प्रेम, लगाव एवं सहयोग की विरासत थडिय़ा
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दिनेश कुकरेती
उत्तराखंड के गढ़वाल अंचल का भूगोल जितना आकर्षक है, उतनी ही मनोहारी हैं यहां की लोक परंपराएं। ऐसा भी कह सकते हैं कि गढ़वाल की लोक संस्कृति, यहां के लोग और प्रकृति एक-दूसरे में समाए हुए हैं। इसकी झलक यहां के लोकगीत व लोकनृत्यों में स्पष्ट देखी जा सकती है। गढ़वाल के लोक वाद्य, लोक गीत, लोक नृत्य और शिल्प इतने समृद्ध हैं कि उनमें डूब जाने को मन करता है। खासकर यहां के गीत-नृत्यों में तो
कमाल की विविधता और आकर्षण है। ऐसे ही एक प्रसिद्ध पारंपरिक गीत-नृत्य से हम आपका परिचय करा रहे हैं, जिसे थडिय़ा कहा जाता है। हालांकि, तेज रफ्तार जिंदगी में नई पीढ़ी इस पारंपरिक नृत्य से बहुत दूर चली गई है, लेकिन अंतराल के गांवों में थडिय़ा नृत्य आज भी उसी उत्साह से होता है, जैसा तीन दशक पूर्व तक हुआ करता था।
'थाड़Ó से हुई 'थडिय़ाÓ की उत्पत्ति
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'थडिय़ाÓ शब्द की उत्पत्ति 'थाड़Ó से हुई है, जिसका अर्थ है आंगन या चौक। थोड़ा बड़े अर्थों में इसे खलिहान भी बोल सकते हैं। यानी घर के आंगन में आयोजित होने वाले संगीत और नृत्य के उत्सव को थडिय़ा कहा जाता है। थडिय़ा उत्सव का आयोजन वसंत ऋतु में घरों के आंगन में किया जाता है। वसंत में रातें लंबी होती है, इसलिए गांव के लोग मनोरंजन के लिए मिल-जुलकर थडिय़ा का आयोजन करते हैं।
मंडाण का पूरक नहीं है थडिय़ा नृत्य
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कुछ लोग मंडाण को थडिय़ा नृत्य का पूरक मानते हैं। जबकि, दोनों नृत्य एक-दूसरे से भिन्न हैं। दरअसल, थडिय़ा नृत्य में जहां गांव के सभी लोग मिलकर गायन और नृत्य की जिम्मेदारी लेते हैं, वहीं मंडाण में गीत गाने और वाद्य यंत्रों का संचालन करने वाले विशेष लोग होते हैं, जिन्हें औजी (दास) कहा जाता है। बाकी लोग नृत्य में साथ होते हैं। मंडाण की एक विशेषता यह भी है कि इस आयोजन में शामिल होने के लिए गांव की ब्याहता बेटियों को भी मायके आमंत्रित किया जाता है। इस दौरान मनोहारी गीतों और तालों के साथ गांव के लोग कदम-से-कदम मिलाकर नृत्य का आनंद लेते हैं। जबकि, थडिय़ा नृत्य के साथ-साथ प्रेम, लगाव व सहयोग की सामूहिक विरासत को संजोए हुए है।
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Legacy of love, attachment and cooperation
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Dinesh Kukreti
The folk traditions of Garhwal region of Uttarakhand are as attractive as they are attractive. It can also be said that the folk culture, people and nature of Garhwal are embedded in each other. A glimpse of this can be seen clearly in folk songs and folk dances. The folk instruments, folk songs, folk dances and crafts of Garhwal are so rich that one wants to drown in them. Especially the song-dances here have amazing variety and charm. We are introducing you to one such famous traditional song and dance, which is called Thadiya. Although a new generation in fast-paced life has gone far away from this traditional dance, Thadiya dance in the interurban villages continues with the same enthusiasm as it used to be three decades ago.
'Thad' originated from 'Thadiya'
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The word 'Thadiya' derives from 'Thad', which means courtyard or chowk. It can also be called a barn in a slightly larger sense. That is, the festival of music and dance to be held in the courtyard of the house is called Thadiya. Thadiya festival is organized in the courtyard of the houses in the spring. The nights are long in the spring, so the villagers organize tadia together for entertainment.
Thadiya dance is not a complement to Mandana
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Some consider Mandana to be a complement of Thadiya dance. Whereas, the two dances are different from each other. In fact, in Thadiya dance where all the people of the village take responsibility for singing and dancing together, in Mandana, there are special people who sing songs and perform musical instruments, called auji (slaves). The rest are together in the dance. Another feature of Mandana is that the married girls of the village are also invited to attend this event. During this time, the villagers enjoy dancing together step by step with captivating songs and rhythms. Whereas, Thadiya cherishes the collective legacy of love as well as love, affection and cooperation.
