चारधाम दर्शन के साथ प्रकृति से करीबी का एहसास
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दिनेश कुकरेती
उत्तराखंड हिमालय की चारधाम यात्रा के अनेक रंग हैं। यह यात्रा
अध्यात्म की अनुभूति तो कराती ही है, प्रकृति और संस्कृति से
अपनापा भी जोड़ती है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़, हरियाली से लकदक जंगल,
हिमाच्छादित चोटियां, खूबसूरत नौले, ताल व बुग्याल, अथाह जलराशि
लिए गहरी सर्पाकार घाटियों से आगे बढ़ती नदियां, मंद-मंद बहती शीतल
पवन और लोकजीवन की मनोहारी झांकियां इस यात्रा को और भी रसमय बना
देती हैं। पहाड़ी झरनों के शीतल-निर्मल जल के दो घूंट पी लेने
मात्र से रास्तेभर की थकान काफूर हो जाती है। पारंपरिक व्यंजनों का
कुदरती स्वाद तो ऐसा कि मन तृप्त हो जाए। हां! इतना जरूर ध्यान
रखें कि जब आप चारधाम यात्रा पर आ रहे हों तो अपना यात्रा प्लान
ऐसा तैयार करें कि उसमें कुछ दिन प्रकृति के सानिध्य में गुजारने
के लिए भी निकल जाएं। कहने का मतलब आपका न्यूनतम उत्तराखंड प्रवास
कम से कम सप्ताहभर का तो होना ही चाहिए। लेकिन, अगर आप चारों धाम
में दर्शन के इच्छुक हैं तो प्रवास की अवधि 12 से 15 दिन होनी
आवश्यक है। यकीन जानिए, आपका यह उत्तराखंड प्रवास यादगार बन जाएगा।
चलिए! करते हैं उन पर्यटन स्थलों का दीदार, जिनकी सैर आप चारधाम
दर्शन के बाद लौटते हुए अवश्य करना चाहेंगे।
चौरासी कुटी जैसी शांति और सुकून कहां
प्रकृति में खो जाने का एहसास
ऐतिहासिक गर्तांगली से गुजरने का रोमांच
भैरवनाथ मंदिर और रुद्र गुफा
मिनी स्विटजरलैंड चोपता
मौसम
राजाजी टाइगर रिजर्व का बहुरंगी संसार
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हमारी यात्रा का पहला पड़ाव है हरिद्वार। यहीं से चारधाम की
आध्यात्मिक यात्रा शुरू होती है। हिमालय की कंदराओं से निकलकर गंगा
यहीं सबसे पहले मैदान का स्पर्श करती है। निश्चित रूप से लंबे सफर
के बाद आप काफी थक चुके होंगे, तो गंगा में डुबकी लगाना तो बनता
है। अब करते हैं जंगल सफारी के लिए राजाजी टाइगर रिजर्व का रुख।
एशियाई हाथी के लिए प्रसिद्ध हरिद्वार शहर से लगे इस पार्क में बाघ
की तो अच्छी-खासी मौजूदगी है ही, अन्य प्रजाति के जीव-जंतुओं का भी
यहां बाहुल्य है। विशेषकर झिलमिल झील क्षेत्र में बारहसिंगा का
दीदार करना तो अलग ही अनुभूति कराता है।
चौरासी कुटी जैसी शांति और सुकून कहां
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हम अब तीर्थ नगरी ऋषिकेश की ओर बढ़ रहे हैं, जिसकी हरिद्वार से
दूरी महज 30 किमी है। यहीं से अपनी चारधाम यात्रा की विधिवत शुरुआत
भी करेंगे। ऋषिकेश में वैसे तो वीरभद्र, भरत मंदिर, स्वर्गाश्रम,
गीता भवन, त्रिवेणीघाट, राम व लक्ष्मण झूला जैसे आत्मिक आनंद की
अनुभूति कराने वाले दर्शनीय स्थल हैं, लेकिन इनमें सबसे खास है
भावातीत ध्यान योग के प्रणेता महर्षि महेश योगी की विरासत चौरासी
कुटी। महर्षि महेश योगी ने वर्ष 1961 में स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) के
पास वन विभाग से 15 एकड़ भूमि लीज पर लेकर यहां अद्भुत वास्तुशैली
वाली चौरासी छोटी-छोटी कुटियों और सौ से अधिक गुफाओं का निर्माण
कराया था। यकीन जानिए ध्यान-साधना के लिए इससे बेहतर स्थान आपको और
कोई नहीं मिलेगा।--------------------------------------------
अब बढ़ते हैं चारधाम में प्रथम तीर्थ यमुनोत्री धाम की ओर।
हमारी यात्रा का पहला पड़ाव है उत्तरकाशी जिले में स्थित बड़कोट
