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नए वर्ष का समय बहुत अनुकूल होता है, किसी नए संकल्प के लिए, दृढ़ निश्चय से किसी नई शुरुआत के लिए। वैसे तो जीवन को सुधारने की शुरुआत कभी भी की जा सकती है, मगर मनोवैज्ञानिक रूप से नए साल के आरंभ से थोड़ा पहले या बाद में इस तरह की सोच के लिए अधिकांश तैयार रहते हैं। पिछले वर्ष भी गलतियां हुईं, उनके परिणाम भुगत लिए, चलो अब नए वर्ष के लिए तय करें कि इन गलतियों को नहीं दोहराएंगे और जीवन को बेहतर बनाएंगे। इस तरह की सोच केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन की कुछ कमजोरियों को दूर करने पर आधारित हो सकती है। लेकिन, इसे व्यापकता देने के लिए अपने, अपने परिवार के, आसपास के जीवन को अधिक उद्देश्यपूर्ण बनाने से भी जोड़ा जा सकता है। बहुत से लोग यह सोचते हैं कि हम किन्हीं एक-दो लक्ष्यों को नए साल के लिए अपना लें, तो यही बहुत है। बहुत लंबी-चौड़ी बातें सोचने में कुछ नहीं रखा है। लेकिन, यदि हम अपने जीवन को समाज के व्यापक सरोकारों और सार्थक उद्देश्यों से जोड़ें तो हो सकता है, वहीं से हमें वह शक्ति मिल जाए, जो हमें अपनी कुछ व्यक्तिगत कमजोरियों और समस्याओं में ऊपर उठने का सामथ्र्य दे सके। यह तो स्पष्ट है कि पृथ्वी पर जो लाखों जीव रूप मौजूद हैं, उनमें मनुष्य की बहुत विशिष्ट स्थिति है। मनुष्य में ही वह क्षमता है कि वह पर्यावरण की, पेड़-पौधों की, जीवन के लाखों रूपों की रक्षा के लिए नियोजित ढंग से कदम उठा सके, असरदार कार्रवाई कर सके। यही मनुष्य की मुख्य पहचान और सबसे सार्थक उद्देश्य है, जिसके साथ हमें अपने जीवन को जोडऩा है। बहुत छोटे-छोटे स्तर पर हो रहे लाखों-करोड़ों सार्थक प्रयास ही आज दुनिया की सबसे बड़ी उम्मीद हैं। यह करोड़ों की संख्या में जलने वाले छोटे-छोटे दीप ही अंधकारमय हो रही दुनिया को रोशन करेंगे।
ऐसे हुई एक जनवरी से नए साल की शुरुआत
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दिनेश कुकरेती
वैसे तो भारत में हिंदू कैलेंडर के मुताबिक चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा के दिन से नए साल की शुरुआत होती है, लेकिन पूरे विश्व में सर्वग्राह्य रूप से नया साल एक जनवरी से मनाने का चलन है। यह परंपरा कैसे अस्तित्व में आई, इसका भी रोचक इतिहास है। ऐसी मान्यता है कि जनवरी महीने का नाम रोमन देवता 'जानूसÓ के नाम पर रखा गया था। कहते हैं कि जानूस दो मुख वाले देवता थे, जिसमें एक मुख आगे और दूसरा पीछे की ओर था। दो मुख होने की वजह से जानूस को अतीत और भविष्य की सारी जानकारियां रहती थीं। इसलिए उनके नाम पर जनवरी को साल का पहला महीना और एक जनवरी को साल की शुरुआत मानी गई। कहते हैं कि नया साल आज से लगभग 4000 साल पहले बेबीलोन में मनाया गया था। असल में एक जनवरी को मनाया जाने वाला नया वर्ष ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। इसकी शुरुआत रोमन कैलेंडर से हुई। हालांकि पारंपरिक रोमन कैलेंडर का नया साल एक मार्च से शुरू होता है। रोम के प्रसिद्ध सम्राट जूलियस सीजर ने 47 वर्ष ईसा पूर्व इस कैलेंडर में परिवर्तन किया था। उन्होंने इसमें जुलाई का महीना और इसके बाद अपने भतीजे के नाम पर अगस्त का महीना जोड़ दिया। तब से नया साल एक जनवरी को ही मनाया जाता है।
एक जनवरी से लंबे होने लगते हैं दिन
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नया साल एक जनवरी से मनाए जाने के पीछे कई खगोलीय कारण भी हैं। एक जनवरी को पृथ्वी सूर्य के बेहद करीब होती है, इसलिए भी इसे साल की शुरुआत कहा जाता है। एक जनवरी को नया साल मनाने का तार्किक कारण यह भी है कि 31 दिसंबर को साल का सबसे छोटा दिन होता है और इसकेबाद दिन लंबे होने लगते हैं। इसलिए एक जनवरी को ही नए साल की शुरुआत मानी जाती है।
23 मार्च 2000 बीसी को हुआ था पहला न्यू ईयर सेलिब्रेशन
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दुनिया में सबसे पहले न्यू ईयर सेलिब्रेशन की बात करें तो वह 23 मार्च 2000 बीसी को किया गया था। हालांकि, इजिप्ट और पर्सिया जैसे देशों में 20 सितंबर को नया साल मनाया जाता है। जबकि, ग्रीक में 20 दिसंबर को नए साल के जश्न मनाने का रिवाज है।
हर जगह अपने-अपने नववर्ष
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भारत में नया साल विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है। ये तिथियां अमूमन मार्च और अप्रैल में पड़ती हैं। पंजाब में नया साल बैशाखी के रूप में 13 अप्रैल को मनाया जाता है। जबकि, सिख धर्म के अनुयायी इसे नानकशाही कैलेंडर के अनुसार मार्च में होली के दूसरे दिन मनाते हैं। जैन धर्मावलंबी नववर्ष को दीवाली के अगले दिन मनाते हैं। यह तीर्थांकर महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के अगले दिन से शुरू होता है। ङ्क्षहदू नववर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। ङ्क्षहदू मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मास मोहर्रम की पहली तारीख को नया साल हिजरी शुरू होता है।
इनकी पारंपरिक रोमन कैलेंडर को ही मान्यता
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