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दिनेश कुकरेती
मैदानों में झुलसाने वाली गर्मी से राहत पानी है तो चले आइए मसूरी। बादलों से अठखेलियां करते बांज, बुरांस और चीड़ के वृक्षों के बीच सर्पीली सड़क पर तन को छूती चंचल हवा मन को तृप्ति देती है। दृश्य ऐसे मानो किसी चित्रकार ने तूलिका से रंग भर अपनी जिंदगी की सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग की रचना की हो। ऐसा नहीं कि मसूरी सिर्फ गॢमयों के लिए मुफीद है, सॢदयों में भी इसका रंग अनूठा होता है।
हिमालय पर्वतमाला की शिवालिक श्रेणी में समुद्रतल से 6600 फीट की ऊंचाई पर बसी पहाड़ों की रानी मसूरी का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। वर्ष 1825 में एक अंग्रेज अधिकारी कैप्टन यंग ने इस स्थान की तलाश की। मसूरी के इतिहास के जानकार जयप्रकाश भारद्वाज बताते हैं कि कैप्टन यंग को यहां की आबोहवा इंग्लैंड जैसी लगी और उन्होंने यहां एक बंगले का निर्माण कराया। कहते हैं यहां मन्सूर का पौधा बहुतायत में होता था, इसलिए नाम पड़ा मसूरी। इसके बाद वर्ष 1827 में मसूरी में पहला सेनोटेरियम बना, आज यह इलाका लंढौर कैंट के नाम से जाना जाता है। कुछ साल बाद भारत के पहले सर्वेयर जनरल सर जार्ज एवरेस्ट ने भी मसूरी को अपना घर बनाया। इन्हीं के नाम पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट है।
दून का ताज मसूरी
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मसूरी की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है कि यह नगर देहरादून का ताज जैसा प्रतीत होता है। उत्तर पूर्व में हिमालय के शिखर तो दक्षिण में दून घाटी के विहंगम नजारा एक जादुई आकर्षण उत्पन्न करता है।
1959 में आए थे दलाई लामा
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चीन अधिकृत तिब्बत से निर्वासित होने के बाद वर्ष 1959 में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा पहले पहल मसूरी ही आए थे। यहीं तिब्बत की पहली निर्वासित सरकार बनी थी। बाद में वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के पास मेक्लोडगंज स्थानांतरित हो गए।
माल रोड
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अंग्रेजों द्वारा बसाई गई इस नगरी में हर इमारत पर ब्रिटिश छाप नजर आती है। अंग्रेज अफसरों के सैर के लिए निॢमत माल रोड पर उस जमाने पर भारतीयों का प्रवेश वॢजत था। इतिहासकार भारद्वाज बताते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के पिता पं.मोती लाल नेहरू अक्सर मसूरी आते थे। उन्होंने मालरोड पर भारतीयों को प्रवेश पर प्रतिबंध को तोड़ यहां सैर की। इसके अलावा पंडित नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी मसूरी की नैसॢगक छटा खूब भाती थीं।
गन हिल
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मसूरी आए और गन हिल नहीं देखा तो क्या देखा। चोटी पर स्थित इस स्थान से हिमालय की बंदरपूंछ, श्रीकांता, पिठवाड़ा और गंगोत्री हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां नजर आती हैं। मसूरी और दून का विहंगम दृश्य भी इसका खास आकर्षण है। दरअसल ब्रिटिश काल में इस चोटी पर एक तोप से गोला दागा जाता था। दोपहर ठीक 12 बजे दागे जाने वाले गोले की आवाज से लोग अपनी घड़ी का मिलान करते थे। इस लिए चोटी का नाम पड़ा गन हिल। यहां तक पहुंचने के लिए रोपवे का रोमांच भी लिया जा सकता है। चार सौ मीटर लंबे रोपवे से चोटी तक पहुंचने करीब 20 मिनट लगते हैं। इस चोटी पर चढ़ते हुए आप ट्रैकिंग का लुत्फ भी उठा सकते हैं। ट्रैकिंग के लिए सामान किराये पर उपलब्ध है।
लाल बहादुर शास्त्री अकादमी
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भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में चुने गए प्रोबेशनर्स को प्रशिक्षण देने के लिए बनी यह अकादमी अपने आप में खास है। हालांकि पर्यटकों यहां प्रवेश नहीं कर सकते, लेकिन यह मसूरी की शान है।
ऐतिहासिक स्कूल