कस्बा। ऋषिकेश से यहां पहुंचने के लिए हमें चंबा व धरासू होते हुए
169 किमी की दूरी सड़क मार्ग से तय करनी पड़ेती। जबकि, देहरादून से
मसूरी होते हुए बड़कोट की दूरी महज 130 किमी है। बड़कोट के
इर्द-गिर्द यमुना नदी के किनारे स्थित कई धार्मिक, ऐतिहासिक व
रमणीक स्थल हैं। इनमें से लाखामंडल, थान गांव, गंगनाणी, तिलाड़ी
मैदान, खरसाली, गुलाबीकांठा जैसे पर्यटन स्थलों की सैर हम आधे घंटे
से लेकर दो घंटे तक में कर सकते हैं। बड़कोट से लाखामंडल 25 किमी,
ऋषि जमदग्नि की तपस्थली थान गांव 11 किमी, गंगनाणी सात किमी,
ऐतिहासिक तिलाड़ी मैदान 3.5 किमी, देवी यमुना का शीतकालीन प्रवास
स्थल खरसाली गांव 45 किमी और गुलाबी कांठा 52 किमी की दूरी पर हैं।
गुलाबी कांठा समुद्रतल से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर आनंद की अनुभूति
कराने वाला बुग्याल है। चारों ओर से बर्फ की चादर ओढ़े गगन चूमते
शिखरों के बीच गुलाबी कांठा सम्मोहन बिखेरता प्रतीत होता है।
प्रकृति में खो जाने का एहसास
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यमुनोत्री दर्शन हो लिए। अब बढ़ते हैं यात्रा के दूसरा पड़ाव
गंगोत्री धाम की ओर। इसके लिए हमें उत्तरकाशी पहुंचना पड़ेगा। यहां
से गंगोत्री धाम सौ किमी की दूरी पर है। गंगोत्री धाम के आसपास तो
प्रकृति ने खुले हाथों नेमतें बिखेरी हुई हैं। ऐसा प्रतीत होता है,
मानो हिमालय की धवल चोटियां अपने पास बुला रही हैं। ...तो बढ़ते
हैं 19 किमी की दूरी पर स्थित भागीरथी (गंगा) के उद्गम गोमुख
ग्लेशियर की ओर। बेहद रोमांचक पैदल ट्रेक है यह। गंगोत्री से 33
किमी दूर मां गंगा का शीतकालीन प्रवास स्थल मुखबा गांव है और मुखबा
के पास ही मार्कंडेयपुरी। हां! अगर लंबे सफर के इच्छुक नहीं हैं तो
नौ किमी दूर जाह्नवी व भागीरथी नदी के संगम पर स्थित भैरों घाटी,
20 किमी दूर हर्षिल कस्बे, 14 किमी दूर केदारताल, 25 किमी दूर
नंदनवन, नौ किमी दूर चीड़बासा, 14 किमी दूर भोजबासा आदि मनोरम
स्थलों की सैर भी कर सकते हैं। नंदनवन से तो आपका वापस लौटने का मन
ही नहीं करेगा।ऐतिहासिक गर्तांगली से गुजरने का रोमांच
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वैसे ऐतिहासिक गर्तांगली (चट्टान को काटकर लकड़ी से बनाया गया
सीढ़ीनुमा मार्ग) भी बहुत दूर नहीं है। इसके लिए आपको गंगोत्री धाम
से 12 किमी पहले लंका पहुंचना होगा। लंका से आधा किमी दूर भैरवघाटी
का प्रसिद्ध मोटर पुल है। इस पुल से पहले बायीं ओर भैरवघाटी से
नेलांग को जोड़ने वाला पारंपरिक पैदल ट्रेक है। भैरवघाटी पुल से दो
किमी दूर जाड़ गंगा घाटी में गर्तांगली मौजूद है। वर्ष 1962 से
पहले भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक गतिविधियों के संचालन को
उत्तरकाशी पहुंचने का गर्तांगली ही एकमात्र मार्ग हुआ करता था।
17वीं सदी में पेशावर के पठानों ने चट्टान काटकर यह ऐतिहासिक मार्ग
बनाया था। यहां से आगे चीन सीमा शुरू हो जाती है।
मन मोह लेने वाला वासुकी ताल
-----------------अब बढ़ते हैं तीसरे पड़ाव केदारनाथ धाम की ओर। इसके लिए हमें
गौरीकुंड पहुंचना होगा। यहां से केदारनाथ तक 16 किमी का पैदल ट्रेक
है, जो समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई तक से गुजरता है। आप
ट्रेकिंग के शौकीन हैं तो धाम से तीन किमी ऊपर चौराबाड़ी ताल की
सैर भी कर सकते हैं। यह वही झील है, जो जून 2013 में केदारघाटी की
तबाही का कारण बनी थी। केदारनाथ धाम से ही आठ किमी दूर 13,563 की
