भारत में जितने भी राष्ट्रीय पर्व मनाए जाते हैं, गणतंत्र-दिवस उन सभी में सबसे प्रमुख एवं महत्वपूर्ण पर्व है। लाहौर में रावी नदी के तट पर वर्ष 1930 में इसी दिन आजादी के दीवानों ने पूर्ण स्वराज की प्रतिज्ञा ली थी, जो 15 अगस्त 1947 को पूर्ण हुई। 26 जनवरी 1950 को भारत एक संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक गणराज्य बना। आइए! भारत के इसी गणतांत्रिक स्वरूप से हम भी परिचित हो लें...
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दिनेश कुकरेती
29 राज्य, सात केंद्र शासित प्रदेश, 1.32 अरब से अधिक की आबादी, चार प्रमुख धर्मों की उदयभूमि, 20 से ज्यादा संवैधानिक दर्जा प्राप्त भाषाएं, 1652 बोलियां, बहुधर्मी, अनगिनत संप्रदाय, परंपरा, रीति-रिवाज और त्यौहार। यही है 'इंडिया, दैट इज भारत।Ó अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के बाद अपना भाग्य-विधाता खुद होने का अहसास लोगों के मन में हिलौरें ले रहा था। मन उडऩा चाहता था और उम्मीदों का कोई छोर नहीं था। जेहन में तैर रहे थे नए राष्ट्र के निर्माण से जुड़े अनगिनत सवाल। संविधान सभा के सामने चुनौती थी कि नया गणतंत्र ऐसा हो, जिसमें देश की भाषाई, धार्मिक, जातीय व सांस्कृतिक विविधता को आत्मसात किया जा सके। लोगों के लिए सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से न्याय सुनिश्चित हो। इसके अलावा जरूरत नए गणतंत्र में नागरिकों को बराबरी का अहसास कराने की भी थी। गणतंत्र यानी एक ऐसी व्यवस्था, जिसमें शक्ति का केंद्र राजा नहीं, बल्कि खुद जनता और उसके चुने प्रतिनिधि हों। आखिरकार, गूढ़ विचार-मंथन के बाद भारतीय गणतंत्र का ऐसा स्वरूप उभरकर सामने आया, जो पूरी दुनिया में अनूठा है।
हर तबके की बराबर हिस्सेदारी
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नौ दिसंबर 1946 को हुई संविधान सभा की पहली बैठक प्रमाण है कि किस नजरिए से भारतीय गणतंत्र की रूपरेखा तैयार हो रही थी। संविधान सभा में विभिन्न प्रांतों के सदस्यों के साथ ही रियासतों के प्रतिनिधि भी हिस्सा ले रहे थे। आम जनता से भी अपने सुझाव भेजने का अनुरोध किया गया था। यानी आरंभ से ही ध्येय एक ऐसे गणतंत्र की स्थापना का था, जिसमें समाज के हर वर्ग की बराबर हिस्सेदारी हो। कहने का मतलब भारतीय संविधान नैतिक दूरदृष्टि, राजनीतिक परिपक्वता और कानूनी कौशल का परिणाम था और इससे राष्ट्रीय एवं सामाजिक स्तर पर एक नई क्रांति का आभिर्भाव हुआ।
हमेशा ऊंचा रहा संविधान का सिर
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भारतीय गणतंत्र में देश की विविधता एवं जटिलता को एक राजनीतिक व्यवस्था के रूप में अपनाया गया और ऐसा करते समय विभिन्न क्षेत्रों में बहुलतावाद का भी पूरा सम्मान किया गया। राजनीतिक क्षेत्र में लोकतंत्र, सांस्कृतिक क्षेत्र में संघीय ढांचे और धार्मिक मामलों में धर्मनिरपेक्षता के सहारे एक नए गणतंत्र के मायनों को स्पष्ट किया गया। गणतंत्र बनने के बाद से ही नीति-निर्धारकों की प्राथमिकता देश के संघीय ढांचे को बरकरार रखना रही है। हालांकि, आजादी के बाद के सालों में देश की विविधता और विभिन्नता को चुनौती देते कई संकट खड़े हुए। कई मौकों पर देश के विघटन की आशंका जताई गई, राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ घनघोर अविश्वास पनपा, बावजूद इसके देश की जनता ने कभी संविधान का सिर नीचा नहीं होने दिया।
आम और खास का एक ही अधिकार
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यह भारतीय गणतंत्र की सबसे बड़ी खूबी है कि इसमें सत्ता के केंद्र में बैठे व्यक्ति को भी वही अधिकार हासिल है, जो बीहड़ में रहने वाले सामान्य व्यक्ति को। एक बेहद साधारण नागरिक भी समझता है कि सत्ता के बनने या गिरने में उसके वोट की अहमियत क्या है।
समस्याओं के लिए राजनीति जिम्मेदार
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यह कहना गलत होगा कि गणतंत्र में समस्याएं नहीं होतीं। समानता के तमाम वादों के बावजूद व्यावहारिक दिक्कतें कई बार निराशा पैदा करती हैं, चुनौतियां पहाड़-सी खड़ी नजर आती हैं। लेकिन, इसकेलिए गणतंत्र नहीं, राजनीतिक वर्ग और जनता की बेरुखी ही मुख्य रूप से जिम्मेदार है। संविधान तो हर व्यक्ति को बराबरी का दर्जा देता है और आगे बढऩे के समान अवसर मुहैया कराने का भरोसा भी।