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ब्रिटिश काल में बने स्कूल मसूरी के प्रमुख आकर्षण में से एक है। रोमन कैथोलिक शैली में बनी सेंट जॉर्ज स्कूल की मशहूर इमारत पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेती है। इसकी स्थापना वर्ष 1853 में की गई थी। इसके अलावा 1850 में स्थापित वुडस्टॉक भी खास है। इसकी स्थापना अंग्रेज अफसरों की पनयिों के एक समूह ने की थी।
कंपनी गार्डन
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वर्ष 1842 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ.एच फाकनार ने मसूरी में एक बगीचे की स्थापना की। बगीचे में विभिन्न प्रजातियों के पेड़-पौधे लगाए। तब ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम पर इसका नाम रखा गया कंपनी गार्डन। अब इसे म्यूनिसिपल गार्डन या बॉटनिकल गार्डन के नाम से जाना जाता है।
कैमल बैक रोड
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तीन किलोमीटर लंबी यह रोड कुलरी बाजार से लाइब्रेरी बाजार तक है। इस सड़क पर पैदल चलने का अपना ही आनंद है। यहां से हिमालय में सूर्यास्त का मनोहारी दृश्य दिखाई देता है। दूर से यह इलाका ऊंट के कूबड़ जैसा नजर आता है।
कैम्पटी और भट्टा फाल
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मसूरी से 15 किलोमीटर दूर यमुनोत्री हाईव पर पडऩे वाला जलप्रपात कैम्पटी फाल के नाम से जाना जाता है। चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों से घिरे झरने की तलहटी में स्नान तरोताजा करने वाला अहसास है। बताते हैं कि अंग्रेज अधिकारी अक्सर छुट्टी के दिन यहा टी-पार्टी के लिए आते थे। इसी तरह मसूरी से नौ किलोमीटर दूर देहरादून पर मार्ग पर पडऩे वाला झरना भट्टा फाल भी पर्यटकों को खूब लुभाता है।
ग्लोगी पावर हाउस
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यह उत्तर भारत के सबसे पुराने पावर प्रोजक्ट में से एक है। अक्टूबर 1907 में इस प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी गई और इसके निर्माण में पांच वर्ष का समय लगा। दिसंबर 1912 में इससे बिजली आपूॢत शुरू की गई। मूसरी देश के उन गिने-चुने शहरों में शामिल है, जो उस वक्त पहली बार बिजली से रोशन हुए। आज भी यह पावर हाउस 5.4 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन कर रहा है।
खानपान
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सचिन को पसंद हैं चार दुकान का बन आमलेट
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यूं तो मसूरी में उत्तर और दक्षिण भारतीय व्यंजन आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन लंढौर कैंट स्थित चार दुकान की बात ही कुछ और है। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर जब भी मसूरी आते हैं, चार दुकान का बन आमलेट खाना नहीं भूलते। सचिन ही क्यों, बालीवुड सितारे अरशद वारसी को यहां की चाय भाती है तो दिवंगत अभिनेता टॉम आल्टर को भी यहां के स्नैक्स पसंद थे। चार दुकान के मालिक अनिल प्रकाश व विपिन प्रकाश भाई हैं। वे बताते हैं कि यहां पर आने वाले पर्यटकों को उनकी दुकान के परांठे, मैगी, दाल पकोड़ा, बन आमलेट और पिज्जा खासे पसंद हैं।
माल रोड पर भुट्टों का स्वाद
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यदि आप मसूरी आए और भुट्टे का स्वाद नहीं लिया तो फिर यात्रा का क्या मजा। माल रोड पर स्थान-स्थान पर आपको भुने और उबले भुट्टे मिल जाएंगे और पर्यटक इनका खूब लुत्फ भी लेते हैं।
रस्किन की नजर में मसूरी
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मसूरी लेखक और कलाकारों की भी कर्मभूमि रही है। प्रसिद्ध अभिनेता दिवंगत टॉम आल्टर ने यहीं से स्कूली दिनों में थियेटर की शुरुआत की थी तो विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार रस्किन बांड के रचना संसार में मसूरी ही बसता है। रस्किन कहते हैं 'यहां के कुदरती नजारे और अद्भुत शांति साहित्य सृजन के लिए प्रेरित करती है। हालांकि आज यहां की जनसंख्या में काफी बढ़ोत्तरी हो चुकी है, लेकिन मसूरी तो मसूरी है। मुझे गर्व है कि मैं मसूरी का नागरिक हूं।Ó
धनोल्टी में बिताइए सुकून के पल