ऊंचाई पर मनोहारी वासुकी ताल मौजूद है, लेकिन यह ट्रेक बेहद कठिन
है। हालांकि, प्रकृति के खूबसूरत नजारों के बीच से गुजरने का अनुभव
थकान का एहसास तक नहीं होने देता। यहां तमाम दुर्लभ फूलों के साथ
देव पुष्प ब्रह्मकमल की भरमार है। केदारनाथ से लौटते हुए वक्त मिले
तो त्रियुगीनारायण की सैर आपकी यात्रा को यादगार बना देगी।
सोनप्रयाग से 12 किमी की दूरी पर स्थित त्रियुगीनारायण गांव के
बारे में मान्यता है कि यहीं भगवान शिव का देवी पार्वती के साथ
विवाह संपन्न हुआ था।
भैरवनाथ मंदिर और रुद्र गुफा
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केदारनाथ धाम पहुंचकर 800 मीटर दूर पास की पहाड़ी पर स्थित
भैरवनाथ मंदिर में दर्शन नहीं किए तो क्या किया। ...और कुछ वक्त
ध्यान-साधना में गुजारना चाहते हैं तो केदारनाथ मंदिर से 800 मीटर
दूर मंदाकिनी नदी के दूसरी ओर दुग्ध गंगा के पास पहाड़ी पर स्थित
रुद्र गुफा आपके स्वागत को तैयार है। इसी गुफा में अपनी केदारनाथ
यात्रा के दौरान 18 मई 2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी
ध्यान लगाया था। गुफा में आपके आराम का भी ध्यान रखा गया है और
खाने के लिए पहाड़ी व्यंजन भी आसानी से उपलब्ध हैं। वापसी में जब
आप गुप्तकाशी पहुंचते हैं तो ठीक सामने दूसरी पहाड़ी पर एक छोटा-सा
नगर ऊखीमठ नजर आता है। गुप्तकाशी से ऊखीमठ की सड़क दूरी महज 17
किमी है। समुद्रतल से 4328 फीट की ऊंचाई पर बसे इसी खूबसूरत नगर
में स्थित है पंचगद्दी स्थल ओंकारेश्वर धाम। कपाट बंद होने के बाद
भगवान केदारनाथ और द्वितीय केदार भगवान मध्यमेश्वर की शीतकालीन
पूजा यहीं संपन्न होती है। इसलिए इसे शीत केदार के नाम से भी जाना
जाता है। रुद्रप्रयाग जिले में स्थित इस मंदिर में पांचों केदार
केदारनाथ, मध्यमेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ व कल्पेश्वर एक साथ दर्शन
देते हैं।मिनी स्विटजरलैंड चोपता
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ऊखीमठ आ ही गए हैं तो यहां से 48.3 किमी दूर मिनी स्विटजरलैंड
नाम से प्रसिद्ध चोपता की सैर भी कर लीजिए। रुद्रप्रयाग जिले में
समुद्रतल से 9500 फीट की ऊंचाई पर स्थित चोपता अपनी खूबसूरती के
साथ पंचकेदार में सबसे ऊंचे शिव मंदिर तृतीय केदार तुंगनाथ धाम और
चंद्रशिला ट्रेक के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां आप स्कीइंग का आनंद
लेने के साथ वन्यजीव अभयारण्य का भी दीदार कर सकते हैं। कस्तूरी
मृग का दीदार भी इसी अभयारण्य में होता है।औली और गौरसों बुग्याल की सैर
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अब हम यात्रा के अंतिम चरण में बदरीनाथ धाम की ओर बढ़ रहे हैं,
जो जोशीमठ से महज 45 किमी की दूरी पर है। जोशीमठ अपने आप में एक
खूबसूरत पर्यटन स्थल है। यहां से महज 14 किमी दूर विश्व प्रसिद्ध
स्कीइंग स्थल औली के दीदार होते हैं। जोशीमठ से औली जाने के लिए
4.15 किमी लंबा रोपवे भी है, जो देवदार के घने जंगल के ऊपर से
गुजरता है। औली आए हैं यहां से लगभग चार किमी ऊपर दस हजार फीट की
ऊंचाई पर गौरसों बुग्याल जाना न भूलें। प्रकृति ने इस सैरगाह को
बड़ी फुर्सत में संवारा है। बदरीनाथ धाम में दर्शन के साथ आप
शेषनेत्र झील और बदरीश झील के किनारे भी कुछ वक्त अवश्य गुजारें।
दोनों झील मंदिर के एक किमी के दायरे में हैं। बदरीनाथ धाम के पास
ही एक किमी की दूरी पर नंदा देवी का मायका बामणी गांव बसा हुआ है।
यहां देवी उर्वशी और भगवान नारायण की जन्म स्थली लीलाढुंगी के
