Friday, 11 September 2020

Electricity reached Mussoorie first in North India

Electricity reached Mussoorie first in North India

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When people in metros like Delhi, Mumbai and Kolkata used to light houses by lighting chimneys, dhibri, lanterns and torches, then the queen of the mountains started lighting the bulbs in many areas of Mussoorie and Dehradun.  This was possible due to the existence of the first hydroelectric project in North India and the second hydroelectric project in the country at Glogi near Mussoorie.  The project was completed in the year 1907 and then the Mussoorie lighted up.  With this power plant, the Barlowganj of Queen Mussoorie and the Anarwala area of ​​Doonghati are still illuminated.  In fact, the four power houses that the British envisaged in the country during the British period included Mysore, Darjeeling and Chamba (Himachal Pradesh), as well as the Glogi project.

Power house was prepared under Colonel Bell's supervision

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Dinesh Kukreti 

Work on the Glogi hydroelectric project started in the year 1890 on the land donated by the villagers of Kyarkuli and Bhatta villages.  The place is three km from Bhatta village on the Mussoorie-Dehradun route.  The project started power generation in the year 1907.  More than 600 people worked on the project under the supervision of Colonel Bell, the then Electrical Engineer of Mussoorie Municipality.  The cost of the project was then fixed at around six lakh rupees.  In this, the then North-West Provision Awadh and Agra Government provided a loan of Rs 4.67 lakh to the Mussoorie Municipality.  Whereas, the amount of 1.33 lakhs was to be provided by the municipality at its own level.  However, later the total cost of the project reached Rs 7.50 lakh.

 

Bullock carts

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The project was prepared by the then engineer P. Billing Hart of the Municipality of Mussoorie.  The power generating turbine for the project was purchased from London.  Then there was no road to Mussoorie, so the laborers had to work hard to deliver machines to Glogi.  Firstly, it was decided to construct a kutcha road from Garhi Dakra to transport the big generators and plants to the project site through bullock carts.  However, after a detailed survey, keeping in view the excess money and waste of time, the machines were transported to Glogi by the present Dehradun-Mussoorie motorway.  Then it used to be the bullock cart route. 



Work completed in 1907, inaugurated in 1909

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In the year 1907, the project was completed and 16 inches of pipe lines from small ponds built at Kyarkuli and Bhatta started generating electricity from two huge turbines built in England.  However, it was duly launched on 25 May 1909.



People were scared to see the bulb for the first time

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Khushiya was celebrated by playing the national song of Britain on the day the first lightning bulb lit in the library in Mussoorie.  However, people were afraid to see the bulb then what a problem it was.  But, the then engineer grabbed the bulb with his hand and explained to the people that it did not pose any threat to them.  After this, other places in Mussoorie were also lighted and then supplied to Dehradun.

Two more units established in 1933

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In the year 1933, two more units of 1000 kW were installed to increase the capacity of the power house to 3000 kW.  Which are still illuminating the Barloganj and Jharipani area of ​​Mussoorie.  It has been operated by Uttarakhand Jal Vidyut Nigam Limited since the formation of the state.



Machines reached Mumbai and rail to Doon by water vessels

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For the first time in 1900, the rail reached Dehradun, played an important role in speeding up the Glogi hydroelectric project.  Heavy machines and turbines that reached Mumbai via water vessels from England were transported to Dehradun by this rail.  From here on bullock carts and workers' shoulders these machines were transported to the project site on the hill.


Mussoorie Municipality owner of Glogi power plant for 70 years

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On 9 November 1912, Glogi Power House achieved the distinction of being the second power house in the country.  By the year 1920, lamps were removed from most of the bungalows, hotels and schools in Mussoorie and replaced by bright electric bulbs.  Mussoorie Municipality was the owner of Glogi power station for the entire 70 years.  Then the Mussoorie Municipality was considered the richest municipality in Uttar Pradesh with the income of electricity.  In 1976, the Uttar Pradesh Electricity Council acquired all the power ventures of the municipality including the power house.


