असल आजादी तो आत्मिक सुख है
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दिनेश कुकरेती
एक कहानी है कि किसी राजा ने बोलते तोते को सोने के पिंजरे में बंद कर दिया। वह उसे खाने को अच्छे-अच्छे व्यंजन देता, लेकिन कुछ दिन बाद तोता मर गया। मंत्री ने राजा को तोते की मृत्यु का कारण उसकी आजादी छीन लेना बताया। राजा को अपने किए पर पछतावा हुआ और उसका हृदय परिवर्तन हो गया।
अब वह रोजाना सुबह-सुबह जंगल में जाता, पक्षियों को दाना-पानी देता और उनको चहचहाते हुए सुनता। पहले पक्षी उससे दूर रहते थे, लेकिन धीरे-धीरे वह राजा के समीप बैठने लगे और कुछ दिन बाद तो पक्षी कभी राजा के सिर पर बैठ जाते तो कभी कंधे और भुजाओं पर।
राजा को अब लगने लगा कि यही है आत्मिक सुख और किसी के साथ रहकर उनके विचारों को जानने एवं समझने का सही तरीका। सच कहें तो यह आत्मिक सुख ही असली आजादी है। इतिहास के पन्ने पलटें तो आजादी मिलने से पहले आजादी के यही मायने हुआ करते थे, लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं।
हर व्यक्ति के लिए आजादी का अलग अर्थ
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प्रसिद्ध कथाकार जितेन ठाकुर कहते हैं कि आज गरीब आदमी के लिए आजादी का अर्थ गरीबी से आजादी है, तो अशिक्षित व्यक्ति के लिए अशिक्षा से आजादी। कहने का मतलब हर वर्ग और व्यक्ति के लिए आजादी के अलग-अलग मायने हैं। लेकिन, वर्तमान में जिस आजादी की सबको सबसे ज्यादा जरूरत है, वह है बेकारी, महंगाई व भ्रष्टाचार से आजादी। असल में जिस अर्थ एवं भाव के साथ हमने आजादी की लड़ाई लड़ी और हमारे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने हमें जो 'अर्थÓ दिया, हम कहीं-न-कहीं उससे भटक गए हैं। कुव्यवस्था की विडंबना ने उसे विद्रूप बना दिया है।
हमारी सोच तो अभी भी गुलाम है
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कथाकार मुकेश नौटियाल कहते हैं, एक दौर वह भी था, जब वीर योद्धाओं में दीवानों की तरह मंजिल पा लेने का हौसला तो था, लेकिन बर्बादियों का खौफ न था। दीवानों की तरह आजादी के ये परवाने भी मंजिलों की ओर बढ़ते चले गए। बड़े से बड़े जुल्म-औ-सितम भी उनके कदमों को न रोक सके। अपने हौसलों से हर मुश्किल का सीना चीरते हुए वे आजादी की मंजिल की तरफ बढ़ते ही चले गये। हम आजाद हुए तो कितना कुछ बदल गया। लेकिन, क्या ही अच्छा होता कि हमारी समाज को गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अज्ञानता और अंधविश्वास की गुलामी से आजाद करने वाली भी सोच होती।
कौन आजाद हुआ, किसके माथे से...
