Thursday, 26 November 2020

नई टिहरी : सीढिय़ों पर बसा अनूठा शहर

नई टिहरी : सीढिय़ों पर बसा अनूठा शहर
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दिनेश कुकरेती
चंडीगढ़ की तर्ज पर बसाया गया उत्तराखंड का एक खूबसूरत पहाड़ी शहर नई टिहरी। यह एकमात्र शहर है, जो देश के मानचित्र में पहली बार 21वीं सदी में जुड़ा। भागीरथी और भिलंगना नदी पर बने देश के सबसे ऊंचे टिहरी बांध के पास की पहाड़ी पर बसा यह शहर कई मामलों में अनूठा है। कतारबद्ध मकान, कार्यालय व व्यावसायिक स्थलों के साथ यहां के पर्यटक स्थलों में अजीब आकर्षण नजर आता है। समुद्रतल से 1550 से लेकर 1950 मीटर तक की ऊंचाई पर मखमली-अनछुई हरियाली के बीच शहर की घुमावदार साफ एवं स्वच्छ सड़कें, जगह-जगह बनाए गए सीढ़ीनुमा रास्ते, दूर-दूर तक फैली पहाडिय़ां और ऊंचे-नीचे घने जंगल यहां आने वाले सैलानियों को बरबस अपनी ओर खींच लेते हैं। घरों के आसपास बनी इन सीढिय़ों पर से गुजरते हुए लोग स्वयं को यहां की सभ्यता एवं संस्कृति के बेहद करीब पाते हैं। यहां की जलवायु वर्षभर खुशनुमा रहती है। यहां आकर आप भागीरथीपुरम, रानीचौरी, बादशाही थौल, चंबा, बूढ़ा केदार मंदिर, कैम्पटी फॉल, देवप्रयाग जैसे कई पर्यटन स्थलों का आसानी से दीदार कर सकते हैं। टिहरी बांध और उसकी मानव निर्मित विशालकाय झील का सुंदर नजारा तो यहां से देखते ही बनता है। शहर की सबसे ऊंची पहाड़ी पर बनाया गया पिकनिक स्पॉट तो धीरे-धीरे देश-दुनिया के सैलानियों की पसंदीदा जगह बनता जा रहा है। यहां से पर्यटकों को हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाओं का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। इसलिए लोगों ने इस स्थान को 'स्नो व्यूÓ नाम दिया हुआ है। शानदार प्राकृतिक स्थलों के साथ नई टिहरी एडवेंचर एक्टिविटी का भी प्रमुख केंद्र है। आप यहां आकर रिवर-राफ्टिंग, टै्रकिंग, रॉक क्लाइंबिंग जैसी रोमांचक गतिविधियों का लुत्फ ले सकते हैं।    
झील के आगोश में पुरानी टिहरी
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टिहरी बांध की झील में डूब चुका मूल टिहरी नगर भागीरथी और भिलंगना नदी के तट पर 30ए30'  उत्तरी अक्षांश और 78ए56' पूर्वी देशांतर पर स्थित था। पहले यह एक छोटा-सा गांव हुआ करता था, लेकिन वर्ष 1815 में गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने इस नगर को अपनी रियासत की राजधानी बना दिया। इसी के नाम पर राज्य का नाम टिहरी गढ़वाल रियासत पड़ा। इस नगर का विस्तार तीन चौथाई मील लंबाई और आधा मील की चौड़ाई में हुआ था। 21वीं सदी की शुरुआत में भागीरथी व भिलंगना नदी पर टिहरी बांध का निर्माण होने के कारण पूरा टिहरी नगर जलमग्न हो गया। इस त्रासदी ने लगभग एक लाख लोगों को प्रभावित किया, जिनके लिए उत्तराखंड सरकार की ओर से नई टिहरी नगर की स्थापना की गई। इस नगर का निर्माण 90 के दशक में ही शुरू हो गया था और इसके लिए तीन गांवों के साथ थोड़ी वन भूमि का अधिग्रहण किया गया। वर्ष 2004 तक पुरानी टिहरी को पूरी तरह खाली कर यहां के निवासियों को नई टिहरी स्थानांतरित कर दिया गया।

झील का अद्भुत नजारा
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नई टिहरी शहर टिहरी गढ़वाल जिले का मुख्यालय होने के साथ ही एक आधुनिक एवं सुव्यवस्थित शहर है, जो चंबा से 11 किमी और झील में समाए पुरानी टिहरी से 24 किमी की दूरी पर स्थित है। भागीरथी नदी पर बांध निर्माण के बाद पुरानी टिहरी शहर के स्थान पर लगभग 42 किमी लंबी कृत्रिम झील उभर आई। जो वर्तमान में पर्यटन एवं आकर्षण का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुकी है।

