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मसूरी में बसी हैं बापू की सुनहरी यादें
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पहाड़ों की रानी देश के उन महत्वपूर्ण स्थानों में शामिल है, जिनसे गांधीजी का विशेष लगाव रहा है। आजादी के आंदोलन को गति देने और स्वास्थ्य लाभ के लिए गांधीजी दो बार मसूरी आए थे। अपने दूसरे मसूरी दौरे पर तो वह दस दिन मसूरी में रुके और यहां प्रार्थना सभाओं में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने कुलड़ी के सिल्वर्टन ग्राउंड में एक जनसभा को भी संबोधित किया था। तब गांधीजी हैप्पी वैली स्थित घनश्याम दास बिड़ला के आवास पर ठहरे थे। आइए! आपको भी गांधीजी की इन यात्राओं के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराते हैं।
बिड़ला हाउस में ठहरे थे गांधी
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दिनेश कुकरेती
गांधीजी का पहली बार मसूरी आना वर्ष 1929 में हुआ। तब वह किसी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए देहरादून आए थे और दो दिन मसूरी में भी रुके। इतिहासकार गोपाल भारद्वाज लिखते हैं कि वर्ष 1946 में जब महात्मा गांधी दोबारा मसूरी आए तो हैप्पी वैली स्थित बिड़ला हाउस में ठहरे थे। तब वह मसूरी के बड़े कांग्रेस नेताओं में शुमार पुष्कर नाथ तनखा के सहयोग से देश के अन्य बड़े नेताओं के साथ बैठक कर आजादी के आंदोलन को गति देने के लिए रणनीति बनाते थे।
मसूरी की सुंदरता देख दुख-दर्द भूल जाते थे बापू
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इतिहासकार भारद्वाज के अनुसार इस दौरान गांधीजी मसूरी में स्वास्थ्य लाभ भी लिया करते थे। वह नित्य माल रोड पर पैदल घूमते और लोगों से मिला करते थे। मसूरी के बारे में गांधीजी कहते थे कि यहां की खूबसूरत पहाडिय़ों को देखकर वह अपना सारा दुख-दर्द भूल जाते हैं। प्रार्थना सभा के बाद गांधीजी की कही बातें लोगों में जोश भर देती थीं। मसूरी के प्रति बापू के प्रेम का जिक्र जस्टिस जीडी खोसला ने अपनी पुस्तक 'मसूरी एंड द दून वैलीÓ में भी किया है। यह पुस्तक वर्ष 1961 में प्रकाशित हुई थी।
गांधीजी के करीबी रहे ज्योतिषाचार्य ऋषि भारद्वाज
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इतिहासकार भारद्वाज लिखते हैं कि उनके पिता ऋषि भारद्वाज की गांधीजी से काफी करीबी रही है। वह प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य थे। वर्ष 1946 में जब गांधीजी मसूरी बिरला हाउस में ठहरे थे, तब उनके पिता को लिवाने के लिए आवास पर रिक्शा भिजवाया करते थे। उनके पिता को पहली बार राजकुमारी अमृत कौर ने गांधीजी से मिलवाया था।
उपहार नीलाम कर खादी ग्रामोद्योग को दान कर दी थी राशि
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मसूरी प्रवास के दौरान स्थानीय लोगों ने उपहार स्वरूप गांधीजी को चांदी की छड़ी और रिक्शा भेंट किया था। गांधीजी ने उपहार को स्वीकार तो कर लिया, लेकिन उसे उसी समय बेचने के लिए बोली भी लगा दी। स्थानीय लोगों ने तब यह उपहार 800 रुपये में खरीदा। यह राशि गांधीजी ने तत्काल खादी ग्रामोद्योग को दान कर दी। उस समय खादी के उत्थान के लिए स्वदेशी वस्तु अभियान चलाया जा रहा था।
गरीब-पिछड़ों के लिए संस्था बनाने का दिया था सुझाव
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इतिहासकार भारद्वाज के अनुसार उस दौर में माल रोड पर आम भारतीय का चलना प्रतिबंधित था। इससे गांधीजी बेहद व्यथित हुए और स्थानीय लोगों को मसूरी में एक ऐसी संस्था बनाने का सुझाव दिया, जिसके माध्यम से गरीब एवं पिछड़े अपनी सभा और बात कर सकें। इसके बाद गांधीवादी विचारक पीसी हरी और पुष्कर नाथ तनखा ने नगर में एक पुराने भवन को किराये पर लिया। बाद में उन्होंने इसे खरीदकर गांधी निवास सोसाइटी बनाई, जो आज भी चल रही है और इसे श्री गांधी निवास सोसायटी के नाम से जाना जाता है।
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Bapu has golden memories settled in Mussoorie
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The queen of the mountains is one of the important places in the country to which Gandhiji has a special attachment. Gandhiji came to Mussoorie twice to give impetus to the freedom movement and to get health benefits. On his second visit to Mussoorie, he stayed in Mussoorie for ten days and attended prayer meetings here. During this time he also addressed a public meeting at the Sylvartan Ground in Kulri. Then Gandhiji stayed at Ghanshyam Das Birla's residence in Happy Valley. Come! Let us also introduce you to the various aspects of these visits of Gandhiji.
Gandhi stayed in Birla House
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Dinesh kukreti
Gandhiji first came to Mussoorie in the year 1929. He then came to Dehradun to attend an event and also stayed in Mussoorie for two days. Historian Gopal Bhardwaj writes that when Mahatma Gandhi came to Mussoorie again in the year 1946, he stayed at Birla House in Happy Valley. He then formulated a strategy to speed up the freedom movement by meeting with other big leaders of the country in collaboration with Pushkar Nath Tankha, one of the prominent Congress leaders of Mussoorie.
Seeing the beauty of Mussoorie, Bapu forgot his pain and pain
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According to historian Bhardwaj, during this time Gandhiji also used to take health benefits in Mussoorie. He used to walk and meet people on the regular goods road. About Mussoorie, Gandhiji used to say that he forgets all his pain and pain by looking at the beautiful hills here. After the prayer meeting, Gandhiji's words used to excite people. Bapu's love for Mussoorie is also mentioned by Justice GD Khosla in his book 'Mussoorie and the Doon Valley'. This book was published in the year 1961.
Jyotishacharya Rishi Bharadwaj was close to Gandhiji
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Historian Bhardwaj writes that his father, Rishi Bhardwaj, was very close to Gandhiji. He was a famous astrologer. When Gandhiji stayed at Mussoorie Birla House in the year 1946, he used to send rickshaws to his father's residence. His father was first introduced to Gandhiji by Princess Amrit Kaur.
The gift was auctioned and donated the amount to Khadi village industry
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During his stay in Mussoorie, the locals presented a silver rod and rickshaw to Gandhiji as a gift. Gandhiji accepted the gift, but at the same time bid to sell it. The locals then bought this gift for Rs 800. Gandhiji immediately donated this amount to Khadi Gramodyog. At that time, the Swadeshi object movement was going on for the upliftment of Khadi.
It was suggested to make an institution for the poor and backward
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According to historian Bhardwaj, the common Indian was prohibited from walking on the Mall Road at that time. This upset Gandhiji and suggested the local people to form an institution in Mussoorie through which the poor and backward could speak and hold their meetings. After this, Gandhian thinkers PC Hari and Pushkar Nath Tankha rented an old building in the city. Later he bought it to form Gandhi Niwas Society, which is still running today and it is known as Shri Gandhi Niwas Society.
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