आसमान छूते चमकीले पहाड़, मीलों दूर तक पसरी बर्फ की चादर, दूर-दूर तक नजर आते बर्फीली चोटियों के दिलकश नजारे। यह सब देखने के लिए आपको स्विट्जरलैंड जाने की जरूरत नहीं, क्योंकि ऐसी जगह तो हमारे करीब ही मौजूद है और वह है विश्व प्रसिद्ध हिमक्रीड़ा स्थल औली। आप भी अगर बर्फ पर अठखेलियां करने के शौकीन हैं तो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित औली से मुफीद और कोई जगह नहीं। यहां बर्फ पर स्कीइंग का आनंद लेने के लिए दुनियाभर से पर्यटक खिंचे चले आते हैं। औली की सुंदरता ही ऐसी है कि सिर्फ सर्दी ही नहीं, बल्कि हर मौसम में यहां पर्यटकों की भीड़ बनी रहती है। बर्फ की सफेद चादर ओढ़े पहाड़ों पर सूर्योदय का नजारा हो या सूर्यास्त का, औली हर पहर अलग ही रंगत बिखेरता नजर आता है। ऐसे में निर्णय करना मुश्किल हो जाता है कि इस सुंदरता का कौन-सा रंग सबसे खूबसूरत है। दिन के वक्त सूर्य की रोशनी से यहां हिमाच्छादित पहाड़ चांदी की सी चमक बिखेरते नजर आते हैं तो शाम के समय आप सूरज और चांद को धरती के बिल्कुल करीब महसूस कर सकते हैं। यहां बर्फ इतनी अद्भुत होती है कि आप उसे चख भी सकते हैं। पूरी दुनिया औली को बेहतरीन स्की रिजॉर्ट के रूप में जानती है, लेकिन जो लोग केवल कुदरत को करीब से निहारने का जुनून लिए होते हैं, उनके लिए औली किसी वरदान से कम नहीं है। यहां न केवल बर्फ, बल्कि भरपूर चमकती हरियाली, हरे-भरे खेत, छोटे-बड़े देवदार के पेड़ों केबीच ऊंची-नीची चट्टानों पर बिछी मुलायम हरी घास, पतले एवं घुमावदार रास्ते और जहां तक निगाहें घुमाओ, वहां तक पहाड़ ही पहाड़ नजर आते हैं। जो शीत ऋतु की शुरुआत के साथ चांदी की सी चमक बिखेरने लगते हैं।
जोशीमठ से 16 किमी दूर समुद्रतल से 9500 से लेकर 10500 फीट तक की ऊंचाई पर तीन किमी क्षेत्र में फैली हंै औली की बर्फ से लकदक खूबसूरत दक्षिणमुखी ढलानें। 1640 फीट की गहरी ढलान में स्कीइंग का जो रोमांच यहां है, वह दुनिया में दूसरी जगहों पर शायद ही हो। इसलिए औली की ढलानें स्कीयरों के लिए बेहद मुफीद मानी जाती हैं। यहां तक कि शिमला (हिमाचल प्रदेश) और गुलमर्ग (जम्मू-कश्मीर) की ढलानों से भी बेहतर हैं यह ढलानें।
सूरज को गले लगाते पहाड़
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एशिया में गुलमर्ग रोपवे को सबसे लंबा माना जाता है। इसके बाद औली-जोशीमठ रोपवे का नंबर है। करीब 4.15 किमी लंबे इस रोपवे की आधारशिला वर्ष 1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रखी थी। जो वर्ष 1994 में बनकर तैयार हुआ। देवदार के घने जंगलों के बीच से यह रोपवे दस टॉवरों से होकर गुजरता है। जिग-जैक पद्धति पर बने इस रोपवे में आठ नंबर टॉवर से उतरने-चढऩे की व्यवस्था है।
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वर्ष 1942 में गढ़वाल के अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर बर्नेडी औली पहुंचे थे। उन्हें यहां की नैसर्गिक सुंदरता इस कदर भायी कि सर्दी में दोबारा यहां पहुंच गए। बर्नेडी ने यहां की बर्फीली ढलानों पर पहली बार स्कीइंग की। वर्ष 1972 में आइटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस) के डिप्टी कमांडेंट हुकुम सिंह पांगती ने भी कुछ जवानों के साथ औली में स्कीइंग की। आइटीबीपी के अधिकारियों को यहां की बर्फीली ढलानें बेहद पसंद आईं। 25 मार्च 1978 को यहां भारतीय पर्वतारोहण एवं स्कीइंग संस्थान की स्थापना हुई।
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बर्फबारी के बाद जब मौसम खुलता है तो औली की 'स्लीपिंग ब्यूटीÓ का आकर्षण हर किसी को सम्मोहित करता है। दरअसल, औली के ठीक सामने का पहाड़ बर्फ से ढकने पर लेटी हुई युवती का आकार ले लेता है। इस दृश्य को देखना और कैमरों में कैद करने के लिए पर्यटकों में होड़ लगी रहती है। इसे ही स्लीपिंग ब्यूटी के नाम से जानते हैं।
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पर्यटक यहां होने वाली स्कीइंग स्पर्धा और आस-पास के कुदरती नजारों का भरपूर लुत्फ उठा सकते हैं। इसके लिए औली में 800 मीटर लंबी चेयर लिफ्ट की सुविधा भी है, जिसमें बैठकर औली का विहंगम दीदार किया जा सकता है। इस खुली चेयर लिफ्ट से सैर का अलग ही रोमांच है। यही नहीं, स्कीइंग देखने के लिए अलग-अलग स्थानों पर सात ग्लास हाउस भी बनाए गए हैं, जिनसे औली की खूबसूरत वादियों को निहारा जा सकता है। आप यहां स्कीइंग के अलावा रॉक क्लाइंबिंग, फॉरेस्ट कैंपिंग, घोड़े की सवारी आदि का भी मजा ले सकते हैं।