देश का सबसे बड़ा शिवलिंग
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हिमालय के ऐतिहासिक-पौराणिक मंदिरों की श्रेणी में एक है बूढ़ा केदार (वृद्ध केदारेश्वर) धाम। समुद्रतल से 4400 फीट की ऊंचाई और नई टिहरी से 59 किमी की दूरी पर स्थित इस मंदिर का भी ऐतिहासिक एवं पौराणिक दृष्टि से पंचकेदार शृंखला के मंदिरों सरीखा ही महत्व है। वृद्ध केदारेश्वर की चर्चा स्कंद पुराण के केदारखंड में सोमेश्वर महादेव के रूप में मिलती है। मान्यता है कि गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाने को पांडव इसी मार्ग से स्वर्गारोहण यात्रा पर गए थे। यहीं बालगंगा-धर्मगंगा के संगम पर भगवान शिव ने बूढ़े ब्राह्मण के रूप में पांडवों को दर्शन दिए थे। इसलिए बूढ़ा केदारनाथ कहलाए। बूढ़ा केदार मंदिर के गर्भगृह में विशाल लिंगाकार फैलाव वाले पाषाण पर भगवान शिव की मूर्ति और लिंग विराजमान है। इतना बड़ा शिवलिंग शायद ही देश के किसी मंदिर में हो। इस पर उभरी पांडवों की मूर्ति आज भी रहस्य बनी हुई है। बगल में ही भू-शक्ति, आकाश शक्ति और पाताल शक्ति के रूप में विशाल त्रिशूल विराजमान है। बूढ़ा केदार मंदिर के पुजारी नाथ जाति के राजपूत होते हैं। वह भी, जिनके कान छिदे हों।

चंबा का मनमोहक सौंदर्य
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 नई टिहरी से 11 किमी दूर और समुद्रतल से 1676 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हिल स्टेशन चंबा सेब व खुबानी के बाग और बुरांस के फूलों के लिए जाना जाता है। टिहरी बांध, सुरकंडा देवी मंदिर और ऋषिकेश की ओर बढ़ रहे सैलानियों के लिए चंबा एक आदर्श ठहराव स्थल है। यहां गब्बर सिंह नेगी मेमोरियल व श्री बागेश्वर महादेव मंदिर कुछ ऐसे लोकप्रिय स्थान हैं, जो सैलानियों को अपनी ओर खींचते हैं। चंबा बर्ड वाचिंग के शौकीनों के लिए भी आदर्श स्थान है। आप यहां दूरबीन की सहायता के बिना अलग-अलग तरह के पक्षियों को करीब से निहार सकते हैं। यहां से बागेश्वर मंदिर के भी दर्शन होते हैं। छुटियां बिताने के लिए चंबा उन आरामदायक स्थानों में से एक है, जहां आप अद्भुत शांति की अनुभूति कर सकते हैं। यहां देवदार, बांज व बुरांस के वृक्षों की शीतल हवा सैलानियों का मन मोह लेती है। चंबा की सबसे बडी खासियत यह है कि मसूरी और टिहरी जैसे हिल स्टेशनों के बहुत करीब होते हुए भी इस छोटे-से शांत कस्बे ने अपने ग्रामीण परिवेश को आज भी संजोकर रखा है।

भागीरथीपुरम और टॉप टैरेस
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टिहरी बांध की ओर से आने वाले रास्ते में भागीरथीपुरम पड़ता है। इसी के पास टॉप टैरेस नाम का पर्यटक स्थल है। यहां से एक रास्ता गंगोत्री मार्ग के प्रमुख धार्मिक स्थल भागीरथी नदी के तट पर बसे उत्तरकाशी (बाबा विश्वनाथ की नगर) की ओर जाता है। इन स्थानों पर आप पिकनिक मना सकते हैं, मंदिरों के दर्शन कर सकते हैं और साथ ही टिहरी झील में होने वाले साहसिक खेलों का मजा भी ले सकते हैं।

भागीरथी की धाराओं का रोमांच
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रिवर रॉफ्टिंग के शौकीनों को भागीरथी नदी की खतरनाक ओर फुफकारती धाराएं खूब लुभाती हैं। लेकिन, इसके लिए तैयारी ऋषिकेश से ही करके चलनी होती है। सड़क मार्ग से आने वाले सैलानियों को पहले ऋषिकेश पहुंचना होता है। यहां से नई टिहरी के लिए नियमित सेवाएं मिल जाती हैं।

आराम और सुकून की जगह
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नई टिहरी में ठहरने की कोई समस्या नहीं है। कई अच्छे होटल और गेस्ट हाउस यहां बने हुए हैं। गढ़वाल मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस भी ठहरने के लिए अच्छा स्थान है। नई टिहरी की दूरी देहरादून से 95 और ऋषिकेश से 76 किमी है।

