बचपन
यही तो फर्क है
कि- बच्चों के सपने
बडो़ं जैसे छोटे नहीं होते।
वो हंसते हैं तो
बिना हिचक बेसाख्ता
हंसते ही चले जाते हैं
जैसे कर लिया हो इरादा
कायनात को हंसाने का
और-
रोते हैं तो उनके
ढलकते आंसुओं में भी
नजर आती हैं
बेपनाह बेफिक्री।
पर-
जैसे-जैसे
बडे़ होते जाते हैं बच्चे
छोटा होने लगता है उनके
सपनों का आकार
सिमटने लगता है उनकी
उन्मुक्त हंसी का दायरा
स्वार्थी होने लगते हैं
उनके आंसू
हम बडो़ं की तरह
और-
फिर एक दिन
उन सपनों को भी झटककर
चल पड़ते हैं अपनी राह
जो बडी़ उम्मीदों के साथ
देखे थे हमने
उनके लिए
इस बात की
परवाह किए बिना
कि-
छीन रहे हैं
हम भी तो
उनका बचपन...।
@ दिनेश कुकरेती
@ दिनेश कुकरेती
Childhood
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Children and adults
That's the difference
That- children's dreams
They are not small like adults.
If they laugh
Unsuspecting
Go on laughing
As intended
Make laugh
And-
When they cry
Even in tears
Are seen
Innocent Befree.
On-
as
Children grow up
Starts getting smaller
Dream shape
Starts shrinking
Free laughter
Start being selfish
Their tears
We grow up
And-
then one day
Twitch those dreams too
Let's go on our way
With great expectations
We saw
for them
Of this
Regardless
That-
Snatching
Us too
his childhood....
@ Dinesh Kukreti
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