शीत के आगोश से मुक्त होने के साथ धरती के पोर-पोर में उल्लास छलकने लगा है। भ्रमरों का मधुर गुंजन हृदय के तारों को झंकृत कर रहा है। वसंत जो आ रहा है और साथ में ला रहा है वेलेंटाइन का मखमली अहसास। ऐसे में कौन होगा, जो शृंगार रस में भीगना न चाहेगा। आइए! वसंत और वेलेंटाइन के इसी लौकिक एवं आत्मीय स्वरूप से हम भी परिचित हो लें।
जैसा वसंत, वैसा वेलेंटाइन
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दिनेश कुकरेती
सचमुच! धरा पर वसंत सरीखी कोई ऋतु नहीं। यह न सिर्फ विद्या एवं बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की अनुकंपा प्राप्त करने की, बल्कि मन के मौसम को परख लेने, रिश्तों को नवसंस्कार-नवप्राण देने, गीत की, संगीत की, हल्की-हल्की शीत की और नर्म-गर्म प्रीत की ऋतु भी है। वसंत ऋतु का संदेश भी यही है कि 'देवी-देवताओं की तरह सज-धजकर, शृंगारित होकर रहो। प्रबल आकर्षण में भी पवित्रता का प्रकाश संजोकर रखो और उत्साह, आनंद एवं उत्फुल्लता का बाहर-भीतर संचार करो।Ó इसीलिए गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं, समस्त महीनों में मैं मार्गशीष (अगहन) और समस्त ऋतुओं में फूल खिलाने वाली वसंत ऋतु हूं। ऐसा माना गया है कि माघ शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र वसंत के महीने माने गए हैं। फाल्गुन विक्रमी वर्ष का अंतिम महीना है और चैत्र पहला। इस तरह सनातनी पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ वसंत में ही होता है।
वेलेंटाइन-डे मनाएं, पर वसंत की धड़कन भी सुनें
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यह भी संयोग ही है कि पश्चिम से उपजा 'वेलेंटाइन-डेÓभी वसंत के सुखद आगमन की पंचमी के आसपास ही पड़ता है। लेकिन, संस्कृति का अंतर देखिए, एक ओर प्रेम की अभिव्यक्ति का सिर्फ एक दिन है, जबकि दूसरी ओर पूरा मौसम ही शृंगार रस में भीगने और एक-दूसरे को जानने-समझने का है। हालांकि, हम जिस दौर में हैं, वह सहजता से, शांति से और सौम्यता से प्रेम की अभिव्यक्ति का दौर नहीं है। लेकिन, यह भी उतना ही सच है कि डिस्कोथेक पर धूम-धड़ाका करते हुए हम न तो वसंत की धड़कन सुन सकते हैं और न उसकी सादगी का अहसास ही कर सकते हैं। हम वेलेंटाइन-डे जरूर मनाएं, लेकिन यह भी न भूलें कि हमारा वसंत मदोन्मत्त नहीं, मदनोत्सुक है। वसंत सिर्फ कामना की ही ऋतु नहीं, बुद्धि, ज्ञान एवं विवेक की भी ऋतु है और यह चीजें बाजार में नहीं मिला करती। हमें प्रेम की और पूजा की पवित्रता को तो कायम रखना ही होगा, क्योंकि वसंत बिगड़ैल प्यार का पोषक नहीं है। लेकिन, यह अहसास हमें तभी हो पाएगा, जब प्रेम के असली मायने समझने लगेंगे।
जीवन में उल्लास का वसंत लाने वाले संत वेलेंटाइन
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जरा सोचिए जिस विवाह नामक संस्था की रक्षा के लिए संत वेलेंटाइन ने अपने प्राण गंवाए, आज की खिलंदड़ पीढ़ी क्या उसमें विश्वास रखती है। रोम में तीसरी सदी में सम्राट क्लॉडियस का शासन था, जिसकी मान्यता थी कि विवाह करने से पुरुषों की शक्ति एवं बुद्धि कम होती है। लिहाजा, उसने फरमान निकाला कि उसका कोई भी सैनिक या अफसर विवाह नहीं करेगा। संत वेलेंटाइन ने इस अमानवीय आदेश का विरोध किया और उन्हीं के आह्वान पर अनेक सैनिकों एवं अधिकारियों ने ब्याह रचाए। नतीजा, क्लॉडियस ने 14 फरवरी वर्ष 269 को वेलेंटाइन को फांसी पर चढ़वा दिया। तब से उनकी स्मृति में 'प्रेम दिवसÓ मनाया जाता है। देखा जाए तो संत वेलेंटाइन का यह बलिदान जीवन में उल्लास का वसंत लाने के लिए ही तो था।
