लॉकडाउन
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दिनेश कुकरेती
अचानक एक अननोन फोन कॉल ने अमित की तंद्रा भंग कर दी। अनमने भाव से उसने कॉल रिसीव की तो दूसरी ओर से कानों में रस घोलती आवाज गूंजी- 'हैल्लो...अमित से बात हो रही है क्या?Ó
'जी...आप कौन?Ó
'पहचाना नहीं..क्यों पहचानोगे, बड़े आदमी जो हो गए हो।Ó
'आप बताएंगी नहीं तो पहचानूंगा कैसे भला।Ó
'कोशिश तो करो...सब याद आ जाएगा।Ó
अमित के माथे पर बल पड़ गए कि आखिर इतने अधिकार से बात करने वाली यह आवाज किसकी हो सकती है। उधर से फिर आवाज गूंजी- 'खामोश क्यों हो गए?Ó
अचकचाते हुए अमित ने कहा- 'नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं है।Ó
'...तो कैसी बात है यारÓ- फिर आवाज गूंजी।
अब अमित को इतना तो भरोसा हो गया कि उधर से जो भी है, है बहुत करीबी, इसलिए आग्रही भाव से बोला- 'सच कह रहा हूं, मुझे कुछ याद नहीं आ रहा। प्लीज! आप ही बता दीजिए ना।Ó
'अरे...मैं नमिता...तुम्हारी कॉलेज की दोस्त...कुछ याद आया क्या?Ó
'नमिताÓ शब्द कानों में पड़ते ही अमित की आंखों में कॉलेज के दिनों के तमाम दृश्य परत-दर-परत उघडऩे लगे। हालांकि, उसे अब भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि फोन करने वाली सचमुच उसकी कॉलेज की दोस्त नमिता ही है। लेकिन, उसके जीवन में कभी कोई दूसरी नमिता भी तो नहीं आई थी। सो, वह चहककर बोला, 'तुम सचमुच नमिता ही हो ना...मेरी दोस्त।Ó
'हां भई हां, तुम्हारी ही दोस्त हूं।Ó- नमिता ने कहा।
'...पर इतने सालों तक कहां थी तू? मुझे भूल क्यों गई? कभी तो सुध ले लेती। शादी से पहले तो कैसे चिट्ठियों में कभी न भूलने का भरोसा दिलाती थी। और...एक मैं हूं, जो तुझे कभी भुला ही नहीं पाया। कभी फोन ही कर लेती? और...हां! ये तुम-तुम क्या कर रही है। बदल गई यार तू तो।Ó- अमित एक ही सांस में यह सब कह गया।
'चुप पागल! मुझे भी तो कुछ बोलने दे। मैं तुझे भूली होती तो फोन ही क्यों करती। पता है, कितनी मुश्किल से मिला तेरा नंबर। जरा देख... तुझे फेसबुक पर भी रिक्वेस्ट भेजी है और तू है कि मेरी आवाज भी नहीं पहचान रहाÓ- नमिता ने कहा।
'नहीं यार! जीवन में पहली बार तुझसे फोन पर बात हो रही है ना, भला एकदम कैसे पहचान पाता मैं तेरी आवाज। उस दौर में फोन किसके पास होता था। यहां तक कि बेस फोन भी गिने-चुने लोगों के पास ही थे। फिर शादी के बाद सिर्फ दो ही बार तो मिली है तू मुझे। तब से पूरे अट्ठारह साल बीत गए, तेरा कुछ पता ही नहीं चला। अच्छा छोड़...पहले ये बता कि तू है कहां आजकल। नौकरी कैसे चल रही है। छुट्टियां होंगी इन दिनों तो। संभलकर रहना यार, इस कोरोना और लॉकडाउन ने तो जीना मुहाल कर दिया है।Ó- इतना कहते-कहते अमित कहीं खो-सा गया।
'पागल मैं ठीक हूं और शिमला में रह रही हूं। स्कूल तो कब से बंद है। ये भी घर पर ही हैं। तेरी बहुत याद आती थी, कल ही तेरा नंबर मिला तो फोन कर रही हूं। तू तो यार बिल्कुल भी नहीं बदला, फेसबुक में तेरी तस्वीर देख रही थी। तब जैसा था, अब भी वैसा ही है। पर, ये बता उदास क्यों लग रहा है। अच्छा नहीं लगा क्या मेरा फोन करना।Ó- नमिता ने कहा।
नमिता के मुंह से यह आखिरी वाक्य सुनकर अमित खीझ-सा गया, लेकिन फिर कुछ देर रुककर बोला, 'तू मुझे कभी पहचान ही नहीं पाई, तभी तो ऐसा कह रही है।Ó
'नहीं रे! पहचाना तो तूने नहीं मुझे। तूने मुझे इशारा भी किया होता तो मैं जमाने से लड़ जाती। मैं सारे ग्रुप में सबसे ज्यादा तुझे ही पसंद करती थी। तुझे पता है, हमारे ग्रुप में अंजलि भी तुझे मन ही मन चाहती थी। वह मुझसे कुछ कहती तो नहीं थी, पर मुझे सब मालूम था, इसलिए उससे जलन-सी होती थी। क्या तू यह सब महसूस नहीं करता था।Ó- नमिता ने कहा।