Expert of London-based electrical company appreciated

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How powerful the Glogie Power House must have been during that period, it can be estimated from the letter of Dr G. Marshall, a specialist in the largest power related company of London based England.  He wrote this letter Okden on 19 December 1912, the then president of the Mussoorie municipality.  In it, he said, 'Glogi is the first hydroelectric power house in India, which has the additional capacity to run ropeways, tromways and heavy machines of several hundred horsepower.'


Hurt pulled the blueprint for the project in 1898

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In the year 1898, a hundred-page book on the hydroelectric project of the then engineer P.Willing Hurt of Mussoorie Municipality was published.  In it, he drew a detailed blueprint of the proposed project.  This shows the rich technology of energy development in that period.

Tuesday, 8 September 2020

दुनिया का सबसे पुराना खाद्यान्न रामदाना

 


दुनिया का सबसे पुराना खाद्यान्न रामदाना
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दिनेश कुकरेती
रामदाना का नाम तो आपने सुना ही होगा। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में इसे मारसा, कुमाऊं मंडल में चुआ और अन्य ङ्क्षहदी प्रदेशों में चौलाई नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि वनवास के दौरान श्रीराम रामदाना को फलाहार के रूप में लेते थे, इसलिए इसका 'रामदानाÓ नाम पड़ा। आज भी नवरात्र के दौरान व्रती रामदाना को फलाहार के रूप में ग्रहण करते हैं। रामदाना को दुनिया का सबसे पुराना खाद्यान्न माना जाता है। इससे हरा साग, रोटी, लड्डू, हलुवा जैसे व्यंजन बनाए जाते हैं। सर्दियों में बारिश और बर्फबारी के दौरान पहाड़ में लोग चूल्हे के इर्द-गिर्द बैठकर आग भी सेंकते हैं और कढ़ाई में भुना रामदाना खाते हुए मजे से गप-शप भी करते हैं। 



 

गेहूं, धान व मक्का से भी श्रेष्ठ रामदाना
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पौष्टिकता की लिहाज से रामदाने के दानों में गेहूं के आटे से दस गुना अधिक कैल्शियम, तीन गुना अधिक वसा और दोगुने से अधिक लोहा पाया जाता है। धान और मक्का से भी रामदाना श्रेष्ठ है। शाकाहारी लोगों को रामदाना खाने से मछली
के राब प्रोटीन मिलता है। रामदाने का हरा साग भी स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभकारी है। 

रामदाना की रोटी
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रामदाना के आटे की रोटी भी बनती है, जो मुंह में मिठास घोल देती है। लेकिन, आटा बेहद चिपचिपा होने के कारण रोटी मुश्किल से बनती है। इसलिए लोग रामदाना को मंडुवा व गेहंू के साथ मिलाकर पिसाते हैं। इस मिश्रित आटे की रोटी भी बेहद स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है। आप इसे बिना साग के भी खा सकते हैं। वैसे हरे साग, कढ़ी व दही के साथ भी यह मजेदार लगती है।

 गुड़ व भुने तिल के साथ खाने का मजा ही अलग -----------------------------

रामदाने के खील को गुड़ या भुने तिल के साथ खाने का मजा ही कुछ और है। इन खील को बिना पकाए गर्म दूध (धारोष्ण) के साथ मिलाकर पॉरिज की तरह खाया जा सकता है। यह बेहद सुपाच्य एवं पौष्टिक नाश्ता है।



रामदाने की म्यूजली
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भुने रामदाने के खील को शहद, बादाम, सिरोला, अखरोट व किशमिश के साथ अच्छी तरह मिला लें। यही म्यूजली है। आप नाश्ते में इसका आनंद ले सकते हैं। म्यूजली पौष्टिक होने के साथ ही कैंसर रोधी भी मानी जाती है। 



