Friday, 27 October 2017

लोक को जगाकर खुद सो गया लोक का चितेरा














लोक को जगाकर खुद सो गया लोक का  चितेरा
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दिनेश कुकरेती
प्रख्यात रंगकर्मी, चित्रकार, साहित्यकार एवं कार्टूनिस्ट बी.मोहन नेगी का असमय चले जाना किसी आघात से कम नहीं है। खासकर तब, जब कला-संस्कृति की परख रखने वाले बहुत कम लोग रह गए हों। नेगी महज एक चित्रकार नहीं, बल्कि चित्त  की पाठशाला थे। ऐसे चित्त की, जिसे महसूस करने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए। उनकी छांव में न जाने कितनों ने परिवेश को समझने की सोच विकसित की। उनमें पहाड़ के प्रति ऐसी छटपटाहट थी,जिसे देखने को आंखें तरस जाती हैं। नेगी सरलता एवं सौम्यता की ऐसी प्रतिमूर्ति थे, जिसने लोक के प्रति समझ रखने वाले हर व्यक्ति को उनका कायल बना दिया।

मूलरूप से पौड़ी जिले के कल्जीखाल ब्लॉक की मनियारस्यूं पटटी के पुंडोरी गांव निवासी बी.मोहन नेगी का जन्म 26 अगस्त 1952 को देहरादून में हुआ। लेकिन, कर्मक्षेत्र हमेशा उनका पहाड़ ही रहा। सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्हें पौडी़ से नीचे उतरना गवारा न हुआ। दो पुत्र और दो पुत्रियों के पिता 66 वर्षीय नेगी ने डाक विभाग में रहते हुए लंबे अर्से तक चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर व गौचर में सेवाएं दीं। यहीं उनके अंतर्मन में पहाड़ ने जन्म लिया और वे पहाड़ के चितेरे चित्रकार बन गए।

उन्होंने एक तरफ बोधपरक लघु कविताएं लिखीं तो दूसरी तरफ चित्र, रेखाचित्र, कविता पोस्टर, कोलाज, मिनिएचर्स, कार्टून आदि विधाओं के माध्यम से सोई हुई व्यवस्था को झकझोरने का काम किया। अपनी तूलिका के माध्यम से उन्होंने तत्कालीन एवं मौजूदा दौर की ऐसी तस्वीर समाज के सामने रखी, जिसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया। बावजूद इसके उन्हें कभी प्रचार की चाह नहीं रही और खामोशी से सृजन में जुटे रहे। बाद में नेगी का स्थानांतरण प्रधान डाकघर पौड़ी में हुआ तो यहां भी उन्होंने अपनी रचनाधर्मिता को संजीदा रखते हुए पर्वतीय समाज को एक नया आयाम देने का कार्य किया।


वर्ष 2009 में नेगी पौड़ी डाकघर से ही उप डाकपाल के पद से सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद तो उनका हर पल कला को समर्पित हो गया। उनके व्यक्तित्व में एक अजीब सा सम्मोहन था। जो भी एक बार उनसे मिलता हमेशा के लिए उनका हो जाता। अनजान लोगों से भी आत्मीयता पूर्वक मिलना उनका नैसर्गिक स्वभाव था। यही वजह है कि उनकी कलाकृतियां दीवारों पर ही नहीं लोगों के दिलों में अंकित हैं। एक दौर में नेगी पौड़ी की रामलीला के लिए कलाकारों के मुखौटा बनाया करते थे। साथ ही उन्होंने पहाड़ से गायब हो रही चित्रकला को पुनर्स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य भी किया। वह कहते थे, जब तक जीवन है, मैं कला से मुंह नहीं मोड़ सकता। चित्रकारी मेरे लिए साधना से ज्यादा पहाड़ के प्रति जिम्मेदारी है। उन्होंने सैकडो़ं पुस्तकों के मुखपृष्ठ ही नहीं बनाए, बल्कि भोजपत्र पर चित्रकारी व प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्तियां भी बनाई। उनके कलाकर्म को शास्त्रीय सीमाओं में बांध पाना असंभव है।


प्रेरणा के रूप में जिंदा रहेंगे बी मोहन
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प्रख्यात चित्रकार बी.मोहन नेगी 1984 से देश के विभिन्न शहरों में कविता व कविता पोस्टरों की प्रदर्शनी भी आयोजित करते रहे। उन्होंने उत्तराखंड के प्रमुख शहरों के साथ ही दिल्ली, मुंबई, लखनऊ आदि शहरों में भी कविता पोस्टर प्रदर्शनियां लगाईं। इसके अलावा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय व विभिन्न क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं में उनके चित्र, रेखाचित्र, कार्टून व कविताओं का प्रकाशन निरंतर होता रहा।  कला के इस पुरोधा ने गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी, रंवाल्टी, नेपाली, पंजाबी, हिंदी व अंग्रेजी भाषा में लगभग 700 कविता पोस्टर बनाए।

इसके अलावा उन्होंने प्रकृति के चितेरे कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल की लगभग सौ कविताओं पर भी पोस्टर तैयार किए। उनके उकेरे गए चित्र लोकजीवन की जीवटता को प्रदर्शित करते हैं। खास बात यह कि जो भी चित्र नेगी ने बनाए, वे पर्वतीय जीवन की संजीदगी से भरे हुए हैं। नेगी को उनकी रचनाशीलता के लिए विभिन्न संस्थाओं की ओर से अनेकों बार सम्मानित किया गया। उन्हें मिले सम्मानों में प्रकाश पुरोहित जयदीप स्मृति सम्मान, हिमगिरी सम्मान, लक्ष्मी प्रसाद नौटियाल सम्मान, चंद्रकुंवर बत्र्वाल सम्मान, देव भूमि सम्मान, गढ़ विभूति सम्मान आदि प्रमुख हैं। नेगी भले ही आज दैहिक रूप में हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी प्रेरणा हमारे अंतर्मन में उन्हें हमेशा जिलाए रखेगी।

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