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विश्व में सबसे अधिक ऊंचाई पर कृत्रिम झील औली में मौजूद है। 25 हजार किलो लीटर की क्षमता वाली इस झील का निर्माण वर्ष 2010 में किया गया था। बर्फबारी न होने पर इसी झील से पानी लेकर औली में कृत्रिम बर्फ बनाई जाती है। इसके लिए फ्रांस में निर्मित अत्याधुनिक मशीनें लगाई गई हैं।
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वैसे तो सालभर आप औली जा सकते हैं, लेकिन यदि आप स्कीइंग के इरादे से यहां जाना चाहते हैं तो नवंबर से मार्च के बीच का समय सबसे बेहतर रहेगा। दिसंबर से फरवरी के बीच भारी बर्फबारी होने के कारण यहां का वातावरण बेहद ठंडा रहता है। मई से नवंबर के बीच भी यहां गुलाबी ठंडक रहती है, इसलिए चाहें तो इस दौरान आउटडोर एक्टिविटीज में शामिल होकर रिलैक्स कर सकते हैं।
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दस नंबर स्लोप (सफेद) 900 मीटर लंबा
आठ नंबर स्लोप (नीला) 800 मीटर लंबा
टेंपल स्लोप (लाल) 400 मीटर लंबा (नौसिखियों के लिए)
कंपोजित स्लोप (समग्र ढलान) 3.1 किमी लंबा
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यहां पर्यटकों के ठहरने के लिए जीएमवीएन का भव्य गेस्ट हाउस और लगभग दो दर्जन हट्स हैं। इनमें से कुछ हट्स फाइबर ग्लास के हैं। सामान्य हट्स तो हनीमून मनाने वाले युगल या अन्य युवा दंपतियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। यहां कमरों के अलावा डॉरमेट्री भी उपलब्ध हैं। साथ ही कैंटीन और अच्छे रेस्तरां भी हैं। इसके अलावा आइटीबीपी का भी अपना रेस्टोरेंट है। आप चाहें तो यहां घूमने के बाद ठहरने के लिए जोशीमठ जा सकते हैं। जोशीमठ में ढेरों होटल व गेस्ट हाउस हैं।
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औली की पौराणिक महत्ता किसी से छिपी नहीं है। कभी औली को संजीवनी शिखर के नाम से जाना जाता था। पौराणिक गाथाओं के अनुसार हनुमान जी जब संजीवनी लेने हिमालय की इस वीरान पहाड़ी पर आए तो उन्हें संजीवनी शिखर से ही द्रोणागिरी पर्वत पर संजीवनी बूटी का खजाना दिखा था। कालांतर में यहां हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की गई।
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औली अलग-अलग मौसम में अलग-अलग रूप दिखाता है। बरसात में हरियाली ओढ़े औली एक खूबसूरत नवयौवना के रूप में दिखती है तो शीतकाल में बर्फ की सफेद चादर ओढ़े औली की सादगी भी भव्य रूप में प्रकट होती है।
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औली में कभी क्षेत्र के विभिन्न गांवों की छानियां हुआ करती थीं। इन गांवों के लोग वसंत ऋतु में यहां अपने मवेशियों के साथ प्रवास करते थे। हालांकि, आज भी सलूड़-डुंग्रा क्षेत्र के ग्रामीण यहां छानियों में रहने आते हैं।
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औली ट्रिप के लिए कुछ ट्रेवलिंग वेब साइट्स पर 20 हजार से 30 हजार रुपये तक के टूर पैकेज उपलब्ध हैं। ये पैकेज लोगों की संख्या, औली में रुकने के दिन आदि सुविधाओं के आधार पर कम-ज्यादा भी हो सकते हैं। अगर आप दिल्ली से आ रहे हैं तो कम से पांच रात छह दिन का समय चाहिए।
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औली से तीन किमी ऊपर यह मीलों लंबा-चौड़ा चरागाही मैदान है, जो ओक और कोनिफर के जंगलों से घिरे होने के कारण अधिक मनोरम प्रतीत होता है। जाड़े के दिनों में यहां बर्फ जमी रहती है, जबकि गर्मी के दिनों में दर्जनों किस्म के ऐसे फूल खिले रहते हैं, जो आसानी से और कहीं देखने को नहीं मिलते।
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गोरसों बुग्याल से एक और औली से चार किमी दूर जंगल के मध्य में स्थित इस स्थान पर साफ और मीठे पानी का एक छोटा-सा सरोवर है। हालांकि, छत्रकुंड में विशेष कुछ नहीं है, फिर भी यहां का शांत माहौल और सुहाना दृश्य तन-मन में ताजगी भर देता है।
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औली से 16 किमी दूर यह स्थान थोड़ा नीचे स्थित है। यहां के बारे में किंवदंती है कि आद्य शंकराचार्य ने यहीं पर दिव्य ज्योति के दर्शन किए थे और यहीं पर ज्योतिर्मठ की स्थापना की थी। कालांतर में ज्योतिर्मठ का अपभ्रंश 'जोशीमठÓ हो गया और यह पूरा क्षेत्र जोशीमठ कहा जाने लगा। प्राकृतिक सुषमा, पौराणिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से अपना विशिष्ट महत्व रखने वाला यह स्थान बदरीनाथ, हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी का प्रवेश द्वार भी है।