में यहां मेला-सा लगा रहता है। यह पिकनिक स्थल एक अक्टूबर से 31 मार्च तक सुबह नौ से शाम पांच बजे तक और एक अप्रैल से 30 सितंबर तक सुबह आठ से शाम छह बजे तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है। पार्क में प्रवेश के लिए मामूली-सा शुल्क देना होता है। यहां वन विभाग के गेस्ट हाउस में पर्यटकों के रहने की सुविधा भी उपलब्ध है। लच्छीवाला क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय वन घरों में से एक भी है, जो एक प्रशासनिक और पर्यटन केंद्र के रूप में कार्य करता है।

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