गण की व्यवस्था गणतांत्रिक
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'लोकÓ किसी एक जगह रहने वाले व्यक्तियों की संज्ञा है और गण का अर्थ है 'उनका समूहÓ। जिस जगह की उच्चतम व्यवस्था गण के माध्यम से चुनी जाए, उसे गणतांत्रिक कहते हैं। इस तरह भारत लोकतंत्र और गणतंत्र दोनों ही है, जबकि ब्रिटेन, डेनमार्क आदि देशों में लोकतंत्र तो है, पर वह गणतंत्र नहीं हैं।
लोकतंत्र में भी जनता का ही शासन
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हर लोकतंत्र गणराज्य भी हो, यह जरूरी नहीं। वे संवैधानिक राजतंत्र भी गणराज्य की श्रेणी में आते हैं, जहां राष्ट्राध्यक्ष एक वंशानुगत राजा होता है और असली शासन जनता की चुनी हुई संसद चलाती है। ऐसे देशों में ब्रिटेन और उसके डोमिनियन देश कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, बेल्जियम, नीदरलैंड, स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क, जापान, कंबोडिया व लाओस शामिल हैं।
राष्ट्र किसी की निजी मिल्कियत नहीं
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गणराज्य या गणतंत्र सरकार का एक रूप है, जिसमें देश को सार्वजनिक मामला माना जाता है, न कि शासकों की निजी संस्था या संपत्ति। गणराज्य के भीतर सत्ता के शीर्ष पद विरासत में नहीं मिलते। यह सरकार का एक रूप है, जिसमें राज्य का प्रमुख राजा नहीं होता। गणराज्य की परिभाषा का विशेष रूप से संदर्भ सरकार के एक ऐसे स्वरूप से है, जिसमें व्यक्ति नागरिक निकाय का प्रतिनिधित्व करते हैं और विधि के अनुसार शक्ति का प्रयोग करते हैं। जिसमें निर्वाचित राज्य के प्रमुख के साथ शक्तियों का पृथक्करण शामिल होता है। जिस राज्य का संदर्भ संवैधानिक गणराज्य या प्रतिनिधि लोकतंत्र से है।
हजारों साल पहले भी थे गणराज्य
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आमतौर पर धारणा है कि गणराज्यों की परंपरा यूनान के नगर राज्यों से शुरू हुई। जबकि, इन नगर राज्यों से भी हजारों वर्ष पूर्व (600 सदी ईस्वी पूर्व से चौथी सदी ईस्वी तक) भारत भूमि में अनेक गणराज्य अस्तित्व में थे। उनकी शासन व्यवस्था अत्यंत दृढ़ थी और जनता सुखी। गणराज्य (गणतंत्र) का अर्थ है बहुमत का शासन। 'ऋग्वेदÓ, 'अथर्ववेदÓ व 'ब्राह्मणÓ ग्रंथ में इस शब्द का प्रयोग जनतंत्र और गणराज्य के आधुनिक अर्थों में किया गया है। वैदिक साहित्य में विभिन्न स्थानों पर उल्लेख हुआ है कि उस काल में अधिकांश स्थानों पर यहां गणतंत्रीय व्यवस्था थी। 'ऋग्वेदÓ के एक सूक्त में प्रार्थना की गई है कि 'समिति की मंत्रणा एकमुख हो, सदस्यों के मत परंपरानुकूल हों और निर्णय भी सर्वसम्मत।Ó कुछ स्थानों पर मूलत: राजतंत्र था, जो बाद में गणतंत्र में परिवर्तित हुआ। इसका उदाहरण कुरु और पांचाल जैसे राज्य हैं, जिन्होंने ईसा से चार या पांच सदी पूर्व राजतंत्रीय व्यवस्था का परित्याग कर गणतंत्रीय व्यवस्था अपनाई। 600 ईस्वी पूर्व से 200 ईस्वी बाद तक, जब भारत बौद्ध धर्म के प्रभाव में था, जनतंत्र आधारित राजनीति लोक प्रचलित एवं बलवती थी। तब भारत में महानगरीय संस्कृति बड़ी तेजी से पनप रही थी। पाली साहित्य में तत्कालीन दौर की समृद्ध नगरी कौशाम्बी और वैशाली के आकर्षक वर्णन मिलते हैं। सिकंदर के भारत अभियान को लिपिबद्ध करने वाले डायोडोरस सिक्युलस ने भारत के साबरकी (सामबस्ती) नामक एक स्थान का उल्लेख करते हुए लिखा है कि वहां पर गणतांत्रिक प्रणाली थी, जहां लोग मुक्त और आत्मनिर्भर थे।
गुप्त साम्राज्य तक रहे गणराज्य
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गणराज्यों की अंतिम झलक गुप्त साम्राज्य के उदय काल तक दिखाई पड़ती है। समुद्रगुप्त के धरणिबंध के उद्देश्य से किए हुए सैनिक अभियान से गणराज्यों का विलय हो गया था। अर्वाचीन पुरातत्व के उत्खनन में गणराज्यों के कुछ लेख, सिक्के और मिट्टी की मुहरें प्राप्त हुई हैं। विशेष रूप से विजयशाली यौधेय गणराज्य के संबंध में मिली प्रामाणिक सामग्री उसके गौरवशाली अतीत को प्रस्तुत करती है।
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