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यदि शोर शराबे से दूर कुछ वक्त गुजारना हो तो धनोल्टी आपके लिए बेहतर विकल्प है। मसूरी से महज 30 किलोमीटर दूर देवदार के घने वन से घिरा है धनोल्टी। यहां से हिमाच्छादित चोटियों का दृश्य मन को मोहने वाला है। यहां पर गढ़वाल मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस, वन विभाग का गेस्ट हाउस के अलावा बंबू हट्
स और होटल की सुविधा है। मसूरी की तरह भीड़भाड़ भी नहीं है।
काणाताल की कैंप साइट
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यदि आप कैंपिंग के शौकीन है तो मसूरी से 45 किलोमीटर दूर काणाताल आपका इंतजार कर रहा है। देवदार के वृक्षों की छांव में कॉटेज, रिर्जाट और हट में कुछ दिन गुजारना दिव्य एहसास से कम नहीं। सुहावना मौसम और प्रकृति की नजदीकी, छुट्टियां बिताने के लिए और क्या चाहिए। कैंपिंग के लिए इससे बेहतर और कौन सी जगह होगी।
सुरकंडा देवी
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मसूरी-टिहरी रोड पर मसूरी से लगभग 33 और धनोल्टी से और किलोमीटर की दूरी पर है सिद्धपीठ सुरकुंडा देवी का मंदिर। समुद्रतल से दस हजार फीट की ऊंर्चा पर स्थित यह मंदिर समुद्र तल से दस हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान से हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
चंबा
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मसूरी से महज 56 किलोमीटर दूर टिहरी जिले में स्थित चंबा कस्बा अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है। फलों के बागान से गुजरती सर्पीली सड़क पर यात्रा सुकून देने के साथ ही रोमांच से भी भरपूर है। बागानों की पृष्ठभूमि से उभरता हिमालय का दृश्य किसी का भी मन मोह लेता है।
लाखामंडल
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मसूरी से कैम्पटीफॉल से गुजरते हएु 75 किलोमीटर दूर स्थित लाखामंडल एक पौराणिक स्थल है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां कौरवों ने पांडवों को लाक्षागृह में जलाने का प्रयास किया था। खुदाई में निकली मूर्तियां यहां के ऐतिहासिक महत्व का प्रमाण भी हैं।
बॉलीवुड की भी पसंद मसूरी
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मसूरी शुरुआत से ही शूटिंग के लिए बॉलीवुड की पसंद रहा है। नब्बे के दशक में अनिल शर्मा के निर्देशन में बनी फिल्म 'फरिश्तेÓ के एक गाने 'तेरे बिन जग लगता है सूनाÓ की शूटिंग कैम्प्टीफॉल की सुंदर वादियों में हुई थी। फिल्म 'फरिश्तेÓ के इस गाने की शूटिंग के लिए अभिनेत्री श्रीदेवी और अभिनेता विनोद खन्ना यहां आए थे। तब अभिनेत्री श्रीदेवी ने मसूरी की काफी तारीफ की थी। पिछले कुछ सालों की बात करें तो एक बार फिर बॉलीवुड ने उत्तराखंड का रुख करना शुरू कर दिया है। इसमें अधिकतर शूटिंग देहरादून और मसूरी की खूबसूरत लोकेशन में हो रही है। अभी पिछले दो सालों में ही अभिनेता अजय देवगन ने फिल्म 'शिवॉयÓ की शूटिंग के लिए मसूरी को चुना। इसके बाद अनिल शर्मा की फिल्म 'जीनियसÓ के कुछ दृश्य भी मसूरी में फिल्माए गए। फिल्म 'परमाणुÓ की अधिकांश शूटिंग तो राजस्थान में हुई है, लेकिन अभिनेता जॉन अब्राहम के घर की शूटिंग मसूरी में की गई। काफी दिनों तक जॉन अब्राहम शूटिंग के लिए मसूरी में ही रहे। वहीं धर्मा प्रोडेक्शन की सुपर हिट सीरीज 'स्टूडेंट ऑफ द इयरÓ की शूटिंग के बाद ही उसका दूसरा पार्ट 'स्टूडेंट ऑफ द इयर-2Ó की शूटिंग भी मसूरी और देहरादून की वादियों में की गई। मसूरी के पास ही स्थित भट्टा फाल में अभिनेता टाइगर श्राफ के घर का सेट बनाया गया था। मसूरी की ही अलग-अलग लोकेशन में करीब 20 दिन फिल्म की शूटिंग हुई। फिल्म 'बत्ती गुल, मीटर चालूÓ की शूटिंग मसूरी में भी हुई। अभिनेता शाहिद कपूर और अभिनेत्री श्रद्धा कपूर भी शूटिंग के लिए यहां पहुंचे थे। फिल्म की अधिकांश शूटिंग माल रोड, भट्टा फॉल, गन हिल, कंपनी गार्डन, सिस्टर बाजार, झड़ी पानी, लंढौरा, चार दुकान आदि लोकेशन पर हुई।
कैसे पहुंचे
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निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट-60 किमी
निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून-35 किमी
देहरादून से टैक्सी और बस से मसूरी पहुंचा जा सकता है।
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