चलते-फिरते भूख शांत करने वाला भोजन बुखणा
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दिनेश कुकरेती
एक दौर में मां जब किसी व्यक्ति के माध्यम से अपनी दूर ब्याही बेटियों को मायके की राजी-खुशी का रैबार (संदेश) देती थी तो उसके हाथ समौण (याद) के रूप में मौसम के अनुसार बुखणा (खाजा) जरूर भेजती थी। बेटी को जब मां के भेजे बुखणा मिलते थे तो उसे लगता था, मानो सारे संसार की खुशियां मिल गई हैं। इसी तरह घसियारियां (बहू-बेटी) जब घास-लकड़ी लेने जंगल जाती थीं तो उनके सिर पर बुखणा की पोटली जरूर होती थी। असल में बुखणा पहाड़ का ऐसा भोजन है, जिसे भूख शांत करने के लिए चलते-फिरते, काम करते हुए या क्षणिक विश्राम के दौरान सुकून के साथ खाया जा सकता है। हालांकि, आज यह परंपरा लगभग क्षीण हो चली है। आइए! हम भी बुखणा का लुत्फ लें।
चावल के बुखणा
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चावल के बुखणा बनाने के लिए धान की फसल काटते समय अधपकी बालियों को अलग कर दिया जाता है। इन बालियों को कढ़ाई या अन्य किसी बड़े बर्तन में हल्की आंच पर भूना जाता है। लेकिन, यदि बाली पूरी तरह सूख चुकी हो तो उसे नरम करने के लिए भूनने से पहले पानी में भिगोया जाता है। भूनने के बाद बालियों के ठंडा होने पर उन्हें ओखली में कूटा जाता है। कूटते समय धान के साथ भंगजीर के पत्ते भी डालते हैं और फिर सूप से अच्छी तरह फटककर भूसा अलग कर लिया जाता है। बस! तैयार हैं चावल के बुखणा।
चावल के मीठे बुखणा
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मीठे बुखणा बनाने के लिए चावल के वजन का आधा गुड़ कम पानी में उबालकर रख लिया जाता है। फिर कढ़ाई में चावल को भूनकर फटाफट गुड़ के पानी में डाल देते हैं। अच्छी तरह मिलाने के बाद बर्तन को थोड़ी देर ढककर रख देते हैं। फिर बर्तन से ढक्कन हटाकर चावल को हल्का सूखने देते हैं। लो जी! तैयार हैं मीठे बुखणा।
चीणा के बुखणा
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एक जमाने में चीणा (वानस्पतिक नाम पेनिकम मैलेशियम) के बुखणा (चिन्याल) पहाड़ में काफी प्रचलित रहे हैं। उत्तरकाशी जिले में एक कस्बे का 'चिन्यालीसौड़Ó नाम तो चीणा की फसल के कारण ही पड़ा। उस दौर में कुछ लोग तो सिर्फ बुखणा बनाने के लिए ही चीणा की खेती किया करते थे। चीणा के बुखणा भी धान की तरह ही भूनकर बनाए जाते हैं। लेकिन, इनकी महक धान के बुखणा की अपेक्षा कई गुणा अधिक होती है। भंगजीर के हरे पत्ते मिलाने पर तो इनका स्वाद लाजवाब हो जाता है। हालांकि, खेती के तौर-तरीकों में आए बदलावों के साथ अब चीणा की खेती भी चुनिंदा इलाकों में ही हो रही है।
कौणी-झंगोरा के बुखणा
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मुंह में मिठास और तन में स्फूर्ति घोल देता है बुखणा
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बुखणा पहाड़ का चलता-फिरता फॉस्ट फूड है। यह 'रेडी टू ईटÓ जरूर है, लेकिन आधुनिक फास्ट फूड की तरह सिर्फ पेट भरने वाला भोजन नहीं। एक पंक्ति में कहें तो यह नारियल की तरह आहिस्ता-आहिस्ता चबा-चबाकर खाया जाने वाला ऐसा खाद्य है, जो मुंह में मिठास और तन में स्फूर्ति घोल देता है। बुखणा दांतों को भी मजबूती प्रदान करता है। एक परफैक्ट फूड बनाने के लिए इसमें अखरोट, सिरोला (चुलू की मीठी गिरी), तिल, भंगजीर आदि मिलाए जाते हैं। इनसे बुखणा का स्वाद ही नहीं, पौष्टिकता भी बढ़ जाती है। अखरोट ग्लूकोज को नियंत्रित करता है और हृदय रोग व डायबिटीज नहीं होने देता।सुपाच्य, पौष्टिक एवं ऊर्जा का स्रोत
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बुखणा के साथ यदि अखरोट, भंगजीर, सिरोला, तिल आदि भी मिला लिए जाएं तो इनका स्वाद और पौष्टिकता, दोनों ही बढ़ जाते हैं। यह सुपाच्य एवं शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाला भोजन है।
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