रामदाना के लड्डू
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रामदाना के लड्डू सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माने गए हैं। इसके लिए पतीले में सौ मिली पानी उबालकर उसमें गुड़ के छोटे-छोटे टुकड़े तब तक पकाएं, जब तक कि चासनी तैयार न हो जाए। चासनी कच्ची होगी तो लड्डू नहीं बन पाएंगे। तैयार चासनी में तत्काल माप के हिसाब से भुना हुआ रामदाना मिला लें। इसमें भुने हुए तिल भी मिला लें तो स्वाद और बेहतर हो जाएगा। लड्डू बटने में विलंब न करें, क्योंकि चासनी ठंडी होने पर लड्डू नहीं बन पाएंगे। ये लड्डू स्वाद के साथ पौष्टिकता से भी भरपूर होते हैं। चिकनाई या वसा से परहेज करने वाले भी इन्हें बेझिझक खा सकते हैं।



साबुत रामदाने का हलुवा

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साबुत रामदाने को अच्छी तरह साफ कर उबाल लें और फिर पानी को उससे अलग कर दें। रामदाना के वजन का दो तिहाई गुड़ या चीनी को पानी के साथ अलग से उबाल लें। इसके बाद देसी घी में उबले हुए रामदाना को तब तक भूनें, जब तक कि वह भूरा न हो जाए। अब उबले पानी को उसमें डालकर थोड़ी देर तक पकाएं। कद्दूकस किया हुआ गोला व किशमिश भी इसमें मिला लें। जब हलुवा कढ़ाई छोडऩे लगे तो समझिए पककर तैयार है। इसे आप नाश्ते में भी खा सकते हैं।



भुने रामदाने का हलुवा
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भुने रामदाने का हलुवा बनाने की विधि भी साबुत रामदाने का हलुवा बनाने जैसी ही है। हां, इसमें देसी घी थोड़ा ज्यादा लगता है। लेकिन, इसे ज्यादा देर भूनने की जरूरत नहीं है। अब तो लोग भुने रामदाने के आटे से भी हलुवा, बर्फी, पूरी, बिस्कुट, केक, शक्करपारा, पॉरिज आदि आइटम तैयार करने लगे हैं। जिनकी बाजार में खासी डिमांड है।


मजेदार लसपसी खीर
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रामदाने की खीर भी बेहद स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होती है। इसके लिए पहले रामदाने को बारीक छलनी में डालकर पानी से अच्छी तरह से धो लें। अब बर्तन में दूध और आधा कप पानी डालकर चूल्हे पर चढ़ा लें। दूध में उबाल आने लगे तो आंच धीमी करबर्तन में रामदाना मिला लें। कुछ देर बाद इसमें काजू व चीनी मिलाकर पांच मिनट धीमी आंच पर पकाएं। फिर इलायची पाउडर मिलाकर तेज आंच पर दो मिनट पकाएं। लीजिए! खीर तैयार है।

Monday, 7 September 2020

Terrorist

टेरेरिस्ट

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पापा-पापा 

टेरेरिस्ट कैसा होता है 

एक दिन मेरी बेटी ने मुझसे पूछा 

मैंने पुलिस मुठभेडो़ में मारे जाने वाले 

कुछ टेरेरिस्टों के फोटो जरूर देखे थे, 

लेकिन नहीं समझ आ रहा था कि 

कैसे अपनी बेटी को बताऊं 

कि वे भी हमारे ही जैसे मनुष्य होते हैं, 

बेटी ने पूछा क्या वे राक्षस होते हैं? 

