ब्रह्म के रहस्य से परिचित कराता है कुंभ
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दिनेश कुकरेती
सनातन धर्म की मान्यता है कि संसार के सभी प्राणियों में आत्मा का वास है, लेकिन इनमें मनुष्य ही ऐसा प्राणी है, जो इस लोक में पाप एवं पुण्य, दोनों कर्म भोग सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। सनातनी परंपरा में चार मुख्य संप्रदाय बताए गए हैं। पहला वैष्णव, जो विष्णु को परमेश्वर मानता है। दूसरा शैव, जो शिव को परमेश्वर मानता है। तीसरा शाक्त, जो देवी को परमशक्ति मानता है और चौथा स्मार्त, जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों का एक समान मानता है। बावजूद इसके ज्यादातर सनातनी स्वयं को किसी भी संप्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते।
उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म (ब्रह्मा नहीं) ही परम तत्व है। ब्रह्म ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है और सृष्टि का आधार है। इसी से सृष्टि की उत्पत्ति होती है और नष्ट होने पर सृष्टि इसी में विलीन हो जाती है। व्याकरणाचार्य स्वामी दिव्येश्वरानंद कहते हैं कि ब्रह्म एक और सिर्फ एक ही है। वही विश्वातीत भी है और विश्व से परे भी। वही परम सत्य, सर्वशक्तिमान व सर्वज्ञ है। वही कालातीत, नित्य व शाश्वत है और वही परम ज्ञान भी है। वह कहते हैं कि ब्रह्म के दो रूप हैं, परब्रह्म व अपरब्रह्म।
परब्रह्म असीम, अनंत और रूप-शरीर विहीन है। वह सभी गुणों से परे है, फिर भी उसमें अनंत सत्य, अनंत चित और अनंत आनंद है। ब्रह्म की पूजा नहीं की जाती, क्योंकि वह पूजा से परे और अनिर्वचनीय है। उसका ध्यान किया जाता है। प्रणव अक्षर ओउम् ब्रह्म वाक्य है, जिसे सनातनी परंपरा में परम पवित्र शब्द माना गया है। मान्यता है कि ओउम् की ध्वनि पूरे ब्रह्मांड में गुंजायमान है। ध्यान में गहरे उतरने पर वह सुनाई देती है।
ब्रह्म की परिकल्पना वेदांत दर्शन का केंद्रीय स्तंभ है और सनातन धर्म की विश्व को अनुपम देन है। देखा जाए तो ब्रह्म ऐसा रहस्य है, जिसे दुनिया के हर मत-संप्रदाय को मानने वाला व्यक्ति जानना चाहता है और समझना चाहता है। उसकी यही जिज्ञासा उसे खींच लाती है कुंभ जैसे अनूठे अनुष्ठानों में। मानवीयता का जो भाव कुंभ में देखने को मिलता है, वह और कहीं संभव नहीं। कुंभ में दुनिया का सबसे बड़ा आकर्षण विश्व कल्याण का वह भाव है, जो 'सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामय:Ó का संदेश पूरे मानव समाज को देता है।
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