दर्शन आपकी यात्रा का यादगार बना देंगे।चीन सीमा पर बसा देश का प्रथम गांव
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बदरीनाथ से लगभग तीन किमी दूर भगवान नारायण की माता देवी
मूर्ति का छोटा-सा मंदिर है। भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को यहां भगवान
नारायण के प्रतिनिधि उद्धवजी का माता मूर्ति से मिलन भाव विह्वल कर
देने वाला दृश्य साकार करता है। बदरीनाथ धाम से तीन किमी आगे चीन
सीमा की ओर देश का प्रथम गांव माणा बसा हुआ है। इस खूबसूरत गांव
में भोटिया जनजाति के परिवार रहते हैं, जो बदरीनाथ धाम के
हक-हकूकधारी भी हैं। यहां औषधीय जड़ी-बूटियां बहुतायत में मिलती
हैं। माणा में भेड़ की ऊन से हथकरघा पर तरह-तरह के पारंपरिक वस्त्र
तैयार होते हैं। इसके अलावा यह गांव आलू व राजमा की खेती के लिए भी
प्रसिद्ध है। शीतकाल में भगवान बदरी नारायण को इसी गांव की कुंवारी
कन्याओं का तैयार किया हुआ ऊन का कंबल ओढ़ाया जाता है।-------------------------------------
माणा गांव के पास महाभारतकालीन एक पुल भी मौजूद है, जिसे भीम
पुल कहते हैं। मान्यता है कि जब पांडव इस गांव से होते हुए स्वर्ग
जा रहे थे तो रास्ते में सरस्वती नदी पड़ी, जिसे पार करने को भीम
ने दो बड़ी-बड़ी चट्टान उठाकर नदी के ऊपर रखकर आगे के लिए रास्ता
बनाया। माणा का संबंध भगवान गणेश से है। कहते हैं कि महर्षि
वेदव्यास से सुनकर भगवान गणेश ने यहां एक गुफा में महाभारत
महाकाव्य की रचना की थी। माणा गांव के उत्तर में गणेश गुफा, माणा
गांव के ऊपर 200 मीटर की दूरी पर व्यास गुफा और बदरीनाथ से एक किमी
दूर नारायण पर्वत पर भृगु गुफा मौजूद है। माणा गांव से आठ किमी दूर
122 मीटर ऊंचा जल प्रपात है, जिसे वसुधारा नाम से जाना जाता है।
वसुधारा के फेन से उड़ते जल के छींटे जब तन पर पड़ते हैं तो सारे
सफर की थकान पलभर में उड़नछू हो जाती है।
मौसम
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चारधाम यात्रा मार्ग पर उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग व चमोली जिले
में पड़ने वाले अधिकांश तीर्थ एवं पर्यटन स्थल सात हजार से लेकर 12
हजार फीट तक की ऊंचाई पर स्थित हैं। यहां मौसम पल-पल रंग बदलता
रहता है और कभी भी वर्षा और बर्फबारी होने लगती है। ऐसे में
न्यूनतम तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे चले जाना सामान्य
बात है। इसलिए इन स्थानों की सैर करने का मन है तो गर्म कपड़े,
जरूरी दवाइयां व पोर्टेबल आक्सीजन सिलेंडर साथ लेकर ही आएं। यात्रा
करने से पूर्व स्वास्थ्य की जांच भी अवश्य करा लें।खाने-ठहरने की सुविधा
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केदारनाथ धाम के ऊपर चौराबाड़ी ताल व वासुकी ताल को छोड़कर हर
तीर्थ व पर्यटन स्थल पर खाने-ठहरने की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध है।
आप यहां पारंपरिक भोजन- जैसे मंडुवे की रोटी, हरा नमक, तिल, भट व
भांग की चटनी, आलू के गुटके, पहाड़ी राजमा, उड़द व कुलथ की दाल,
आलू का थिंचोंणी, फाणू, चैंसू, कंडाली का साग, झंगोरे की खीर,
झंगोरे का भात, पिंडालू (अरबी के पत्ते) के पत्यूड़, ताजा मक्खन के
साथ कुलथ की दाल के भरवां परांठे, दाल के पकौड़े, रोट, अरसा आदि का
जायका ले सकते हैं। अन्य प्रांतों के व्यंजन भी अधिकतर स्थानों पर
आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
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