'झूठी कहीं की, अगर ऐसा था तो तब कह देती। मुझे हमेशा यह सब सुनने का इंतजार रहता था। मैं खुद तुझसे कह देता, लेकिन मनोज ने जब एक दिन बताया कि तू मुकुल को चाहती है तो फिर मेरी हिम्मत नहीं हुई। मुकुल तेरे घर के पास ही तो रहता था और तेरी उससे अच्छी छनती भी थी। ऐसे में मैं नहीं चाहता था कि हमारी दोस्ती में कोई दरार पड़े। वैसे सच कहूं तो तेरा इससे फायदा ही हुआ। दोनों जने सरकारी नौकरी में हो। अच्छा कमा रहे हो। मेरे साथ भला ऐसे खुश रह पाती तू? ...और रही बात प्यार की, वह तो हमेशा ही रहेगा। आज भी मैं तुझे उतना ही प्यार करता हूं, जितना कि तब करता था।Ó- अमित झोंक में कहता चला गया।
'अब क्या होना है यार, सब-कुछ रेत की तरह मुट्ठी से निकल चुका है। इसका दोषी सिर्फ तू है। जीवन में सारी खुशियां पैसों से ही नहीं मिला करती। नौकरी तो तू भी कर रहा है। बच्चे तेरे भी हैं। फिर ऐसा क्या है, जो मैं तेरे साथ खुश नहीं रह पाती। खैर! अब मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगी। मैं नहीं चाहती कि हमारे परिवारों का सुकून छिन जाए। मन अजीब-सा हो रहा है, पर तू अपना ख्याल रखना। मुझे तेरी बड़ी चिंता हो रही थी, इसीलिए फोन किया। बात करते रहना यार... मन हल्का हो जाता है...।Ó यह कहते-कहते नमिता ने चुप्पी साध ली। शायद वो भावुक हो गई थी। पर, अमित के लिए खुद को संयत कर पाना मुश्किल हो रहा था। वो जानता था कि दोनों ही सामाजिक बेडिय़ों में बंधे हुए हैं, लेकिन मन पर किसका वश चलता है। ऐसा हो तो सारे संत न हो जाएं। सो... अमित धीमे से बोला- 'लव यू यार।Ó
प्रत्युत्तर में नमिता 'चुप...Ó कहकर धीमे से मुस्करा दी और फिर बोली-'अच्छा यार अब मुझे भूलना मत, मैं फिर बात करूंगी।Ó
अब अमित को देखकर ऐसा लग रहा था, मानो उसे बेपनाह खुशियां मिल गई हैं। उसकी आंखों में उन दिनों के दृश्य साकार हो उठे, जब मूंगफली का एक दाना भी अकेले उसके गले में नहीं उतरता था। यही हाल नमिता का भी था। दोनों अन्य दोस्तों के साथ अक्सर कॉलेज से लौटते हुए लस्सी जरूर पीते थे।
खाली पीरियड में दोनों पेड़ की छांव तले बैठ जाते और फिर यह भी खबर नहीं रहती कि कितना वक्त गुजर गया है। नमिता हालांकि लोअर मिडिल क्लास से आती थी, लेकिन ब्राह्मण होने के कारण उसके परिवार का रुतबा तो था ही। इसके विपरीत संपन्न परिवार से होने के बावजूद अमित पिछड़ी जाति से था। शायद इस कारण भी वह नमिता से मन की बात नहीं कह पाया। वैसे नमिता ने कभी भी जाति बंधनों को अहमियत नहीं दी।
अमित का नमिता के घर में खूब आना-जाना था और नमिता भी गाहे-बगाहे उसके घर पर आ जाती थी। अपनी शादी का कार्ड देने भी वह खुद ही आई थी। आखिरी बार वह शादी के बाद पति के साथ अमित के घर आई थी। तब अमित की शादी हो चुकी थी, इसलिए उसकी पत्नी से मिलने के लिए वह स्पेशियली आई थी। इसके बाद फिर कभी उसकी अमित से मुलाकत नहीं हुई। पर, उस दिन अचानक नमिता का फोन आने के बाद अमित की मानो दुनिया ही बदल गई।
वह सोच रहा था कि लॉकडाउन से लोग इतने खिन्न क्यों हैं। यह ठीक है कि कोरोना के रूप में खड़े अदृश्य दुश्मन ने पूरी दुनिया को त्रस्त किया हुआ है, लेकिन यह भी तो सच है कि हमारा धैर्य और हमारा संयम हमें एक ऐसी दुनिया में ले जा रहा है, जहां संभवत: रिश्तों कि अहमियत समझी जाएगी। राजसत्ताओं की समझ में भी आ जाएगा कि प्रकृति की खुशहाली में ही मानवता का कल्याण छिपा हुआ है और प्रकृति पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं, नदी, झरनों, पहाडो़ं आदि से ही नहीं बनती, किसान एवं मजदूर भी उसका अभिन्न अंग हैं। आने वाली दुनिया प्रेम का मतलब भी समझेगी, जैसे नमिता ने उसके प्रेम का मतलब समझा और उसने नमिता के प्रेम का।
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