Thursday, 9 July 2020

Childhood

बचपन
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बच्चे और बडो़ं में
यही तो फर्क है
कि- बच्चों के सपने
बडो़ं जैसे छोटे नहीं होते।
वो हंसते हैं तो
बिना हिचक बेसाख्ता
हंसते ही चले जाते हैं
जैसे कर लिया हो इरादा
कायनात को हंसाने का
और-
रोते हैं तो उनके 
ढलकते आंसुओं में भी
नजर आती हैं
बेपनाह बेफिक्री।
पर-
जैसे-जैसे 
बडे़ होते जाते हैं बच्चे
छोटा होने लगता है उनके
सपनों का आकार
सिमटने लगता है उनकी
उन्मुक्त हंसी का दायरा
स्वार्थी होने लगते हैं
उनके आंसू
हम बडो़ं की तरह
और-
फिर एक दिन
उन सपनों को भी झटककर
चल पड़ते हैं अपनी राह
जो बडी़ उम्मीदों के साथ
देखे थे हमने
उनके लिए
इस बात की 
परवाह किए बिना
कि-
छीन रहे हैं
हम भी तो
उनका बचपन...।

@  दिनेश कुकरेती

Childhood
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 Children and adults
 That's the difference
 That- children's dreams
 They are not small like adults.
 If they laugh
 Unsuspecting
 Go on laughing
 As intended
 Make laugh
 And-
 When they cry
 Even in tears
 Are seen
 Innocent Befree.
 On-
 as
 Children grow up
 Starts getting smaller
 Dream shape
 Starts shrinking
 Free laughter
 Start being selfish
 Their tears
 We grow up
 And-
 then one day
 Twitch those dreams too
 Let's go on our way
 With great expectations
 We saw
 for them
 Of this
 Regardless
 That-
 Snatching
 Us too
 his childhood....

 @ Dinesh Kukreti


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