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दिनेश कुकरेती
उत्तराखंड के गढ़वाल अंचल का भूगोल जितना आकर्षक है, उतनी ही मनोहारी हैं यहां की लोक परंपराएं। ऐसा भी कह सकते हैं कि गढ़वाल की लोक संस्कृति, यहां के लोग और प्रकृति एक-दूसरे में समाए हुए हैं। इसकी झलक यहां के लोकगीत व लोकनृत्यों में स्पष्ट देखी जा सकती है। गढ़वाल के लोक वाद्य, लोक गीत, लोक नृत्य और शिल्प इतने समृद्ध हैं कि उनमें डूब जाने को मन करता है। खासकर यहां के गीत-नृत्यों में तो
कमाल की विविधता और आकर्षण है। ऐसे ही एक प्रसिद्ध पारंपरिक गीत-नृत्य से हम आपका परिचय करा रहे हैं, जिसे थडिय़ा कहा जाता है। हालांकि, तेज रफ्तार जिंदगी में नई पीढ़ी इस पारंपरिक नृत्य से बहुत दूर चली गई है, लेकिन अंतराल के गांवों में थडिय़ा नृत्य आज भी उसी उत्साह से होता है, जैसा तीन दशक पूर्व तक हुआ करता था।
'थाड़Ó से हुई 'थडिय़ाÓ की उत्पत्ति
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'थडिय़ाÓ शब्द की उत्पत्ति 'थाड़Ó से हुई है, जिसका अर्थ है आंगन या चौक। थोड़ा बड़े अर्थों में इसे खलिहान भी बोल सकते हैं। यानी घर के आंगन में आयोजित होने वाले संगीत और नृत्य के उत्सव को थडिय़ा कहा जाता है। थडिय़ा उत्सव का आयोजन वसंत ऋतु में घरों के आंगन में किया जाता है। वसंत में रातें लंबी होती है, इसलिए गांव के लोग मनोरंजन के लिए मिल-जुलकर थडिय़ा का आयोजन करते हैं।
मंडाण का पूरक नहीं है थडिय़ा नृत्य
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कुछ लोग मंडाण को थडिय़ा नृत्य का पूरक मानते हैं। जबकि, दोनों नृत्य एक-दूसरे से भिन्न हैं। दरअसल, थडिय़ा नृत्य में जहां गांव के सभी लोग मिलकर गायन और नृत्य की जिम्मेदारी लेते हैं, वहीं मंडाण में गीत गाने और वाद्य यंत्रों का संचालन करने वाले विशेष लोग होते हैं, जिन्हें औजी (दास) कहा जाता है। बाकी लोग नृत्य में साथ होते हैं। मंडाण की एक विशेषता यह भी है कि इस आयोजन में शामिल होने के लिए गांव की ब्याहता बेटियों को भी मायके आमंत्रित किया जाता है। इस दौरान मनोहारी गीतों और तालों के साथ गांव के लोग कदम-से-कदम मिलाकर नृत्य का आनंद लेते हैं। जबकि, थडिय़ा नृत्य के साथ-साथ प्रेम, लगाव व सहयोग की सामूहिक विरासत को संजोए हुए है।
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Legacy of love, attachment and cooperation
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Dinesh Kukreti
The folk traditions of Garhwal region of Uttarakhand are as attractive as they are attractive. It can also be said that the folk culture, people and nature of Garhwal are embedded in each other. A glimpse of this can be seen clearly in folk songs and folk dances. The folk instruments, folk songs, folk dances and crafts of Garhwal are so rich that one wants to drown in them. Especially the song-dances here have amazing variety and charm. We are introducing you to one such famous traditional song and dance, which is called Thadiya. Although a new generation in fast-paced life has gone far away from this traditional dance, Thadiya dance in the interurban villages continues with the same enthusiasm as it used to be three decades ago.
'Thad' originated from 'Thadiya'
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The word 'Thadiya' derives from 'Thad', which means courtyard or chowk. It can also be called a barn in a slightly larger sense. That is, the festival of music and dance to be held in the courtyard of the house is called Thadiya. Thadiya festival is organized in the courtyard of the houses in the spring. The nights are long in the spring, so the villagers organize tadia together for entertainment.
Thadiya dance is not a complement to Mandana
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Some consider Mandana to be a complement of Thadiya dance. Whereas, the two dances are different from each other. In fact, in Thadiya dance where all the people of the village take responsibility for singing and dancing together, in Mandana, there are special people who sing songs and perform musical instruments, called auji (slaves). The rest are together in the dance. Another feature of Mandana is that the married girls of the village are also invited to attend this event. During this time, the villagers enjoy dancing together step by step with captivating songs and rhythms. Whereas, Thadiya cherishes the collective legacy of love as well as love, affection and cooperation.
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