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अली सरदार जाफरी लिखते हैं, 'कौन आजाद हुआ, किसके माथे से गुलामी की सियाही छूटी, खंजर आजाद है सीनों में उतरने के लिए, मौत आजाद है लाशों पे गुजरने के लिए।Ó वर्तमान का परिदृश्य ऐसा ही तो है। जरा इन आंकड़ों पर गौर फरमाएं, 15 अगस्त 1947 को भारत न सिर्फ विदेशी कर्जों से मुक्त था, बल्कि इसके उलट ब्रिटेन पर उसका 16.62 करोड़ रुपये का कर्ज था। लेकिन, आज देश पर 50 अरब रुपये से भी ज्यादा का विदेशी कर्ज है। आजादी के समय जहां एक रुपये के बराबर एक डॉलर होता था, वहीं आज एक डॉलर की कीमत 61 रुपये तक पहुंच गई है। महंगाई पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है और जल्द ही इस स्थित में सुधार को प्रयास नहीं हुए तो हम मानसिक गुलामी के साथ आर्थिक गुलामी के चंगुल में भी फंस जाएंगे।
कुसंस्कारों के बंधन से कब होंगे आजाद
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साहित्यकार सुनील भट्ट कहते हैं कि हम अंग्रेजों के बंधनों से तो आजाद हो गए, लेकिन कुसंस्कारों के बन्धन से कब आजाद होंगे। हमारी आजादी का अर्थ केवल अंग्रेजों के चंगुल से छुटकारा पाने का नाम नहीं था। सही मायने में आजादी तो उस पूर्ण स्वतंत्रता का नाम है, जब लोग परस्पर घुल-मिलकर रहें। तभी हम दिमागी गुलामी से भी आजाद हो पाएंगे।
वर्ग विशेष तक सिमटकर रह गई आजादी
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साहित्यकार डॉ. कुटज भारती कहते हैं कि हम अंगे्रजों के गुलाम भले ही न हों, लेकिन आज भी आम आदमी को भूख से आजादी है न बीमारी से ही। शिक्षा के अभाव में आबादी का बड़ा हिस्सा अंधेरे का गुलाम बना हुआ है। हम न तो कन्या भ्रूण हत्या रोक पाए हैं, न बाल विवाह और दहेज को लेकर महिलाओं का उत्पीडऩ ही। इससे पूरा सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो रहा है। जहां तक दलितों और आदिवासियों के शोषण और तिरस्कार का सवाल है, इसके लिए दिखाने को कानून तो बहुत से हैं, पर हकीकत में ये तबके आजादी से कोसों दूर हैं।
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Real freedom is spiritual happiness
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Dinesh Kukreti
There is a story that a king kept a talking parrot in a sleeping cage. He would give him good dishes to eat, but a few days later the parrot died. The minister told the king the death of the parrot was to take away his freedom. The king regrets his actions and has a change of heart.
Now he used to go to the forest every morning, give food and water to birds and listen to them chirping. At first the birds used to stay away from him, but gradually he started sitting near the king and after a few days, the birds would sometimes sit on the head of the king, sometimes on the shoulders and arms.
The king now felt that this is spiritual happiness and the right way to know and understand his thoughts by being with someone. To be true, this spiritual happiness is the real freedom. Turn the pages of history, before independence, this was the meaning of independence, but now the situation has changed.
Different meaning of freedom for every person
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Famous narrator Jiten Thakur says that today freedom for poor man means freedom from poverty, and for illiterate person freedom from illiteracy. To say that freedom means different things for every class and person. But, the freedom that everyone needs most at present is freedom from unemployment, inflation and corruption. In fact, we have lost some sense of the meaning and sentiment with which we fought for freedom and the meaning that our great freedom fighters gave us. The irony of mismanagement makes him a squid.
Our thinking is still a slave
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The narrator, Mukesh Nautiyal, says that there was a time when brave warriors had the courage to reach the destination like Diwans, but the fear of ruin was not there. Like the Diwans, these freedom spirits also moved towards the floors. Even the biggest oppressors could not stop his steps. With the help of his spirits, he went on moving towards the destination of freedom while tearing every difficulty. When we were free, much changed. But, what good would it be to think that our society would be free from the slavery of poverty, corruption, unemployment, ignorance and superstition.
Who became independent, from whose forehead
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Ali Sardar Jafri writes, "Who is liberated, from whose forehead the slavery is untouched, the dagger is free to enter the seins, death is free to pass over the corpses." The present scenario is like that. Consider these figures, on 15 August 1947, India was not only free from foreign debts, but on the contrary Britain had a debt of Rs 16.62 crore. But, today the country has foreign debt of more than 50 billion rupees. Where one dollar was equal to one rupee at the time of independence, today the value of one dollar has reached 61 rupees. The government has no control over inflation. The entire Indian economy has collapsed and if efforts are not made to improve this situation soon, we will be caught in the clutches of economic slavery along with mental slavery.
When will you be free from the bondage of mischiefs
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Writer Sunil Bhatt says that we were free from the shackles of the British, but when will we be free from the bondage of Kusankars. Our freedom was not merely meant to get rid of the clutches of the British. Freedom in the true sense is the name of that complete freedom, when people live together. Only then will we be free from mind slavery.
Freedom was reduced to a special category
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Writer Dr. Kutaj Bharti says that we may not be slaves of the British, but even today the common man has freedom from hunger or from disease. Due to lack of education, a large part of the population remains a slave of darkness. We have neither been able to stop female feticide, nor the harassment of women for child marriage and dowry. Due to this, the whole social fabric is being disintegrated. As far as exploitation and reproach of Dalits and tribals is concerned, there are many laws to show for this, but in reality these sections are far from independence.
http://dineshkukreti09.blogspot.com/2018/05/?m=1
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