देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर का प्रवेश द्वार
कलसी में न केवल मौर्यवंशी सभ्यता का केंद्र रहा है, बल्कि यहां
द्वापरयुगीन सभ्यता के भी प्रमाण मिले हैं। माना जाता है कि पांडु पुत्रों
ने लंबा समय यहां व्यतीत किया था। पौराणिक ग्रंथों में जिस विराटनगर का
उल्लेख हुआ है, वह कलसी ही था।
कलसी में बिखरे हैं मौर्यवंश के अवशेष
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दिनेश कुकरेती
समुद्रतल से 780 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कलसी (कालसी) देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर काप्रवेश द्वार माना जाता है। देहरादून से 56 किमी दूर यमुना और टोंस नदी के संगम पर स्थित यह स्थान प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारकों, साहसिक खेलों और पिकनिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। महाभारत काल में कलसी पर राजा विराट का शासन रहा और तब इसकी राजधानी विराटनगर हुआ करती थी। महाभारत में उल्लेख है कि अज्ञातवास काल में पांडव वेश बदलकर राजा विराट के महल में ही रहे थे। कलसी में यमुना नदी के किनारे अशोक के शिलालेख प्राप्त होने से इस बात की पुष्टि होती है कि यह क्षेत्र कभी काफी संपन्न रहा होगा। सातवीं सदी में इस क्षेत्र को 'सुधनगरÓ के रूप में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी देखा था। यही सुधनगर बाद में कलसी के नाम से जाना गया। लगभग 800 वर्ष पूर्व दून क्षेत्र की बंजारा जाति के लोग यहां आ बसे और इसी के साथ यह क्षेत्र गढ़वाल के राजा को कर देने लगा। कुछ समय बाद इस ओर इब्राहिम बिन महमूद गजनवी का हमला हुआ।
लोकप्रिय आकर्षण 'अशोकन रॉक एडिक्टÓ
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भारतीय पुरालेखों में से एक 'अशोकन रॉक एडिक्टÓ कलसी का अति महत्वपूर्ण स्मारक और लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक है। यह वह पत्थर है, जिस पर मगध के मौर्यवंशी सम्राट अशोक की 14वीं राजाज्ञा को 253 ईस्वी पूर्व में उत्कीर्ण किया गया है। इसे वर्ष 1860 में जॉन फॉरेस्ट प्रकाश में लाए। प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण यह राजाज्ञा बौद्ध-धर्म के मुख्य सिद्धांतों का संग्रह है, जिसमें अहिंसा पर सबसे अधिक बल दिया गया है। दस फीट लंबी, आठ फीट चौड़ी और दस फीट ऊंची इस संरचना को एक हाथी की रूपरेखा के साथ उत्कीर्ण किया गया है। उसके दो पैरों के बीच 'गजतमेÓ शब्द अंकित है। हाथी को आकाश से उतरता दिखाया गया है, इससे माता के गर्भ में भगवान बुद्ध के आने का आभास होता है। अशोक के ओडिशा स्थित धौली (कलिंग) शिलालेख में भी हाथी की आकृति उकेरी गई है, जो उसके बौद्ध धर्मानुयायी होने का द्योतक है। कलसी में पांच यवन (ग्रीक) राजाओं आंतिओचुस, मैगस, आंतिगोनुस, टॉलेमी और अलेक्जेंडर के नाम भी चट्टान पर उत्कीर्ण हैं।
अशोक की लोक कल्याणकारी सोच
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मौर्य सम्राट अशोक की गणना विश्व के महानतम शासकों में होती है। उसने अपने विशाल साम्राज्य में अनेक स्तूपों, विहारों, शिलालेखों, स्तंभ लेखों व गुहा लेखों की स्थापना कराई। इनके माध्यम से वह देश में लोक कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना को मूर्त स्वरूप प्रदान करना चाहता था। अभी तक अशोक के14 शिलालेख, सात स्तंभ लेख और तीन गुहा लेख ही भारत के विभिन्न स्थानों पर मिले हैं, जिनसे तात्कालीन भारत की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थितियों पर व्यापक रूप से प्रकाश पड़ता है।
हिंदी में भी अनुदित है शिलालेख
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मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में लिखा कलसी का शिलालेख भारतीय
पुरातत्व
