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दिनेश कुकरेती
प्रकृति के करीब होने के कारण पहाड़ में हमेशा ही स्वास्थ्यवद्र्धक खानपान की परंपरा रही है। हालांकि, शहरी संस्कृति के प्रभाव में आकर लोगों ने इस परंपरा को भुला दिया, लेकिन अंतराल के गांवों में लोग आज भी प्राकृतिक खानपान का लुत्फ लेते हैं। पहाड़ की एक ऐसी ही डिश है रैमोड़ी। इसे आप दुनिया का अद्भुत सलाद भी कह सकते हैं। 'रै मोड़ीÓ या 'रै मुड़ीÓ यानी फूल-पत्ती व कलियों को छुरी से बिना काटे इस तरह तोडऩा-मरोडऩा, जैसे छाछ (मट्ठा) बिलोने की रै (मथनी) घूमती है। चलिए! इस बार हम भी रैमोड़ी का जायका लेते हैं।
चौपाल और रैमोड़ी एक-दूसरे के पूरक
------------------------------------------एक जमाने में गांवों में लोग मिल-जुलकर चौपाल में रैमोड़ी खाते थे। वसंत के आगमन पर खेतों के आसपास और जंगल में तरह-तरह की हरी कलियां और फूल खिल आते थे। तब महिलाएं व बच्चे इन्हें एक स्थान पर इकट्ठा कर बड़ी थाली (परात) में सजाते थे। इस सामग्री को मिश्रित करने का भी एक अलग तरीका हुआ करता था। इसे छुरी से काटने के बजाय, हाथ से ऐसे तोड़ा-मरोड़ा जाता था, जिससे सारी विविधता (फूल-पत्तियां व कलियों) का कीमा न बने। साथ ही स्वाद में भी विविधता रहनी चाहिए। यही है दुनिया का अद्भुत सलाद रैमोड़ी।
महिलाएं ही होती हैं रैमोड़ी की विशेषज्ञ
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रैमोड़ी बनाने की विशेषज्ञ महिलाएं ही होती थीं। इसमें जरूरत के हिसाब से नमक, मिर्च मिलाकर चटपटा बनाने के लिए लोग नींबू का खट्टा व थोड़ा-सा घर का चुलू या सरसों का कच्चा तेल भी डालते थे। सब लोग मिल-जुलकर बड़ी शांति, प्रेम व भाईचारे से आनंदित व उत्साहित होकर रैमोड़ी का जायका लेते थे। रैमोड़ी खाने की एक बड़ी वजह शरीर में पौष्टिक तत्वों की जरूरत को पूरा करना भी होता था। साथ ही हंसी-खुशी का माहौल बना रहता था, सो अलग।
रैमोड़ी में प्रयुक्त होने वाली सामग्री
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बुरांस के फूल, प्याज की हरी पत्तियां छोटे-छोटे प्याज सहित, लहसुन की हरी पत्तियां, हरा धनिया, मूली की छोटी एवं बहुत मुलायम पत्तियां, लाही (तोरिया) व मटर के पौधे, घाल्डा, घेंडुड़ी, तोमड़ी, कुरफली व गुरियाल के फूल की कलियां, मुलायम फलियां, साकिना व बुढ़णी के फूल, कंडरा की जड़ें, तिलण्या, चकोतरा, नींबू आदि।
सालभर बनी रहती है रोग प्रतिरोधक क्षमता
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रैमोड़ी से हालांकि पेट नहीं भरता, लेकिन हंसी-खुशी, मेल-मुलाकात के माहौल में मानसिक खुराक जरूर मिल जाती है। इन जैविक विविधतायुक्त वनस्पतियों के प्राकृतिक स्वाद से सालभर के लिए शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है। सबसे अच्छी बात यह कि आप हर नए सीजन में नियमित रूप से रैमोड़ी का जायका ले सकते हैं।
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