Thursday 26 November 2020

हिमालय में पंच केदार दर्शन


हिमालय में पंच केदार दर्शन 
---------------------------------
दिनेश कुकरेती
हिमालय में स्थित शैव संप्रदाय के शिव को समर्पित पांच मंदिरों के समूह को पंच केदार कहा गया है। माना जाता है कि इन सभी मंदिरों को पांडवों ने बनाया था, जो गढ़वाल हिमालय में काफी ऊंचाई पर स्थित हैं। इनमें से चार तीर्थ केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ व मध्यमेश्वर तो सिर्फ अप्रैल से अक्टूबर तक ही खुलते है। कल्पेश्वर एकमात्र धाम है, जो सालभर तीर्थ यात्रियों के लिए खुला रहता है। इनमें से केदारनाथ मुख्य मंदिर है, जो हिमालय के प्रसिद्ध छोटे चार धामों में से एक है। 
केदारनाथ देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में भी शामिल है। एक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें महादेव का आशीर्वाद लेने की सलाह दी। इसके लिए पांडव भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी पहुंचे। लेकिन, भगवान पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए हिमालय में गुप्तकाशी आकर छिप गए। पांडव यह जान चुके थे, इसलिए भगवान उनके गुप्तकाशी पहुंचने से पहले ही केदारनाथ पहुंच गए और बैल का रूप धारण कर अन्य पशुओं के बीच चले गए। पांडवों को संदेह हुआ तो भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए पर भगवान शिव रूपी बैल पैरों के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बैल पर झपटे तो बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भोलेनाथ पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प से प्रसन्न हुए और दर्शन देकर उन्हें पाप मुक्त कर दिया। 
तभी से भगवान बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते हैं। अंतर्ध्‍यान होते समय भगवान के धड़ से ऊपर का हिस्सा काठमांडू नेपाल में प्रकट हुआ और वह पशुपतिनाथ कहलाए। शिव की भुजाएं तृतीय केदार तुंगनाथ, मुख चतुर्थ केदार रुद्रनाथ, नाभि द्वितीय केदार मध्यमेश्वर, पृष्ठ भाग यानी पीठ प्रथम केदार केदारनाथ और जटा पंचम केदार कल्पेश्वर में प्रकट हुई। 
 
पंचकेदार में श्रेष्ठ केदारनाथ धाम 
------------------------------------ 
 
समुद्रतल से 11750 फीट की ऊंचाई पर केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। बारह ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ धाम का सर्वोच्च स्थान है। केदारनाथ धाम में भगवान शिव के बैल रूप में पृष्ठ भाग के दर्शन होते हैं। त्रिकोणात्मक स्वरूप में यहां पर भगवान का विग्रह है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली के केदारनाथ मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण पांडवों ने कराया था, जबकि आद्य शंकराचार्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। मंदिर की विशेषता यह है कि 2013 की भीषण आपदा में भी उसे आंच तक नहीं पहुंची। 
 
मध्यमेश्वर धाम में मध्य भाग के दर्शन 
------------------------------------------- 
 
द्वितीय केदार भगवान मध्यमेश्वर का धाम 9700 फीट की ऊंचाई पर चौखंभा शिखर की तलहटी में स्थित है। यहां बैल रूप में भगवान शिव के मध्य भाग के दर्शन होते हैं। दक्षिण भारत के शैव पुजारी केदारनाथ की तरह यहां भी पूजा करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। मान्यता है कि यहां  के जल की कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं। शीतकाल में छह माह यहां कपाट बंद रहते हैं। 
 
भारत का सबसे ऊंचा शिवधाम तुंगनाथ 
-------------------------------------------- 
 




























तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ का धाम भारत का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है। समुद्रतल से 12235 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस धाम में महिष रूपी शिव का धड़ प्रतिष्ठित है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से उत्तराखंड शैली में निर्मित यह मंदिर बेहद रमणीक स्थल पर निर्मित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण कराया। वर्तमान मंदिर को एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है। मक्कूमठ के मैठाणी ब्राह्मण यहां के पुजारी होते हैं। शीतकाल में यहां भी छह माह के लिए कपाट बंद रहते हैं। तब मक्कूमठ में भगवान तुंगनाथ की पूजा होती है। 
 
भगवान रुद्रेश्वर के एकानन दर्शन 
------------------------------------ 
 
चतुर्थ केदार के रूप में भगवान रुद्रनाथ जगप्रसिद्ध हैं। यह मंदिर समुद्रतल से 10670 फीट की ऊंचाई पर एक गुफा में स्थित है। बुग्यालों के बीच गुफा में भगवान शिव के मुखारबिंद यानी मुख दर्शन में होते हैं। भारत में यह अकेला स्थान है, जहां भगवान शिव के मुख की पूजा होती है। एकानन के रूप में रुद्रनाथ, चतुरानन के रूप में पशुपतिनाथ नेपाल और पंचानन विग्रह के रूप में इंडोनेशिया में भगवान शिव के मुख दर्शन होते हैं। रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम घाटी के दमुक गांव से गुजरता है, लेकिन बेहद दुर्गम होने के कारण श्रद्धालुओं को यहां पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं। सो, ज्यादातर श्रद्धालु गोपेश्वर के निकट सगर गांव से यहां के लिए यात्रा शुरू करते हैं। शीतकाल में कपाट बंद होने पर गोपेश्वर में भगवान रुद्रनाथ की पूजा होती है। 
 