"हां" में जवाब देना चाहा 

पर फिर रुक गया 

सोचा कि कहीं वह भयानक मुखौटों 

और 

सींग वाले दानवों की कल्पना न कर ले। 

कुछ देर बाद वह तो अपना सवाल भूल गई 

पर मुझे कचोटता रहा यह सवाल 

कि साधारण-सा आदमी 

आखिर क्यों बन जाता है टेरेरिस्ट 

क्यों पागलपन के जुनून में 

निहत्थे और निर्दोषों को 

भून डालता है नृशंसतापूर्वक गोलियों से 

खुद ही अपने शरीर पर बम बांधकर 

दूसरों को उडा़ डालता है 

और 

खुद भी अपने शरीर के चीथडे़-चीथडे़ कर डालता है 

टेरेरिस्ट के लिए कोई नियम-कानून 

कोई सीमा-मर्यादा 

कोई अच्छा या बुरा नहीं होता 

वह कुछ भी कर सकता है ...कुछ भी 

समाज व विश्व को डराने के लिए 

वह रूस में ओसेटिया के बेस्लान कस्बे में 

छोटे-छोटे बच्चों को बंधक बना सकता है, 

रोगियों से भरे अस्पतालों को 

आम आदमियों से भरे सिनेमाहालों को,  

बम और बंदूक की नोंक पर घेर सकता है 

वह कहीं भी-किसी चौराहे पर 

किसी भीड़ भरे बाजार में 

एंथ्रेक्स या जहरीली सेरीन गैस का 

इस्तेमाल कर सकता है। 

वह हवाई जहाज को भयानक अस्त्र में तब्दील कर 

वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की भव्य इमारतों को गिराकर 

हजारों लोगों को बेमौत मार सकता है 

उसे परवाह नहीं 

अक्षरधाम मंदिर में पूजा कर रहे श्रद्धालुओं की 

ताज होटल में ठहरे मेहमानों की।

वह कुछ भी 

यानी वह सब-कुछ कर सकता है 

जिसकी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की जा सकती 

वह जल में, 

थल में, नभ में 

पलक झपकते ही 

मचा सकता है प्रलय। 

टेरेरिस्ट का कोई चेहरा नहीं है 

वह आप में, 

मुझ में, 

किसी में भी, 

पैदा हो सकता है, 

वह एक ऐसा दैत्य है, 

जिसके लाखों मुंह और करोडो़ं हाथ हैं 

वह आज दुनिया के हर कोने में छिपा बैठा है, 

ऐसे में यदि मेरी बेटी, 

फिर पूछेगी मुझे कि, 

पापा टेरेरिस्ट कैसा होता है, 

तो कैसे बता पाऊंगा उसे, 

मानवता के 

इस भयानक चेहरे के बारे में, 

मैं आज तक भी ठीक-ठीक 

यह नहीं बता सकता कि

टेरेरिस्ट ऐसा होता है...। 

@ दिनेश कुकरेती

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Terrorist

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Papa papa

How is a terraist

One day my daughter asked me

I killed in police encounters

Must have seen photos of some terraists,

But it was not understood that

How to tell my daughter

That they are also humans like us,

The daughter asked are they demons?

Yes wanted to answer

But stayed again

Thought that he had terrible masks

And

Do not imagine horned demons.

After some time she forgot her question

But this question kept plaguing me

That ordinary man

Why the hell becomes a terrorist

Why madly obsessed

Unarmed and innocent

Fry with bullets brutally

Tying bombs on his body himself

Makes others fly

And

It itself also ruins its body

No rules

No limit

There is no good or bad

He can do anything ... anything

To frighten society and the world

He is in Beslan town of Ossetia, Russia

Can hold small children hostage,

Hospitals filled with patients

Cinemas full of common men,

Can surround bomb and gun point

At any intersection

In a crowded market

Of anthrax or poisonous serine gas

Can use

He turned the plane into a terrible weapon

By dropping the grand buildings of the World Trade Center

Can kill thousands of people

He doesn't care

The devotees worshiping at Akshardham Temple

Guests stayed at Taj Hotel

Anything he

That means he can do everything

Which cannot be imagined even in a dream

In the water,

In land

in the blink of an eye

A holocaust can happen

Terraist has no face

That in you,

in me,

in anything,

Can be born,

He is such a monster,

Which has millions of mouths and crores of hands

He is hiding in every corner of the world today,

So if my daughter,

Then I will ask you

How is Papa Terreist,

So how can I tell him,

Of humanity

About this terrible face,

I am still fine till today

Can't tell that

Terrorist is like that... 

 

@ Dinesh kukreti 




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