सूर्योदय और सूर्यास्त का विहंगम नजारा
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अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं और कुछ अलग करना चाहते हैं तो टिहरी जिले में समुद्रतल से 1665 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कुंजापुरी चले आइए। पौराणिक सिद्धपीठ के रूप में विख्यात यह स्थल देवी-देवताओं से जुड़ी लोकोक्तियों के कारण ही नहीं, यहां से नजर आने वाले हिमालय के नयनाभिराम दृश्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। ऋषिकेश-चंबा मार्ग पर हिंडोलाखाल नामक स्थान से हरे-भरे जंगलों के बीच पांच किमी का सफर तय कर यहां पहुंचा जा सकता है। यहां से हिमालय में सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखते ही बनता है। कुंजापुरी मंदिर नरेंद्रनगर से 13 किमी, मुनिकीरेती से 28 किमी और देवप्रयाग से 93 किमी की दूरी पर है।

शक्ति पीठों का पवित्र त्रिकोण कुंजापुरी 
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देवी दुर्गा का यह मंदिर शिवालिक रेंज में स्थित 13 शक्ति पीठों में से एक है। मान्यता है कि जगदगुरु शंकराचार्य ने सुरकंडा देवी व चंद्रबदनी देवी मंदिर के साथ इस शक्ति पीठ की भी स्थापना की थी। कुंजापुरी इन दोनों पीठों के साथ एक पवित्र त्रिकोण बनाता हैं। कहते हैं कि कुंजापुरी में माता सती के दिव्य शारीर का ऊपरी हिस्सा (वक्षस्थल) गिरा था, जिसे संस्कृत में में कुंजा कहते हैं। इसी कारण मां के इस धाम का नाम कुंजापुरी पड़ा। मंदिर के गर्भगृह में माता की एक छोटी-सी प्रतिमा का विग्रह भी विराजमान है। कुंजापुरी मंदिर में अन्य मंदिरों की तरह ब्राह्मण पुजारी न होकर क्षत्रिय वर्ण के पुजारी हैं। परंपरागत रूप में यहां भंडारी जाति के लोग माता की पूजा करते आ रहे हैं, जिन्हें बहुगुणा जाति के ब्राह्मण दीक्षित करते हैं।

हिमालय का नयनाभिराम नजारा
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मंदिर तक जाने के लिए 308 सीढिय़ां चढऩी पड़ती हैं। मंदिर की उत्तर दिशा में हिमालय की बंदरपूंछ (6320 मीटर), स्वर्गारोहणी (6248 मीटर), भागीरथ (गंगोत्री) (6672 मीटर), चौखंभा (7138 मीटर) आदि चोटियां नजर आती हैं। जबकि दक्षिण दिशा में हरिद्वार, ऋषिकेश और आसपास के संपूर्ण क्षेत्र का भव्य एवं नयनाभिराम दृश्य दिखाई देता है।

सिंगोरी का कभी न भूलने वाला स्वाद
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आप टिहरी आए और यहां की प्रसिद्ध मिठाई सिंगोरी का जायका नहीं लिया तो समझिए बहुत-कुछ मिस कर दिया। सिंगोरी को स्थानीय भाषा में सिंगोड़ी या सिंगौरी नाम से भी जाना जाता है। शुद्ध खोया (मावा) से बनने वाली कलाकंद जैसी यह मिठाई मालू के पत्ते में पान की तरह लपेटकर परोसी जाती है। खोया के अलावा इसमें बारीक सफेद चीनी, नारियल व सूखे गुलाब के फूल के पाउडर मिलाया जाता है।

रानीचौरी का आकर्षण
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चंबा के नजदीक रानीचौरी नामक स्थान पड़ता है, जहां उत्तराखंड औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय भरसार कारानीचौरी परिसर सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई पुष्प वाटिका और कैंपिंग साइट यहां पहुंचने वाले पर्यटकों सम्मोहित कर देती है। साथ ही अंगोरा ऊन का केंद्र भी यहां है।

कब जाएं
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वैसे तो आप नई टिहरी कभी भी आ सकते हैं, लेकिन मार्च से जून और फिर अक्टूबर से दिसंबर तक का समय यहां घूमने के लिए सबसे अनुकूल है। जनवरी-फरवरी में यहां कड़ाके की ठंड पड़ती है, जबकि जून से सितंबर के बीच बरसात के कारण आवाजाही में खतरा बना रहता है।

ऐसे पहुंचें
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हवाई अड्डा : जौलीग्रांट 93 किमी की दूरी पर।
रेल मार्ग : ऋषिकेश 76 किमी की दूरी पर।
सड़क मार्ग : नई टिहरी देहरादून, मसूरी, हरिद्वार, पौड़ी, ऋषिकेश, उत्तरकाशी आदि शहरों से सीधे जुड़ा हुआ है।


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