Friday, 2 April 2021

एक हजार साल में 11वीं बार 14 अप्रैल को मेष संक्रांति

एक हजार साल में 11वीं बार 14 अप्रैल को मेष संक्रांति

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दिनेश कुकरेती

कुंभ का संयोग कब व कहां बनेगा, यह गुरु और सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है। जब सूर्य मेष राशि और गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं, तब हरिद्वार कुंभ का आयोजन होता है। कथा है कि समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को पाने के लिए देव-दानवों में 12 दिन तक अविराम युद्ध होता रहा। इस संघर्ष के दौरान पृथ्वी में चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन व नासिक) पर कलश छलक पड़ा। इससे सर्वप्रथम अमृत की बूंदें हरिद्वार में बह रही पतित पावनी गंगा में गिरीं। जब यह अमृत छलका, तब सूर्य व चंद्र मेष राशि और गुरु कुंभ राशि में भ्रमण कर रहे थे। तभी से हर 12 वर्ष के अंतराल में हरिद्वार कुंभ का आयोजन होता है।

खगोलीय गणना के अनुसार सूर्य की गति भी हर 70 साल के अंतराल में परिवर्तित हो जाती है। सूर्य एक अंश रोज चलता है और 30 दिन में 30 अंश पार कर लेता है। लेकिन, 70 साल के अंतराल में मेष संक्रांति एक दिन के बाद शुरू होती है। यही मेष संक्रांति इस बार 14 अप्रैल को पड़ रही है, जो हरिद्वार कुंभ पर्व के मुख्य स्नान की तिथि है। हालांकि, बीते एक हजार वर्षों के दौरान कुंभ मेले के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो यह हमेशा ही ऐसा नहीं रहा। इस लंबे कालखंड में मेष संक्रांति की तिथि में लगातार परिवर्तन होता रहा है। 2021 ईस्वी में पड़ रहा यह बारहवां कुंभ है, जब 14 अप्रैल को मेष संक्रांति होने से यही कुंभ पर्व का मुख्य स्नान होगा। 

ज्योतिषाचार्य डॉ. सुशांत राज कहते हैं कि 21वीं सदी के इस दूसरे कुंभ से पूर्व बीते हजार वर्षों के दौरान हरिद्वार में 86 कुंभ हो चुके हैं। अब तक के दस कुंभ पर्वों के दौरान मेष संक्रांति 14 अप्रैल को पड़ती रही है और इस बार भी पड़ रही है। लेकिन, 1001 ईस्वी में यह एक अप्रैल और 1108 ईस्वी में दो अप्रैल को पड़ी थी। महत्वपूर्ण बात देखिए कि इस कालखंड में 11 अप्रैल को छोड़कर एक से 14 अप्रैल तक की सभी तारीख में कुंभ स्नान हुआ। 11 अप्रैल को कभी भी कुंभ स्नान का मुहूर्त नहीं निकला।

बीते हजार वर्षों में कब, किस तारीख को हुआ कुंभ का मुख्य स्नान

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-वर्ष 1001, 1013, 1025, 1037, 1049, 1062, 1072, 1084 व 1096 में एक अप्रैल

-वर्ष 1108, 1120 व 1132 में दो अप्रैल

-वर्ष 1144, 1156, 1167 व 1179 में तीन अप्रैल

-वर्ष 1191, 1203, 1215, 1227, 1239, 1250, 1262, 1274, 1286 व 1298 में चार अप्रैल

-वर्ष 1310, 1322, 1333, 1345, 1357, 1369, 1381 व 1393 में पांच अप्रैल

-वर्ष 1403, 1416, 1428, 1440 व 1452 में छह अप्रैल

-वर्ष 1464, 1476 व 1488 में सात अप्रैल

-वर्ष 1500, 1511 व 1523 में आठ अप्रैल

-वर्ष 1535, 1547, 1559, 1571, 1583, 1594, 1606, 1618, 1630, 1642, 1654, 1666, 1677 व 1689 में नौ अप्रैल

-वर्ष 1701, 1713, 1725, 1737, 1744, 1760, 1772, 1784 व 1796 में दस अप्रैल

-वर्ष 1808, 1820, 1832 व 1844 में 12 अप्रैल

-वर्ष 1855, 1867, 1879 व 1891 में 13 अप्रैल

-वर्ष 1903, 1915, 1927, 1938, 1950, 1962, 1974, 1986, 1998, 2010 और अब 2021 में 14 अप्रैल

सबसे कम बार बुधवार को हुए मुख्य स्नान

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बीते एक हजार वर्षों में 12-12 बार सोमवार, मंगलवार, शनिवार व रविवार को कुंभ के मुख्य स्नान हुए। जबकि, बुधवार को दस, गुरुवार को 13 और शुक्रवार को 14 बार मुख्य स्नान पर्व पड़े। इस बार मुख्य स्नान फिर बुधवार को पड़ रहा है।

11 वर्ष में होता है हर आठवां कुंभ

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प्राचीन काल में विद्वानों ने ब्रह्मांड को बारह भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग को पृथक राशिनाम प्रदान किया। सूर्यादि नवग्रहों के इन राशि चक्रों से गुजरने को ही ग्रहों का गोचर (गमन या चलना) कहा जाता है। सभी ग्रहों का भ्रमणकाल भी अलग-अलग है। इनमें सूर्य सभी बारह राशियों को पार करने में एक वर्ष का समय लेता है, जबकि चंद्रमा लगभग 27 दिन तीन घंटे। इसी तरह गुरु को बारह राशियों का चक्र भेदने में लगभग 12 वर्ष लगते हैं। यही वजह है कि चारों स्थानों (हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन व नासिक) पर एक कुंभ के बाद दूसरा कुंभ 12 साल के अंतराल में पड़ता है। हालांकि, गुरु की पूर्ण गति ठीक बारह वर्ष नहीं होती और वह राशियों की परिक्रमा में 11 वर्ष 11 महीने व 27 दिन (4332.5 दिन) का समय लेता है। इसके चलते सातवें और आठवें कुंभ के बीच यह अंतर बढ़ते-बढ़ते लगभग एक वर्ष का हो जाता है। इस तरह हर आठवां कुंभ 12 के बजाय 11 वर्ष में होता है।

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