इस इमारत में धड़कता है दून का दिल
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दिनेश कुकरेती
देहरादून शहर अपने-आप में पीढिय़ों का इतिहास समेटे हुए है। इस शहर ने न केवल राष्ट्रीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी अलग पहचान बनाई। कई राष्ट्रीय इमारतों, महत्वपूर्ण शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थानों और नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस शहर को अंग्रेजों के जमाने से ही खास रुतबा रहा है। लेकिन, विडंबना देखिए कि आज यही शहर अपनी अमूल्य धरोहरों की उपेक्षा का दंश झेल रहा है। ऐसी ही धरोहर है दून का दिल कहा जाने वाला घंटाघर, जो आज याचक की तरह खड़ा अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। दून की सबसे सौंदर्यपूर्ण संरचनाओं में शामिल घंटाघर शहर की सबसे व्यस्ततम राजपुर रोड के मुहाने पर स्थित है और यहां की प्रमुख व्यावसायिक गतिविधियों का केंद्र भी है। पहले इस घंटाघर का घंटानाद दून के दूर-दूर के स्थानों से भी श्रव्य था, लेकिन अब यह स्थलचिह्न मात्र रह गया है। अब इसके चारों ओर दुकानें, शॉपिंग मॉल, सिनेमाघर, सरकारी भवन, पर्यटक स्थल आदि उभर आए हैं।
सवा लाख में बना था घंटाघर
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घंटाघर का इतिहास तकरीबन उतना ही पुराना है, जितना कि आजादी का। 24 जुलाई 1948 की सुबह नौ बजकर दस मिनट पर रिमझिम फुहारों के बीच इसकी नींव रखी गई थी। लाला शेर सिंह और उनके भाई आनंद सिंह, हरि सिंह व अमर सिंह ने अपने पिता लाला बलबीर सिंह की स्मृति में इसका निर्माण करवाया था। तब घंटाघर के निर्माण में सवा लाख रुपये का खर्च आया था। 70 फीट ऊंची इस इमारत पर जो छह घडिय़ां लगी हैं, उन्हें स्विटजरलैंड से मंगवाया गया था। वर्ष 1952 में जब यह इमारत बनकर तैयार हुई तो तत्कालीन रक्षा मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसका उद्घाटन किया था।
देश में खास इस घंटाघर के छह कोण
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दून का घंटाघर इस लिहाज से भी अनूठा है कि अंग्रेजों ने जो घंटाघर बनवाए थे, वे दो या चार घडिय़ों वाले हैं। जबकि, यह घंटाघर षट्कोणीय आकार का है और इसके शीर्ष के छह मुखों पर छह घडिय़ां लगी हुई हैं। यह घंटाघर ईंट और पत्थरों से निर्मित है। इसके षट्कोणीय आकार वाली हर दीवार पर प्रवेश मार्ग बना हुआ है। इसके मध्य में स्थित 80 सीढिय़ां इसके ऊपरी तल तक जाती हैं, जहां अद्र्धवृत्ताकार खिड़कियां हैं। मीनार के शिखर पर सभी छह आकृतियों में प्रत्येक पर घड़ी रखी हुई है। लाल और पीले रंग की संरचना वाली मीनार के सभी छह भागों पर सीमेंट की जाली सजाई गई है और सभी दरवाजों के ऊपर खूबसूरत झरोखे लगे हुए हैं। खास बात यह कि बिना घंटानाद के घंटाघरों में यह सबसे बड़ा घंटाघर है, जो अपने षट्कोणनुमा ढांचे के कारण देश में विशेष स्थान रखता है। यह न सिर्फ देश का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा घंटाघर है, बल्कि इसकी सबसे मुख्य बात यह है कि देश में दून और कोलकाता ही ऐसे घंटाघर हैं, जिनमें छह सुईयां हैं।
जर्जरहाल हुई ऐतिहासिक धरोहर
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पलटन बाजार व राजपुर रोड के मध्य स्थापित इस इमारत के चारों ओर बने छोटे से पार्क की हालत वर्तमान में बहुत अच्छी नहीं है। पार्क की रेलिंग टूटी हुई है और इसके सौंदर्यीकरण के भी कोई गंभीर प्रयास होते नजर नहीं आते। हां, खास दिवसों पर पार्क को इलेक्ट्रिक लाइटों से जरूर सजा दिया जाता है, लेकिन प्राकृतिक सौंदर्यीकरण की दिशा में नाममात्र को ही कार्य किए गए हैं। आलम यह है की दून की शान कही जाने वाली इस इमारत की सभी दीवारों पर झाडिय़ां उग आई हैं। घडिय़ां टूट चुकी हैं और मशीन भी जर्जरहाल हैं।
हासिल होगा पुराना वैभव
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खैर! देर आयद, दुरुस्त आयद। आखिरकार नीति-नियंता महसूस करने लगे हैं कि इस ऐतिहासिक इमारत को उसका खोया गौरव लौटाया जाए। सो, इसके कायाकल्प के लिए रस्साकसी होने लगी है। धर्मपुर विधायक एवं नगर निगम देहरादून के महापौर विनोद चमोली का कहना है कि घंटाघर की तस्वीर को नए साल में बदलने की तैयारी है। इसे बेहद आकर्षित बनाने का प्रयास किया जाएगा।
