-------------------------------------------------------------
दिनेश कुकरेती
वसंत के आगमन के साथ धरा पुष्पों का आवरण ओढ़ चुकी है। चित्त में नवजीवन, नव उत्साह और आनंद का संचार होने से ऐसा लगता है, मानो सृष्टि ने नवयौवना का रूप धारण कर लिया हो। इसी उल्लासित वातावरण के बीच होती है भारतीय विक्रमी नववर्ष के साथ वासंतिक (चैत्र) नवरात्र की शुरुआत। 'सर्वप्रिये चारुतर वसंतेÓ में महाकवि कालीदास कहते हैं, 'नववर्ष का आरंभ जन-मन के उल्लास, उमंग एवं आनंद को द्विगुणित कर देने वाला है। वसंत हृदय में कोमल प्रवृत्तियों को जगाकर चित्त में नवजीवन, नव उत्साह, मस्ती, मादकता व आनंद प्रदान कर समस्त सृष्टि को नवयौवन की अनुभूति करा रहा है। कानन में टेसू (पलाश) के फूल, बागों में आमों पर बौर, आम्रमंजरी पर मंडराते भौंरे और कोयल की कूक मन को उद्वेलित कर वातावरण को मादक बना रही है।Ó इससे पहले, चैत्र संक्रांति से उत्तराखंड में नौनिहालों के लोकपर्व फूलदेई की शुरुआत हो चुकी होती है। यह एक तरफ आनंद का उत्सव है तो दूसरी तरफ विजय और परिवर्तन के आरंभ का प्रतीक। आइए! हम भी नववर्ष का उल्लास मनाएं।
राजा और मंत्री, दोनों ही मंगल
---------------------------------
ज्योतिष शास्त्र में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को वर्ष प्रतिपदा कहा गया है। यह भारतीय कालगणना का प्रथम दिन है। इसी दिन से भारतीय विक्रमी नववर्ष की शुरुआत होती है। इस बार 13 अप्रैल 2021 से विक्रमी संवत-2078 प्रारंभ हो रहा है। इसे 'राक्षसÓ संवत्सर के नाम से जाना जाएगा। नए संवत्सर के राजा और मंत्री, दोनों मंत्री होंगे।
यही सौर संवत्सर, यही चंद्र संवत्सर
----------------------------------------
विक्रमी संवत में सूर्य व चंद्रमा, दोनों की गति का ध्यान रखा जाता है। इसलिए यह सौर संवत्सर भी है और चंद्र संवत्सर भी। चंद्रवर्ष का सौर वर्ष से मेल-मिलाप ठीक रखने के लिए ही शुद्ध वैज्ञानिक आधार पर प्रत्येक तीन वर्ष बाद एक माह या अधिकमास की अतिरिक्त व्यवस्था की गई है। बीच-बीच में नक्षत्रों की स्थिति के अनुरूप तिथियों की घटत-बढ़त की जाती है।
140 या 190 वर्ष में आता है क्षयमास
----------------------------------------
भारतीय कालगणना में अधिकमास की तरह क्षयमास की भी व्यवस्था है। कालगणना में जो मामूली सूक्ष्म भेद रह जाता है, वह क्षयमास से पूरा होता है। क्षयमास वर्ष में कुल 11 चंद्रमास होते हैं, जो लगभग 140 या 190 वर्ष में एक बार आता है।
स्वास्थ्य ठीक रखने को यह भी है परंपरा
--------------------------------------------
उत्तराखंड में नव संवत्सर के दिन नीम के कोमल पत्तों और ऋतुकाल के पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री, इमली और अजवायन मिलाकर खाने की परंपरा भी है। आम धारणा है कि ऐसा करने पर रक्त विकार आदि शारीरिक रोग शांत रहते हैं और पूरे वर्ष स्वास्थ्य ठीक रहता है।
सभी पर्व-त्योहारों का आधार विक्रमी संवत
-----------------------------------------------
धर्म, जाति और क्षेत्र के आधार पर भारत में लगभग 30 संवत प्रचलन में हैं। इनमें से कुछ चंद्र संवत हैं और कुछ सौर संवत। लेकिन, जो संवत सबसे अधिक लोकप्रिय है, वह है विक्रमी संवत। हमारे सभी पर्व-त्योहार इसी के आधार पर मनाए जाते हैं।
No comments:
Post a Comment