सर्वेक्षण विभाग के अधीन है। यह लिपि बायीं ओर से दाहिनी ओर को उसी तरह लिखी जाती थी, जैसे अन्य विभिन्न भारतीय भाषाओं कि लिपियां लिखी
जाती हैं। लेकिन, उस समय अक्षरों के ऊपर शिरोरेखा का प्रयोग बिल्कुल नहीं
किया जाता था। कलसी के शिलालेख को हिंदी में भी अनुदित किया गया है, ताकि
जिज्ञासुजन व अध्येता मौर्य सम्राट के मंगलकारी संदेशों व उद्घोषणाओं का
निहितार्थ भली-भांति समझ सकें।
इतिहास का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य
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चक्रवर्ती सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 304 से ईसा पूर्व 232) शक्तिशाली मौर्य राजवंश के महान सम्राट रहे हैं। उनका पूरा नाम देवानांप्रिय (देवताओं का प्रिय) अशोक मौर्य था। अशोक ने ईसा पूर्व 269 से 232 तक प्राचीन भारत में राज किया। उनका साम्राज्य आज के संपूर्ण भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान व म्यांमार के अधिकांश भूभाग तक फैला था। जो कि आज तक के इतिहास में सबसे विशाल भारतीय साम्राज्य माना जाता है। अशोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों व राजाओं में हमेशा शीर्ष पर रहे। इसलिए उन्हें 'चक्रवर्ती सम्राटÓ यानी 'सम्राटों का सम्राटÓ कहा जाता है। यह सम्मान भारत में केवल सम्राट अशोक को ही हासिल हो पाया।
जहां धर्मलेख, वहां अशोक का राज्य
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अशोक के लिए कहीं-कहीं 'अशोकवर्धनÓ नाम भी मिलता है। उसके एक धर्मलेख में उसे 'मगध का राजाÓ कहा गया है। लेकिन, उसके साम्राज्य के लिए उसके लेखों में ज्यादातर 'पृथ्वीÓ या 'जंबूद्वीपÓ शब्द ही मिलते हैं। अशोक की राजधानी पाटलीपुत्र (पटना) में थी। अशोक के धर्मलेख भारत में जिस भी स्थान पर मिले, वहां उसका राज्य निश्चित रूप से रहा। उसने अपने लेखों में 'अपराजितÓ राज्यों का भी स्पष्ट उल्लेखकिया है। दक्षिण भारत के चोल, पांड्य, केरल व ताम्रपर्णी (श्रीलंका) देश अशोक के साम्राज्य के बाहर थे। उसके लेखों में एशिया के कई यवन (यूनानी) राजाओं और मिस्र के तुरमाय या तुलमाय (टॉलमी) राजा का भी उल्लेख मिलता है।
कलिंग युद्ध ने बदली जीवन की धारा
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कलिंग विजय के पश्चात अशोक ने अपने जीवन में कोई दूसरा युद्ध नहीं लड़ा। यह युद्ध महान मौर्य सम्राट अशोक और राजा अनंत पद्मनाभन के बीच 262 ईसा पूर्व कलिंग (वर्तमान ओडिशा) में लड़ा गया था। युद्ध में कुल 15 लाख योद्धाओं ने बलिदान दिया। इनमें एक लाख मौर्य योद्धा भी शामिल थे। विजय के बावजूद इस मार-काट ने अशोक के हृदय में युद्ध के प्रति घृणा उत्पन्न कर दी और वह आचार्य उपगुप्त की शरण में अहिंसा के रास्ते पर चल पड़े। उन्होंने मौर्य साम्राज्य की क्षेत्रीय विस्तार नीति को पूरी तरह से रोक दिया और आगे का अपना पूरा जीवन बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में व्यतीत किया।
हिमालय पार के परिंदों की आरामगाह
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कलसी का एक और आकर्षण है आसन बैराज, जो विभिन्न लुप्तप्राय प्रवासी
परिंदों की आरामगाह के रूप में जाना जाता है। आसन और यमुना नदी के संगम
बिंदु पर स्थित आसन बैराज चार वर्ग किमी में फैली आद्र्रभूमि है। आइयूसीएन
(अंतरराष्ट्रीय प्रकृति
संरक्षण संघ) की रेड डाटा बुक ने यहां के पक्षियों को दुर्लभ प्रजाति घोषित
किया है। सर्दियों के मौसम में हिमालय पार के प्रवासी परिंदे यहां आराम
करते हैं। अक्टूबर के अंत में पर्यटक यहां आकर्टिक क्षेत्र के प्रवासी परिंदों को देख सकते हैं। यहां परिंदों को देखने का सबसे अच्छा समय
अक्टूबर से नवंबर और फरवरी से मार्च के बीच माना जाता है।
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