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दिनेश कुकरेती
देहरादून शहर अपने-आप में पीढिय़ों का इतिहास समेटे हुए है। इस शहर ने न केवल राष्ट्रीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी अलग पहचान बनाई। कई राष्ट्रीय इमारतों, महत्वपूर्ण शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थानों और नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस शहर को अंग्रेजों के जमाने से ही खास रुतबा रहा है। लेकिन, विडंबना देखिए कि आज यही शहर अपनी अमूल्य धरोहरों की उपेक्षा का दंश झेल रहा है। ऐसी ही धरोहर है दून का दिल कहा जाने वाला घंटाघर, जो आज याचक की तरह खड़ा अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। दून की सबसे सौंदर्यपूर्ण संरचनाओं में शामिल घंटाघर शहर की सबसे व्यस्ततम राजपुर रोड के मुहाने पर स्थित है और यहां की प्रमुख व्यावसायिक गतिविधियों का केंद्र भी है। पहले इस घंटाघर का घंटानाद दून के दूर-दूर के स्थानों से भी श्रव्य था, लेकिन अब यह स्थलचिह्न मात्र रह गया है। अब इसके चारों ओर दुकानें, शॉपिंग मॉल, सिनेमाघर, सरकारी भवन, पर्यटक स्थल आदि उभर आए हैं।
सवा लाख में बना था घंटाघर
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घंटाघर का इतिहास तकरीबन उतना ही पुराना है, जितना कि आजादी का। 24 जुलाई 1948 की सुबह नौ बजकर दस मिनट पर रिमझिम फुहारों के बीच इसकी नींव रखी गई थी। लाला शेर सिंह और उनके भाई आनंद सिंह, हरि सिंह व अमर सिंह ने अपने पिता लाला बलबीर सिंह की स्मृति में इसका निर्माण करवाया था। तब घंटाघर के निर्माण में सवा लाख रुपये का खर्च आया था। 70 फीट ऊंची इस इमारत पर जो छह घडिय़ां लगी हैं, उन्हें स्विटजरलैंड से मंगवाया गया था। वर्ष 1952 में जब यह इमारत बनकर तैयार हुई तो तत्कालीन रक्षा मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसका उद्घाटन किया था।
देश में खास इस घंटाघर के छह कोण
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दून का घंटाघर इस लिहाज से भी अनूठा है कि अंग्रेजों ने जो घंटाघर बनवाए थे, वे दो या चार घडिय़ों वाले हैं। जबकि, यह घंटाघर षट्कोणीय आकार का है और इसके शीर्ष के छह मुखों पर छह घडिय़ां लगी हुई हैं। यह घंटाघर ईंट और पत्थरों से निर्मित है। इसके षट्कोणीय आकार वाली हर दीवार पर प्रवेश मार्ग बना हुआ है। इसके मध्य में स्थित 80 सीढिय़ां इसके ऊपरी तल तक जाती हैं, जहां अद्र्धवृत्ताकार खिड़कियां हैं। मीनार के शिखर पर सभी छह आकृतियों में प्रत्येक पर घड़ी रखी हुई है। लाल और पीले रंग की संरचना वाली मीनार के सभी छह भागों पर सीमेंट की जाली सजाई गई है और सभी दरवाजों के ऊपर खूबसूरत झरोखे लगे हुए हैं। खास बात यह कि बिना घंटानाद के घंटाघरों में यह सबसे बड़ा घंटाघर है, जो अपने षट्कोणनुमा ढांचे के कारण देश में विशेष स्थान रखता है। यह न सिर्फ देश का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा घंटाघर है, बल्कि इसकी सबसे मुख्य बात यह है कि देश में दून और कोलकाता ही ऐसे घंटाघर हैं, जिनमें छह सुईयां हैं।
जर्जरहाल हुई ऐतिहासिक धरोहर
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पलटन बाजार व राजपुर रोड के मध्य स्थापित इस इमारत के चारों ओर बने छोटे से पार्क की हालत वर्तमान में बहुत अच्छी नहीं है। पार्क की रेलिंग टूटी हुई है और इसके सौंदर्यीकरण के भी कोई गंभीर प्रयास होते नजर नहीं आते। हां, खास दिवसों पर पार्क को इलेक्ट्रिक लाइटों से जरूर सजा दिया जाता है, लेकिन प्राकृतिक सौंदर्यीकरण की दिशा में नाममात्र को ही कार्य किए गए हैं। आलम यह है की दून की शान कही जाने वाली इस इमारत की सभी दीवारों पर झाडिय़ां उग आई हैं। घडिय़ां टूट चुकी हैं और मशीन भी जर्जरहाल हैं।
हासिल होगा पुराना वैभव
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खैर! देर आयद, दुरुस्त आयद। आखिरकार नीति-नियंता महसूस करने लगे हैं कि इस ऐतिहासिक इमारत को उसका खोया गौरव लौटाया जाए। सो, इसके कायाकल्प के लिए रस्साकसी होने लगी है। धर्मपुर विधायक एवं नगर निगम देहरादून के महापौर विनोद चमोली का कहना है कि घंटाघर की तस्वीर को नए साल में बदलने की तैयारी है। इसे बेहद आकर्षित बनाने का प्रयास किया जाएगा।
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