Monday, 18 January 2021

छलकने को तैयार अमृत कलश

 

छलकने को तैयार अमृत कलश

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सनातनी परंपरा में कुंभ से बड़ा कोई अन्य धाॢमक अनुष्ठान नहीं है। माना जाता है कि कुंभ की यह परंपरा समुद्र मंथन के बाद तब शुरू हुई थी, जब अमृत कलश के लिए देव-दानवों के बीच हुए संघर्ष के दौरान मृत्युलोक समेत अन्य लोकों में 12 स्थानों पर अमृत की बूंदें छलक गईं। शास्त्रों के अनुसार इनमें से चार स्थान (हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक व उज्जैन) ही धरती पर हैं। शेष आठ स्थान अन्य लोकों में मौजूद हैं। धरती पर हर तीन वर्ष के अंतराल में हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक व उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है। यानी हर स्थान पर 12 साल के अंतराल में कुंभ आयोजित होता है। वर्ष 2021 में यह योग गंगाद्वार हरिद्वार में बन रहा है और वह भी 12 नहीं, बल्कि 11 साल बाद। खास बात यह कि हरिद्वार कुंभ का योग ऐसे समय में बना है, जब संपूर्ण धरा कोरोना महामारी से त्रस्त है। इसलिए कुंभ में हरिद्वार पहुंचने वाले साधु-संतों और श्रद्धालु-यात्रियों को कोविड-19 की गाइडलाइन का अनिवार्य रूप से पालन करना होगा। 

दिनेश कुकरेती

ह पहला मौका है, जब दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक अनुष्ठान हरिद्वार कुंभ का आयोजन महामारी के दौर (कोरोना काल) में हो रहा है। वैसे तो इस कुंभ को वर्ष 2022 में होना था, लेकिन ग्रह चाल के कारण यह संयोग एक वर्ष पूर्व ही बन गया। खास बात यह कि ऐसा संयोग एक सदी के अंतराल में पहली बार बना है। जबकि, सामान्यत: कुंभ 12 वर्ष के अंतराल में होता है। लेकिन, काल गणना के अनुसार बृहस्पति का कुंभ राशि और सूर्य का मेष राशि में संक्रमण होने पर ही कुंभ का संयोग (अमृत योग) बनता है। बीते एक हजार वर्षों में हरिद्वार कुंभ की परंपरा को देखें तो वर्ष 1760, वर्ष 1885 व वर्ष 1938 के कुंभ 11वें वर्ष में हुए थे। इसके 83 वर्ष बाद वर्ष 2021 में यह मौका आ रहा है।    













11 वर्ष बाद होता है हर आठवां कुंभ

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बृहस्पति ग्रह 11 वर्ष, 11 माह और 27 दिनों (4332.5 दिन) में बारह राशियों की परिक्रमा पूरी करता है। इस हिसाब से बारह वर्ष पूरे होने में 50.5 दिन कम रह जाते हैं। धीरे-धीरे सातवें और आठवें कुंभ के बीच यह अंतर बढ़ते-बढ़ते लगभग एक वर्ष का हो जाता है। ऐसे में हर आठवां कुंभ 11 वर्ष बाद होता है। 20वीं सदी में हरिद्वार मे तीसरा कुंभ वर्ष 1927 में हुआ था और अगला कुंभ वर्ष 1939 में होना था। लेकिन, बृहस्पति की चाल के कारण यह 11वें वर्ष (वर्ष 1938) में ही आ गया था। इसी तरह 21वीं सदी में बृहस्पति के चाल के कारण आठवां कुंभ वर्ष 2022 के स्थान पर वर्ष 2021 में पड़ रहा है। हर सदी में कम से कम एक बार ऐसा संयोग अवश्य बनता है।

एक हजार वर्ष पूर्व एक अप्रैल को पड़ी थी मेष संक्रांति

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हरिद्वार कुंभ के बीते हजार वर्षों के इतिहास को देखें तो इस कालखंड में 85 कुंभ हो चुके हैं। कुंभ का मुख्य स्नान बृहस्पति, सूर्य व चंद्रमा की युति के चलते मेष संक्रांति (सूर्य की संक्रांति) में ही होते हैं। खास बात यह कि वर्तमान में मेष संक्रांति अमूमन 14 अप्रैल को ही पड़ती है। लेकिन, एक हजार वर्ष पूर्व यह पहली अप्रैल को पड़ी थी। इसके बाद वर्ष 1108 में मेष संक्रांति दो अप्रैल को पड़ी। 

कुंभ को लेकर सनातनी मान्यता

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कुंभ को लेकर देवताओं और दानवों के बीच 12 दिनों तक 12 स्थानों पर घनघोर संघर्ष हुआ। कहते हैं कि इस दौरान अमृत कुंभ पाने को लेकर हुई छीना-झपटी में 12 स्थानों पर अमृत की बूंदें छलक पड़ीं। इनमें से चार स्थान हरिद्वार, प्रयाग, नासिक व उज्जैन मृत्युलोक में भारत भूमि पर हैं। जबकि, शेष आठ स्थान अन्य लोकों (स्वर्ग आदि) में माने जाते हैं। शास्त्रों में 12 वर्ष का मान देवताओं के बारह दिन के बराबर होता है। इसीलिए सामान्यत: 12वें वर्ष ही प्रत्येक स्थान पर कुंभ का संयोग बनता है।













हरिद्वार कुंभ-2021 में शाही स्नान की तिथियां

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11 मार्च 2021, महाशिवरात्रि पर्व पर पहला शाही स्नान

12 अप्रैल 2021, सोमवती अमावस्या पर दूसरा शाही स्नान

14 अप्रैल 2021, बैशाखी पर्व पर तीसरा शाही स्नान

27 अप्रैल 2021, चैत्र पूर्णिमा पर चौथा शाही स्नान

कुंभ में अन्य महत्वपूर्ण स्नान

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14 जनवरी 2021, मकर संक्रांति

11 फरवरी 2021, मौनी अमावस्या

16 फरवरी 2021, वसंत पंचमी

27 फरवरी 2021, माघ पूर्णिमा

13 अप्रैल 2021, नव संवत्सर

21 अप्रैल 2021, रामनवमी

सिर्फ हरिद्वार व प्रयागराज में ही होता है अर्द्धकुंभ

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कुंभ दो प्रकार का होता है, अर्द्धकुंभ और पूर्ण कुंभ। अर्द्धकुंभ जहां छह साल के अंतराल में आयोजित होता है, वहीं पूर्ण कुंभ 12 वर्ष के अंतराल में। अर्द्धकुंभ सिर्फ हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित होता है। उज्जैन और नासिक में लगने वाले पूर्ण कुंभ को 'सिंहस्थÓ कहा जाता है।

ऐसे तय होता है कुंभ का आयोजन

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कुंभ कहां मनाया जाएगा, यह बृहस्पति और सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है। जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तो हरिद्वार कुंभ का आयोजन होता है। बृहस्पति के वृषभ राशि और सूर्य के मकर राशि में आने पर प्रयागराज कुंभ आयोजित होता है। उज्जैन में कुंभ का आयोजन तब होता है, जब सूर्य और बृहस्पति दोनों वृश्चिक राशि में आ जाते हैं। इसी तरह नासिक कुंभ का आयोजन बृहस्पति और सूर्य के सिंह राशि में प्रवेश करने पर किया जाता है।

कहां किस स्थान पर होता है कुंभ

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-हरिद्वार में गंगा के किनारे

-प्रयागराज में गंगा, यमुना और विलुप्त सरस्वती नदी के संगम तट पर

-नासिक में गोदावरी नदी के तट पर

-उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर

















ऐसे होती है कुंभ की गणना

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कुंभ की गणना एक विशेष विधि से होती है। इसमें गुरु यानी बृहस्पति का विशेष महत्व है। खगोलीय गणना के अनुसार बृहस्पति एक राशि में लगभग एक वर्ष रहता है। बारह राशियों के भ्रमण में उसे 12 वर्ष समय लगता है। इस तरह प्रत्येक बारह साल बाद कुंभ उसी स्थान पर वापस आ जाता है। इसी प्रकार कुंभ के लिए निर्धारित चार स्थानों में अलग-अलग स्थान पर हर तीसरे वर्ष कुंभ का अयोजन होता है। कुंभ के लिए निर्धारित चारों स्थानों में प्रयागराज के कुंभ का विशेष महत्व माना गया है। यहां 144 वर्ष के अंतराल में महाकुंभ का आयोजन होता है, क्योंकि देवताओं का 12वां वर्ष मृत्युलोक के 144 वर्ष बाद आता है।

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