अंतर्मन में महसूस करें वसंत की कच्ची-करारी सुगंध
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एक सुहानी-सजीली ऋतु हमारे जीवन में दस्तक देती है और हमें उसकी कच्ची-करारी सुगंध को अपने भीतर उतारने की भी फुर्सत नहीं। क्या प्रकृति की रूमानी छटा देखकर हमारे मन की कोमल मिट्टी अब सौंधी होकर नहीं महकती। क्या अनुभूतियों की बयार नटखट पछुआ की तरह अब हृदय में नहीं बहती। देखा जाए तो मन के इसी मुरझाए-कलुषाए मौसम को खिला-खिला रूप देने के लिए ही तो खिलखिलाता-खनकता वसंत आता है। सो, क्यों ने झरते केसरिया टेसू को अंजुरियों में भरकर इस वसंत का स्वागत करें। फिर देखिए खुलकर सरसरा उठेगी उमंगों की पछुआ पवन और फिर मुस्करा उठेगा वसंत।
दुनिया के हर कोने में ऐसे ही आता होगा वसंत
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लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के एक प्रसिद्ध गीत है, 'मेरी डांडी-कांठियूं का मुलुक जैल्यु, बसंत ऋतु मा जैई, हैरा बणु मा बुरांशी का फूल, जब बणांग लगाणा होला, भीटा-पाखों थैं फ्यूंली का फूल, पिंगल़ा रंग मा रंगाणा होला, लय्या-पय्यां ग्वीराल फुलू ना, होली धरती सजीं देखि ऐई..., बसंत ऋतु मा जैई।Ó इसका भावार्थ है, 'मेरे पहाड़ों में जब भी जाना चाहो, बसंत ऋतु में ही जाना। जब हरे-भरे जंगलों में सुर्ख बुरांश के फूल जंगल की आग की तरह नजर आ रहे हों, घाटियों को फ्योंली के फूल बासंती रंग में रंग रहे हों और धरती सरसों, पय्यां और कचनार के फूलों से रंगी अपनी सुंदरता का बखान कर रही हो।Ó देखा जाए तो वसंत की ये छटा एक पहाड़ और एक भूगोल की नहीं है। संभवत: दुनिया के हर कोने में अपनी-अपनी भाषा-बोली और अपने-अपने फूलों व पेड़ों में वसंत ऐसे ही आता होगा। इसलिए मितरों, वसंत को क्यों न उसके इस कोमल और मीठे दर्द से भरे आह्वान के साथ ही रहने दिया जाए। यही तो उसके रंग हैं।
जो वसंत का सार, वही वेलेंटाइन का ध्येय भी
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वसंतोत्सव कहें या वेलेंटाइन, दोनों का संदेश यही है कि धरती सूर्य से मिलने और उससे एकाकार होने को आतुर है। इसलिए प्रकृति के कण-कण से संगीत फूट रहा है। ऋतु स्वयं छंद हो गई है और उसका प्रभाव इतना मादक है कि सारी प्रकृति खिल गई है। कविवर पद्माकर कहते हैं, 'कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में, क्यारिन में कलिन में कलीन किलकंत है। कहे पद्माकर परागन में पौनहू में, पानन में पीक में पलासन पगंत है। द्वार में दिसान में दुनी में देस-देसन में, देखौ दीप-दीपन में दीपत दिगंत है। बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में, बनन में बागन में बगरयो बसंत है।Ó वसंत का आगमन जहां सिर्फ ऋतु का परिवर्तन नहीं है, वहीं वेलेंटाइन भी एक विशेष दिवस के रूप में सचमुच विशेष है। इसलिए स्वागत करें इस प्यारी ऋतु का। पूरी ऊष्मा और पूरी ऊर्जा से प्रकृति के साथ यह पर्व मनाएं। प्रेम की निर्मल-पावन अनुभूतियों को जीवन का आधार बनाएं। हंसे, मुस्कराएं, खिलखिलाएं, जीवन को जीवंत बनाएं। यही वसंत का सार है और प्रकारांतर से वेलेंटाइन का ध्येय भी यही है।
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