कल्पेश्वर धाम : जटा रूप में विराजमान हैं शिव 
--------------------------------------------------- 
 पंचम केदार के रूप में कल्पेश्वर धाम विख्यात है। समुद्रतल से 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए दस किमी का सफर पैदल तय करना पड़ता है। कल्पेश्वर धाम को कल्पनाथ नाम से भी जाना जाता है। यहां सालभर भगवान शिव के जटा रूप में दर्शन होते हैं। कहते हैं कि इस स्थल पर दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे घोर तप किया था। तभी से यह स्थान कल्पेश्वर या 'कल्पनाथÓ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अन्य कथा के अनुसार देवताओं ने असुरों के अत्याचारों से त्रस्त होकर कल्पस्थल में नारायण स्तुति की और भगवान शिव के दर्शन कर अभय का वरदान प्राप्त किया था। मंदिर के गर्भगृह का रास्ता एक गुफा से होकर जाता है। 
 
एक केदार बूढ़े भी 
------------------- 
 





















उत्तराखंड हिमालय के ऐतिहासिक- पौराणिक मंदिरों की श्रेणी में एक है बूढ़ा केदार (वृद्ध केदारेश्वर) धाम। टिहरी जिले में समुद्रतल से 4400 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर हालांकि पंचकेदार समूह का हिस्सा नहीं है, लेकिन ऐतिहासिक-पौराणिक दृष्टि से इसका महत्व भी पंचकेदार सरीखा ही है। वृद्ध केदारेश्वर की चर्चा स्कंद पुराण के केदारखंड में सोमेश्वर महादेव के रूप में मिलती है। मान्यता है कि गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाने को पांडव इसी मार्ग से स्वर्गारोहण यात्रा पर गए थे। यहीं बालगंगा-धर्मगंगा के संगम पर भगवान शिव ने बूढ़े ब्राह्मण के रूप में पांडवों को दर्शन दिए थे। इसलिए बूढ़ा केदारनाथ कहलाए। बूढ़ा केदार मंदिर के गर्भगृह में विशाल लिंगाकार फैलाव वाले पाषाण पर भगवान शिव की मूर्ति और लिंग विराजमान है। इतना बड़ा शिवलिंग शायद ही देश के किसी मंदिर में हो। इस पर उभरी पांडवों की मूर्ति आज भी रहस्य बनी हुई है। बगल में ही भू-शक्ति, आकाश शक्ति और पाताल शक्ति के रूप में विशाल त्रिशूल विराजमान है। बूढ़ा केदार मंदिर के पुजारी नाथ जाति के राजपूत होते हैं। वह भी, जिनके कान छिदे हों। 
 
षष्ठम केदार पशुपतिनाथ 
---------------------------- 
 पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किमी उत्तर-पश्चिम में बागमती नदी के किनारे देवपाटन गांव में स्थित है। पशुपतिनाथ दरअसल चार मुखों वाला लिंग हैं। पूर्व दिशा की ओर वाले मुख को तत्पुरुष, पश्चिम दिशा वाले मुख को सद्ज्योत, उत्तर दिशा वाले को वामवेद और दक्षिण दिशा वाले मुख को अघोरा कहते हैं। इस मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था। लेकिन, उपलब्ध ऐतिहासिक दस्तावेज 13वीं सदी केही हैं। मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ और इसे वर्तमान स्वरूप नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में प्रदान किया। यह मंदिर यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में भी शामिल है। 15वीं सदी के राजा प्रताप मल्ल से शुरू हुई परंपरा है कि मंदिर में चार पुजारी (भट्ट) और एक मुख्य पुजारी (मूल-भट्ट) दक्षिण भारत से आते हैं। मान्यता है कि जब बैल रूप में भगवान शिव केदारेश्वर में अंतर्ध्यान हुए तो उनका मुख नेपाल में प्रकट हुआ। यहां वे पशुपतिनाथ कहलाए। 
 
विल्व केदार में किरात संग अर्जुन का युद्ध
---------------------------------------------- 
 
कोटद्वार-पौड़ी-श्रीनगर मोटर मार्ग पर खंडाह नामक स्थान के पास मंजुमती नदी के किनारे खांडव मुनि ने तप किया था। तब से इसका नाम खांडव नदी पड़ा। महाभारत आदिपर्व के अध्याय-95 व वनपर्व के अध्याय-90 में उल्लेख है कि राजर्षि ययाति और महर्षि भृगु ने खांडव व अलकनंदा नदी के संगम शिवप्रयाग पर पूर्व काल में तप किया था। इसी के ठीक विपरीत अलकनंदा के दायें किनारे, जहां ढुंढि ऋषि ने तप किया, उसे ढुंढि प्रयाग कहा जाता है। इसके उत्तर की ओर का पर्वत इंद्रकील पर्वत है। शिवप्रयाग में शिव माया से निर्मित मृग के वध के लिए अर्जुन और किरात रूपी शिव के बीच घनघोर युद्ध हुआ और अर्जुन को परास्त होना पड़ा। तब अर्जुन ने यहां शिवलिंग की स्थापना कर विल्वपत्र व कमल माल्य से शिव की आराधना की। इसलिए यहां स्थापित शिवलिंग विल्व केदार नाम से प्रसिद्ध हुआ। विल्व केदार महादेव का यहां प्राचीन मंदिर है।

1 comment: