Friday, 13 October 2023

ऋषि-सिद्धि की नौ रात्रियां



सनातनी परंपरा में ऋतुओं के संधिकाल में आने वाली नौ रात्रियों का विशेष महत्व बताया गया है। यूं तो नवरात्र साल में चार बार आते हैं, लेकिन प्रचलन में मार्च और सितंबर -अक्‍टूबर में पडऩे वाले वासंतिक व शारदीय नवरात्र  ही हैं। इनमें भी सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्र को ज्यादा अहमियत दी गई है। इसके साथ ही नवरात्र से रामलीला मंचन की परंपरा भी जुड़ी हुई है। जिसका मां दुर्गा की विदाई के साथ विजयादशमी को पारण होता है।

ऋषि-सिद्धि की नौ रात्रियां

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दिनेश कुकरेती 

वरात्र से नव अहोरात्र (विशेष रात्रि) का बोध होता है। रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि दिवाली, होली, शिवरात्रि, नवरात्र जैसे उत्सवों को रात में ही  मनाने की परंपरा है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां हैं, जिनमें से मार्च व सितंबर में पडऩे वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। एक विक्रमी नववर्ष के पहले दिन यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (पहली तिथि) से नवमी तक और दूसरा इसके ठीक छह माह बाद आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से महानवमी तक। लेकिन, सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्र को ही ज्यादा महत्व दिया गया। इन नवरात्र में लोग आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति के संचय कोव्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं। कुछ साधक तो इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन अथवा सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप से विशेष सिद्धि प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। दरअसल, ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ जाती हैं। इसलिए इस अवधि में तन को स्वस्थ एवं शुद्ध रखने और मन की निर्मलता के लिए की जाने वाली प्रक्रिया को नवरात्र कहा गया। 



रात्रि का वैज्ञानिक महत्व

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मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया। वैसे भी यह सर्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य है कि रात्रि में प्रकृति के तमाम अवरोध खत्म हो जाते हैं। अगर दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाती है, लेकिन रात्रि में दी गई आवाज बहुत दूर तक सुनी जा सकती है। इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढऩे से रोक देती हैं। ठीक इसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय अवरोध पड़ता है। इसीलिए ऋषि-मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है। यही रात्रि का तर्कसंगत रहस्य है।



शरीर के नवद्वारों की साधना

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अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी नवरात्र नाम सार्थक है। चूंकि यहां रात गिनते हैं, इसलिए इसे नवरात्र कहा जाता है। रूपक के माध्यम से हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है और इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा है। इन मुख्य इंद्रियों में अनुशासन, स्वच्छता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नवद्वारों की शुद्धि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं को समर्पित किए गए हैं।

स्वच्छ तन, शुद्ध मन

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वैसे तो शरीर को सुचारू रखने के लिए हम प्रतिदिन विरेचन, सफाई या शुद्धि करते हैं, लेकिन अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छह माह के अंतराल में सफाई अभियान चलाया जाता है। इसमें सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुद्धि, साफ-सुथरे शरीर में शुद्ध-बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और मन शुद्ध होता है। क्योंकि स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वरीय शक्ति का स्थायी निवास होता है। 

साल में दो नहीं, चार नवरात्र

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बहुत कम लोग जानते होंगे कि वर्ष में दो नहीं, चार नवरात्र होते हैं। सनातनी पंचांग के अनुसार चैत्र यानी मार्च-अप्रैल में मां दुर्गा के पहले नवरात्र आते हैं, जिन्हें वासंतीय नवरात्र कहा जाता है। अश्विन मास यानी सितंबर-अक्टूबर में आने वाले नवरात्र को मुख्य नवरात्र (शारदीय नवरात्र ) कहते हैं। इन नवरात्र के बाद से ही देशभर में त्योहारों का दौर शुरू हो जाता है। इसकेअलावा एक वर्ष के भीतर दो गुप्त नवरात्र भी मनाए जाते हैं, जो गृहस्थों के लिए नहीं हैं। दोनों नवरात्र आषाढ़ यानी जून-जुलाई और माघ यानी जनवरी-फरवरी में आते हैं। दोनों गुप्त नवरात्र में ऋषि-मनीषी साधना और आराधना करते हैं।


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